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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Thursday, 13 December 2012

मै आम आदमी हूँ

एक आग लगी सीने में,
सबके सीने में लगाना चाहता हूँ
जागा हूँ मै जो अब तो ,
कुछ कर गुजरने को चाहता हूँ,
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सौपा जिनको भी राज यहाँ,
उसने ही जमकर लुट मचाया
अब हमारा जीना हो गया है मुश्किल ,
भ्रष्टाचार महंगाई को इतना बढ़ाया
कागज के टुकडों में बिकने वालों को,
जेल के अंदर पहुँचाना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

नहीं होने दी कभी अन्न की कमी मैंने,
सीमाओं पर दुश्मनों से लड़ा
नहीं होता काम बिन हमारे दफ्तरों में,
कारखाने हमारे दमपर है खड़ा
हम पहुंचाते खबर और सन्देश
शिक्षक बन ज्ञान बांटता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सरफरोशी जागी है अब तो ,
ये हालात बदलना चाहता हूँ
बहुत सह लिए अन्याय अब,
बेईमानों का राज बदलना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

Friday, 23 November 2012

शिकायत

उनकी बेखबरी का आलम तो देखो
लगी है भीषण आग उनके शहर में
और वो अपने महलों में बैठ
मधुर तरानों का लुत्फ़ उठा रहे है

रहनुमा बनके फिरते थे हमारी गलियों में
कहते हुए कि हर मुश्किल में साथ निभाऊंगा
आज जब हमारी ज़िंदगी जहन्नुम हो गई
वो कुर्सी पर बैठ मंद मंद मुस्कुरा रहे है

लंबी फेहरिस्त थी उनकी वायदों की
हमारी तंगहाल ज़िंदगी बदलने की बात करते थे
मौका दिया उनको वायदा निभाने की तो
हमको भूल झोलियाँ अपनी भरे जा रहे है

ईद हो या दिवाली संग होते थे हमारे
चेहरे पर मुस्कुराहट और होठों में दुआ रखते थे
अब दर पर जाते है उनके हाल ए ज़िंदगी कहने तो
मिलना तो दूर, हमसे आँखें चुरा रहे है 

Wednesday, 21 November 2012

इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद

बीच मझधार बह रहा हूँ, बिना पतवार के नाव में
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये

कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं

एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है

इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद 

Monday, 19 November 2012

लकीरें

उस खुदा ने तो नहीं खींची थी लकीरें इस जमीं पर
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?

देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान

मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान

तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान

Saturday, 17 November 2012

सवाल सरकार से

एक शख्स बैठ सड़क पर
पूछता है सवाल सरकार से
जिनके दम पर है ये मुल्क सारा
क्यों त्रस्त है वो महंगाई की मार से

क्यों देती है तुम्हारी नीतियाँ
संरक्षण भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों को
क्यों करती है तुम्हारा प्रशासन
नज़रंदाज़ इनकी कारगुजारियों को

किसानों की मौत, मजदूरों के शोषण का
क्या है तुम्हारे पास जवाब
जनता के पैसों की चोरी का
कब दोगे तुम हिसाब

गलत लगते है तुम्हारे
हर दावे और दलीलें ऐ सरकार
समझ चुके है अब हम
तुम्हारी नियत भंली प्रकार 

Friday, 9 November 2012

सवाल

किसने कतरें पर उन परिंदों के
उड़ते थे जो दूर आसमान ?
लहूलुहान दिखती है धरती
किसने दिया ये क़त्ल का फरमान ?

है कौन यहाँ इतना बेरहम
जिसको है खून की प्यास ?
क्यों मिट गया उसके अंदर
दूसरों के दर्द का अहसास ?

तड़पती जानों को देख
कौन यहाँ मज़ा ले रहा है ?
बेगुनाहों को सज़ा ए मौत
कौन यहाँ दे रहा है ?

क्रूरता सहन की सीमा से पार हुई
पर सब खड़े क्यों मौन ?
खून से सनी तलवार जिसकी
पूछते है सब, वो है कौन ?

Tuesday, 6 November 2012

घोटाले

मनमोहन तेरे राज में
और कितने मंत्री होंगे बदनाम ?
बड़े-बड़े घोटालों के अलावा
कुछ भी ना हुआ काम

अपाहिजों की बैशाखी कर चोरी
कानून मंत्री करते है मुंहजोरी
संचार मंत्री ने बेचे सरेआम
अरबों के स्पेक्ट्रम कौडियों के दाम

घाना को हुआ जब चाँवल निर्यात
विदेश मंत्री के रंग गए हाथ
कोयले की कालिख लगी खुद तुझपर
आखिर हम विश्वास करे तो किसपर

जयपाल और जयराम ने चुकाई इमानदारी की कीमत
विभाग बदलकर दे दी उद्योगपतियों को राहत
काँमनवेल्थ में हुआ था जो कबाड़ा
शीला और कलमाड़ी का था एक दूसरे को सहारा

Sunday, 4 November 2012

घोर कलयुग

देखो घोर कलयुग है आया
बड़ी गजब है इसकी माया
दौलत को भगवान बनाया
बिन दौलत अपने भी पराया

दौलत से चलती सरकार
जनता की होती तिरस्कार
मंत्री करता जितना बड़ा भ्रष्टाचार
मिलता उसको उतना बड़ा पुरस्कार

चोर संग पुलिस खाए मलाई
रिपोर्ट दर्ज कराने वाले की होती पिटाई
जेल के अंदर वो है जाता
जो जनता में अलख जगाता

जनसेवकों को मिली रिश्वत की खुली छूट
हरकोई जनता को रहा लुट
बेईमानों का होता सम्मान
ईमानदार सहते अपमान 

Friday, 2 November 2012

दुविधा

छाया है घना कोहरा
या सुलग रही है कहीं पर आग
ये भीड़ है तमाशा देखने वालों की
या जनता गई है जाग

ये हाथों में तिरंगा लहरानेवाले
वंदे मातरम का नारा लगानेवाले
पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी आया है
या है ये आज़ादी के परवाने

ये बादलों की गड़गड़ाहट है
या जनता रही दहाड़
निकली है भीड़ सैर पर
या फेंकने सिंहासन को उखाड़

यहाँ हर कोई है गुस्से में
या चेहरे की ऐसी ही है बनावट
आए है ये व्यवस्था परिवर्तन के लिए
या थोड़े दिनों की है कसावट  

Wednesday, 31 October 2012

दीपावली

दीपों का त्यौहार आया
पूरा देश जगमगाया
ढेरों खुशियाँ संग लाया
मन में उमंग छाया

राम की वापसी हुई थी इस दिन
पूरा हुआ था वनवास कठिन
रावण हरा घर पहुंचे थे राम
लंका जीत किये थे बड़ा काम

घर की होती रंगाई पुताई
चारो ओर दिखती सफाई
एक दूसरे को देते सब बधाई
बंटती रसगुल्ले और मिठाई

सज गए है सारे बाजार
खरीददारों की लगी कतार
फुलझडियों की लगी बहार
पटाखे करते आसमान को उजियार 

Monday, 29 October 2012

गुलामी

गुलामी का दर्द बयां करना है मुश्किल
गुलामी में चैन सुकून सब जाता है छीन
दर्द गुलामी का, पूछो उस परिंदे से
कैद है जो, आज एक छोटे से पिंजरे में

झील और झरने का पानी पीता था जो हरदम
कटोरी में पानी देख घुटता है उसका दम
स्वभाव था उसका डालियों में फुदकने का
आज करता है नाकाम कोशिश सलाखों को कुतरने का

पंख फैलाए उड़ता था, कभी दूर आसमां
अब तो पंख फैलाते ही, खत्म होता है जहां
पर्वत की चोटी पर बैठ, ढलते सूरज को निहारता था कभी
आज तो सूरज की रौशनी ही, नसीब होती है कभी-कभी

पहले मीठे फलों को दूर तक ढूंढने था जाता
अब रुखी सुखी रोटी के संग दिन है बिताता
गुलामी के जंजीरों में, जब से दिन है बिताया
आज़ादी का सही मतलब, उसको समझ आया 

Saturday, 27 October 2012

दशहरा

जिसने किया था सीता का हरण
राम ने मारा था वो रावण
हर साल मर के लेता नया जनम
अब का है ये कैसा रावण

कागज़ के पुतले तो प्रतीक है
हम सब में छिपा बैठा है एक रावण
कागज के पुतले को दहन कर
क्या मार लिया अपने अंदर का रावण ?

बुराई पर अच्छाई की जीत का
त्यौहार है यह दशहरा
पर बुराई मिटने के बजाय
हो रहा और हरा भरा

बुराई तो तब हारेगी
जब हम अपने अंदर के रावण को मारे
आओ हम सब मिलकर बुराई ना करने
और बुराई का ना साथ देने का कसम खा ले 

Tuesday, 23 October 2012

सर्दी का मौसम

सिहर उठता है तन मन
जब चलती है मंद पवन
भाती मन को सूर्यकिरण
कि आया सर्दी का मौसम

हरित तृणों पर ओंस की बुँदे
लगती है मनभावन
सूर्यकिरण पड़ती जब इनपर
जैसे हो तारे करते टिमटिम

जहाँ भी देखो वहाँ दिखे
ऊनी कपड़ों में लिपटा बदन
आग का घेरा डाले है
आज यहाँ पर जन-जन

ठंडे पानी से नहाना
लगता है बहुत कठिन
सुबह जल्दी उठने का
नहीं करता है ये मन 

Sunday, 21 October 2012

सुनामी

याद आता है वो मंजर
जब कहर ढाया था समंदर
लहरों में थी उफान
आ गया था एक तूफ़ान

ऊँची लहरों ने किया प्रवेश
जैसे हो तबाही का श्री गणेश
गाँव हो या शहर
सब पर बरसा कहर

गाँव शहर सब डूबा लिया
मिट्टी में सबको मिला दिया
चली गई हजारों जान
गाँव शहर कर गया शमशान

सुनामी है इस कहर का नाम
बड़ी डरावनी है इसकी पहचान
रुंह तक काँप जाती है
जब जिक्र सुनामी की आती है 

Saturday, 20 October 2012

भ्रष्टाचार (corruption)

गहरी जमी है जड़े भ्रष्टाचार की
साफ़ नहीं दिखती नियत सरकार की
आरोप लगते है जब भ्रष्टाचार की
कहते है ये बात है बिना आधार की

एक चपरासी से लेकर अधिकारी तक
निजी से लेकर सरकारी तक
वकील से लेकर धर्माधिकारी तक
हो गए है सब भ्रष्ट, आम जनता है त्रस्त

राशन कार्ड की बात हो या वीजा कार्ड की
बात नहीं बनती बिना उपहार की
वृध्दावस्था पेंशन हो या विधवा पेंशन
बिना कमीशन होता है टेंशन

औद्योगिक घराना हो या कोई नेता
सबने मिलकर ही देश को लुटा
कालाधन का मामला हो या टैक्स चोरी की
खूब फायदा उठाते है कानून की कमजोरी की

घोटालों के लिए बनती है नई योजनाएं
नेता और अफसर मिलबांट कर खाए
किसानों की जमीन हड़प कर गए
देश को दीमक की तरह चट कर गए

Tuesday, 16 October 2012

लहू की धार बहना अभी बाकी है

अभी तो केवल आगाज है हुआ, राज़ से पर्दा गिराने का
जाने कितने राज़ का बेपर्दा होना अभी बाकी है

जुल्म और सितम का दौर अभी ठहरा नहीं है
दहकते अंगारों पर चलना अभी बाकी है

रहनुमा का नकाब लिए फिरते थे जो ज़ालिम
उनके चेहरों से नकाब का हटना अभी बाकी है

सिंहासन पर बैठे थे जो मुल्क को अपनी ज़ागीर समझकर
उन ज़ागीरवालों का सिंहासन से उतरना अभी बाकी है

सदियों से लुट रहे है जो वतन, वो अभी जिंदा है
उनको इस हिमाकत का सज़ा मिलना अभी बाकी है

लहू मांगती है जंग ए आज़ादी, धरती के सुर्ख लाल होने तक
अभी तो गिरा है थोड़ा ही लहू, लहू की धार बहना अभी बाकी है

Saturday, 13 October 2012

एक शख्स (अरविन्द केजरीवाल को समर्पित )

एक शख्स ने हिला दी है जड़े
सिंहासन पर बैठने वालों की
रोशन हुई है उम्मीदें
नाउम्मीदगी में जीने वालों की

लुटते थे जो बेख़ौफ़ वतन को
काँपने लगे है उनके भी हाथ
हर सड़क, हर गली मुहल्ले में
होती है बस उसकी बात


Friday, 12 October 2012

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है


Thursday, 11 October 2012

हम यकीन करे भी तो किसपर करे


हम यकीन करे भी तो, किसपर करे 
यहाँ लोग दौलत के लिए, अपनों से दगा कर जाते है 

शराफत का चोला पहन, घूमते लोग 
बस्तियां उजाड़ते, नज़र आते है 

लोग कहते है जिसे, सच्चाई की मूरत 
वही लोगो से, ठगी करते हुए पाए जाते है 

रक्षक का तमगा ओढ़, फिरते है जो शान से 
भक्षक की तरह काम करते, नज़र आते है 

जनता की सेवा के लिए, सिंहासन पर बिठाया जिसे भी 
वही तानाशाहों की तरह, हुक्म फरमाते है 

जिन माँ-बाप ने मुश्किलों में पाला हमें 
लोग उन्ही माँ-बाप को, सड़क पर छोड़ जाते है 

सुबह शाम धर्म की बात करनेवाले 
अपनी तिजौरियों में, दान का पैसा छुपाते है 

पहरेदारी करना है जिनका काम 
वही चोरों से हिस्सा मांगते, नज़र आते है 

Wednesday, 10 October 2012

सुबह का इंतज़ार

छाया था घना कोहरा, काली अंधियारी रात,
सुबह का था इंतज़ार, कि हो सूरज से मुलाक़ात !
पल पल बीत रहे थे सदियों सी, सिंह रहा था दहाड़,
पतले वस्त्र थे तन पे और वो ठण्ड की मार !

कुंडली मारे सर्प, फन फैलाए रहा था फुफकार,
डर के भागे हम इधर उधर, चुभ गए कांटे कई हज़ार !
बिच्छू ने मारा डंक, पूरा विष हम पे दिया उतार,
विष धीरे धीरे चढ़ने लगा, हम किसको लगाते पुकार !

अजगर भी मुँह खोल बड़ा, सरक रहा था हमारी ओर,
समझ नहीं आ रहा था, भागे हम किस छोर !
सोचा पेड़ पर जाऊ चढ़, तो कम होगा साँप बिच्छू का डर,
कुछ दूर चढ़ा था ऊपर, पैर फिसला आ गिरा जमीं पर !

हाथ पांव थे सलामत,चोटिल हुआ कमर,
दर्द से दिल कराह उठा, दिमाग पर हुआ असर !
गिरा फिर उठ ना सका, हिम्मत दे गई जवाब,
चींटियों को मिल चूका था, पसंदीदा कबाब !

पेड़ के नीचे दर्द संग, फिर गुजरी पूरी रात,
धीरे धीरे सूरज उगने लगा, जगी थोड़ी सी आस!
धन्य है वो मानव , जिसने लिया मुझे देख,
वाहन की व्यवस्था कर, अस्पताल दिया भेज !

Tuesday, 9 October 2012

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे
नदियों की धार पलट जायेंगे
क्यों डरता है इन तानाशाहों से
इनके तो तख़्त और ताज उलट जायेंगे

कब तक सहेगा ये जुल्म और सितम
उठा संग हाथ हमारे सितमगर दूर छिटक जायेंगे
लुट रहे है ये सदियों से हमें
इनकी तिजौरियो में हमारे ताले लटक जायेंगे

Monday, 8 October 2012

वो भगवान कहाँ है ?

बैठा है दुर्योधन, हर गली मोहल्ले में
करता है रोज एक द्रोपती का चीरहरण
भरी महफ़िल में द्रोपती की लाज बचानेवाला
वो श्याम कहाँ है ? वो श्याम कहाँ है ?

है कंसो का राज यहाँ
करते है जनता पे अत्याचार
जनता का दुःख हरनेवाला
वो गोपाल कहाँ है ? वो गोपाल कहाँ है ?

है रावणों की भरमार यहाँ
जो करते है सीता का हरण
रावण के कब्जे से सीता को छुड़ानेवाला
वो राम कहाँ है ? वो राम कहाँ है ?

यहाँ मित्र ही मित्र को दे रहा दगा
हर कोई एक दूसरे को ठग रहा
सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ानेवाला
वो हनुमान कहाँ है ? वो हनुमान कहाँ है ?

हैवानियत और जुल्म चरम पर पहुंची
दम घुट रहा सच्चाई का
दुष्टों का संहारकर्ता सबका पालनहार
वो भगवान कहाँ है ? वो भगवान कहाँ है ?

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Sunday, 7 October 2012

शहीदों का दर्द

छलक आते होंगे आंसू शहीदों के
अपने वतन की हालत देखकर
सोचते होंगे क्यों मर गए हम
इन खुदगर्जो के लिए

सपना जो देखा था शहीदों ने
एक खुशहाल वतन बनाने का
आज बिक रहे है वतनवाले ही
चंद कागज के टुकडों के लिए

दर्द से भर जाता होगा उनका भी दिल
जब जब जमीं पर देखते होंगे
लहू से सींचा था जिस जमीं को
आज उनपर कांटे उगते हुए

ये बात तो उठती होगी उनके भी मन में
कि क्या सोचा था और क्या पाया
सुनहरे भविष्य के लिए दी थी कुर्बानी
अब शहीदों को याद भी किया जाता है तो दिखावे के लिए

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Thursday, 4 October 2012

गरीब

कटे-फटे जीर्ण वस्त्रों में
अधढका तन वाला वो इंसान
हररोज लड़ता है जंग
जिंदा रहने के लिए

निकलता है कड़ी धूप में
भूखे पेट, नंगे पांव
हाथो में पड़े होते है फफोले
और पैरों में छाले
लिये औजार कंधो पर
दो वक्त की रोटी के लिए

झलकती है तन से हड्डियाँ
हो जाता है पसीने से तरबतर
जब चलाता है औजार अपनी, पत्थरों पर
पत्थरों को आकार देने के लिए

दर्द करता है कोशिश बहुत
उसे रोकने के लिए
मिलती है उसको तो हार
जब ठान लेता है वो
काज पूरा करने के लिए

पर इतने मेहनत के बाद
मिलता है जो उसको मेहनताना
कम पड़ जाते है उसके परिवार को
दो वक्त की रोटी के लिए

सबको खिलाकर, अधभरा पेट
सोता है घास फूस के झोपड़े में
सुबह उठते ही निकल जाता है
फिर वही जंग लड़ने के लिए 

Wednesday, 26 September 2012

दास्तान-ए-आम इंसान

आओ सुनाऊ एक दास्तान
जिसका नायक है एक आम इंसान
महंगाई करती इसको परेशान
सिर्फ चुनाव के समय ही कहलाता ये भगवान

कभी खुले आसमान के नीचे
भूखे पेट है सोता
कभी चिलचिलाती धूप में
नंगे पाँव है चलता

मुश्किलों में पढ़ता बढ़ता
जीने के लिए संघर्ष करता
नौकरी के लिए भटकता फिरता
मिले जो छोटी नौकरी तो हर्ष करता

महीने के पहले हफ्ते में होता है ठाट नवाबी
दूसरे हफ्ते से फिर सबकुछ लेता है उधारी
बसों और ट्रेनों में जिंदगी भर करता सवारी
सपना होता है उसका लेनी बड़ी गाड़ी

पेंशन से फिर कटता है उसका बुढ़ापा
नाती पोतों के संग खेलकर दिन गुजरता जाता
फिर आता है दिन जब वो बिस्तर से उठ नहीं पाता
बिस्तर में लेटे-लेटे ही सबको अलविदा कह जाता

Monday, 17 September 2012

यहाँ कागज के टुकडो पर बिकते है लोग (People of here are sold on pieces of paper)

ये कैसा जमाना आ गया, मै रहा हू सोच
यहाँ कागज के टुकडों पर बिकते है लोग

जनता का सेवक ही, जनता को रहा लुट
धर्म कि बात कौन कहे, यहाँ भाई-भाई में है फुट

डकैती का एक हिस्सा जाता है पहरेदारो को
यहाँ इनाम से नवाज़ा जाता है गद्दारों को

कानून के रखवालों के सामने लुटती है अबलाओ कि अस्मत यहाँ
लुटेरा बना है राजा, उसे है जनता कि फ़िक्र कहाँ

आज भूखा सो रहा सबको खिलानेवाला
एक झोपड़ी के लिए तरस रहा महलों को खड़ा करनेवाला

मंदिर मस्जिद से ज्यादा भीड़ होती है मधुशालाओं में
अब तो फूहड़ता नज़र आती है सभी कलाओं में 

धरती माँ का आह्वाहन (A call of Motherland)

कर रही आह्वाहन, धरती माँ नौजवानों से
जागो और संघर्ष करो, वतन के इन बेईमानों से

सूरज की गर्मी है तुझमे, तू ही है नदियों की तेज धार
जयचंद बैठे है गद्दी पर, इनको दो तुम उतार

बदलो कि गड़गहड़ाट तुझमे, है तुझमे ही बिजली सी चमक
पुकार रहा है देश तुम्हारा, अदा करो इसका नमक

हो संगठित तुम, एक ताक़तवर मुट्ठी बन जाओ
कोई ना तुम्हे सकता तोड़, ये दुनिया को तुम दिखलाओ

अन्याय अपने चरम पर पहुची, तुम लाचार बने हो क्यों
काँपेगी अन्यायी कि रुंह भी, सुभाष और भगत तो बनो

शोला जो तुम्हारे सीने में भरा, आज उसको दहक जाने दो
क्रांति जो सदियों से है राह देखती, उसे आ जाने दो

गुलामी कि बेडियाँ तोड़, अपने मन को तुम आज़ाद करो
वीरो ने जो दी थी कुर्बानी, उसे यूँही ना बर्बाद करो

हिलेगी तानाशाहों कि गद्दी, तुम्हारे हर हुंकार से
कब तक रहोगे सोये, अब जाग भी जाओ इस ललकार से

आज़ादी का सूरज जो डूब रहा, सूरज बन आसमान में छा जाओ
एक नया सवेरा तुम लाओ, एक नया सवेरा तुम लाओ 

Thursday, 30 August 2012

बेईमानों का राज

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

नई नई योजनाये बनती करने नए घोटाले
गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले
सड़को को कागजो में बनाकर मरम्मत का भी पैसा निकाले
पेंशन के बटवारे में भी करते है गडबडझाले

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी
योजनाओ का लाभ लेने में आती उसकी पहली बारी
गरीब तो बीपीएल में नाम जुडवाने अपनी पूरी उम्र है गुजारी
इनकी जिंदगी नहीं बदलती चाहे हो कोई भी पार्टी सत्ताधारी

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव
जीतने के बाद जनता से ये कहते हमारे सामने सिर झुकाव
अफसर भी नहीं बढ़ाते फाइल लिए बिन पैसे
पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज


ये हालात बदलना चाहता हूँ

बहुत सह लिए अन्याय अब, ये हालात बदलना चाहता हूँ
सरफरोशी जो जागी है अब , ये जवानी वतन के नाम करना चाहता हूँ

कर रहे बेईमान, भारत माँ का आंचल मैला रोज
भागीरथी मै नहीं मगर, हर गांव में गंगा बहाना चाहता हूँ

लुट रहे भारत माँ को, अपने ही वतनवाले रोज
लुटती हुई भारत माँ की, आबरू बचाना चाहता हूँ

जागते इंसान कर रहे यहाँ मुर्दों सा व्यवहार
मुर्दे भी लगाए जयघोष के नारे, ऐसी अलख जगाना चाहता हूँ

अब जो जागा हू तो मै, कुछ कर गुजरना चाहता हूँ
लगी है आग जो मेरे सीने में, सबके सीने में लगाना चाहता हूँ  

है सड़क पर आज हम (We are on the road)

है सड़क पर आज हम, मांगने हमारा हक
मांग अगर मानी नहीं गई तो, कर देंगे तख्ता पलट

कर रहे ललकार आज, एक सुर और एक ताल में
हिल रही है तानाशाहों कि गद्दी, हमारे हर हुंकार से

हाथो में तिरंगा है और होठो पे वंदे मातरम बसा
झूठे वायदों से हमको, इन्होने हर रोज ठगा

अबकी जो जागे है तो, कुछ कर के ही जायेंगे
हर हैवानियत और जुल्म को, जड़ से मिटायेंगे

क़र्ज़ धरती माँ का जो हम पर है, आज उतारने है आये
बढ़ गए है जो अब ना रुकेंगे, चाहे प्राण निकल जाए 

Saturday, 11 August 2012

भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है

कुछ अच्छा करने निकलो
तो जाने क्यों लोग हँसी उड़ाते है
हो गए अगर कामयाब
तो जाने क्यों लोग जल जाते है

राह में मुश्किलें आये हज़ार
पर हम तो बढ़ते चले जाते है
लोगो कि परवाह ना कर
सच्चाई का साथ निभाते है

राह में दर्द मिलते है कई
पर हम हर दर्द पर मुस्कुराते है
कोई करे रास्ता रोकने कि कोशिश अगर
तो उसको भी जवाब दे जाते है

दुराचारी अपनी ताकत पर
इतना क्यों इठलाते है
जबकि अंत में रावण कंस और कौरवो
सा ही अंजाम पाते है

सच कि हमेशा जीत होती है
जाने क्यों लोग अक्सर भूल जाते है
जिस मंजिल को पाने कि चाह में हम निकलते है
भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है 

सनम कि रुसवाई

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

जी रहे थे जिसके लिए उसने ही आज धोखा किया
करके वादा वफाओ का हमें रुसवा किया
उनकी बेवफाई का हमने ना गिला किया ना सिकवा किया
छाये है काले बादल जिंदगी में और बदल भी ना रहा ये मौसम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

उनकी यादे हमें रह रहकर तडपाती है
दर्द होता है इतना जैसे जान निकल जाती है
नींद में उसके लौट आने कि ख्वाब तो आती है
मगर हकीकत में तो वो है पत्थर दिल सनम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

आहट जो सुनते है कदमो कि लगता है कि वो आ गए
पर किस्मत को मंज़ूर है कुछ और लो फिर अँधेरा छा गए
आखिर कब तक करू इंतज़ार तेरे लौट आने कि ऐ सनम
घुट घुट के जी रहा हू कुछ तो करो रहम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम


जुदाई (Separation)

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई

कुछ सुहाने पलों को याद कर, मुस्कुरा लेते है हम
आंसुओ कि धारा बहा, भुला लेते है उसके जाने का गम
उसने वादा किया था, हर पल साथ निभाने का
पर न जाने उसने कदम क्यों उठाया दूर जाने का

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


हम तो जिंदा है उसके यादो के सहारे में
पर वो जा बैठी है उस किनारे में और हम है इस किनारे में
जीने का सपना देखा था जो उसके साथ
पर वक्त बेरहम ने अलग कर दिए हमारे हाथ

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


उसकी हर एक बात याद आती है
जुदाई उसकी बड़ा तडपाती है
उसके आने का इंतज़ार आज भी है
उससे मिलने को दिल बेकरार आज भी है

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई




Tuesday, 7 August 2012

इंसान और शैतान (Man And Devil)

विवश है आज का हर एक आम इंसान
मौज उड़ा रहा है शैतान
मानवता खो रही अपनी पहचान
जुल्म मिटाने वाला कहा गया वो भगवान

सितमगरो ने कुछ ऐसा कहर ढाया है
रोम रोम में दर्द समाया है
सड़क पर गिरा लहू जुल्म कि कहानी कहती है
भूख से तडपकर जान क्यों निकलती है

सबको खिलाने वाला ही आज दर दर भटक रहा
दर्द सहने कि सीमा पार हुई, पाँव पटक रहा
जिनके मेहनत से महले खड़ा होती है
आज वही एक झोपडी के लिए तरस रहा

कुछ इस कदर लुटा है हमें इन शैतानो ने
जैसे लुटा न गया हो किसी से जमानो में
केवल दर्द कि दास्तान होती है अब पैगामो में
वो आज़ादी पाने कि जूनून कहा गई दीवानों में 

निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

तिरंगा लिए हाथ, टोलियाँ बनाकर
भगत सिंह और सुभाष को दिल में बसाकर
नया भारत बनाने का सपना सजाकर
निकले है बनाने नया इतिहास अपने बलिदानों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

जनता के कदमो कि आहट सुन कानो से
थर्राता है अब तो दिल सत्ता के दलालो का
समय राह देखता था ऐसे अफसानों का
सिंहासन जब हिलने लगेगी जनता के दहाडो से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

लहू का हर एक कतरा पुकारता है भारत माता कि जय
बढ़े जा रहे है सभी होकर निर्भय
मन में है बस एक ही बात, करनी है दुश्मनों पर विजय
गूंजती है आवाजे आज पहाड़ों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से


देशभक्तों कि गली (Street of Patriots)

आज चल निकला हू उन गलियों पर
जहाँ जय हिंद और वंदे मातरम का नारा बुलंद होता है
जहाँ देशभक्ति के गीत गाये जाते है
भारत माता में शीश चढ़ाये जाते है

रग रग में बसा होता है देशभक्ति जहाँ
मिलते है जुनूनी लोग यहाँ
जहाँ कटा सिर भी भारत माता कि जय पुकारता है
जहाँ लहू का हर एक कतरा दुश्मन को ललकारता है

हर एक दिल में आग लगी होती है
आज़ादी पाने कि प्यास जगी होती है
यहाँ हर कोई अपने बलिदान को आतुर दिखता है
अपने लहू से इतिहास का पन्ना लिखता है

जहाँ सिर्फ देशभक्ति कि बाते बोली जाती है
हर एक बलिदान को दुश्मनों के कटे सिरों से तोली जाती है
है मकसद जहाँ कि सम्पूर्ण आज़ादी
चाहे देनी पड़े कितनी भी कुर्बानी 

Sunday, 22 July 2012

एक भीड़ निकली है सडको पे आज

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हर उम्र दराज के लोग है इसमें
है शब्दों में जोश भरा
सदियों बाद जगे है ये
इतिहास के पन्नों में नया पन्ना जोड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हो गई थी जुल्म कि इन्तहा
रो रोकर बहुत सह लिए
दास्तान-ए-दर्द सुनकर तो रुंह भी कपने लगे
आज खड़े है सड़कों पे अन्याय को जड़ से उखाड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

बिगुल तो फूंक चुके है लड़ाई की
अंजाम तक पहचाना अभी बाकी है
मांग रहे है हर एक दर्द का हिसाब
निकले है ये आज अपना भविष्य सुधारने

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

शहीद का परिवार (Family of martyr)

माँ कि नज़रे टिकी थी राह पर
वीर पुत्र के आने के इंतज़ार में
वो आया भी तो तिरंगे में लिपटकर
माँ के आँखों में आँसू भर गया

बाप के कंधो में खेला बड़ा हुआ
आज बाप के कंधो में ही विदा हो चला
रहेगा याद हमेशा लोगो को वो
लो आज एक और वीर शहीद हो गया

जब तक जिया, जिया वो शान से
आज मरने पे भी, शान में न कमी आई
वीरो कि तरह लड़ा, न झुका, न डरा
अपनी अमरता का, लोगो को सन्देश दे गया

बिलखती माँ पुकार रही है, बेटा तू लौट आ
गहरी नींद में सोया है वो, न आएगा कभी
बावरी हो गई बेवा उसकी, कह रही है
मुझको भी साथ ले जाता, अकेले क्यों चला गया 

मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

जिंदगी समझौतों से भरी होती है मगर
मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

दुनिया का कोई भी कोना अनदेखा न रहे
मै दुनिया के हर कोने कि सैर करना चाहता हू

दूर तक बस पानी ही पानी दिखाई दे
मै ऐसे झील में नाव में बैठ घूमना चाहता हू

देर रात तक मस्ती में डूबी पार्टियां हो
मै ऐसी पार्टियों में मस्ती में नाचना चाहता हू

वैसे तो जिंदगी में मिलती है खुशियाँ हज़ार
मै हर खुशी में ठहाको के साथ हसना चाहता हू

दुनिया में हर जगह कि भोजन कि अलग पहचान होती है
मै दुनिया के हर भोजन का स्वाद लेना चाहता हू

तेज रफ़्तार का अपना एक अलग मज़ा होता है
मै हर तेज रफ़्तार वाली वाहनों में सफर करना चाहता हू 

Friday, 20 July 2012

एक चिंगारी (A Spark)

एक चिंगारी उठी है कहीं पे
फैलना चाह रही है बनके आग
मिटाने आयी है दुश्मनों को
कर देगी उनको सुपुर्देखाक

अभी तो उठ रहा है केवल धुआँ
लपटे निकलना तो अभी बाकी है
घासों से निकल रहा है ये धुआँ
सिंहासनो का जलना अभी बाकी है

बरसो बाद उठी है ये चिंगारी
लेके कई बलिदान
बड़ा भयंकर लगेगी  आग
लेके जायेगी कइयो कि जान 

रौशनी कि तलाश

तलाशता हू रौशनी मै इस अँधेरी दुनिया में
अब तक तो लगी है बस निराशा हाथ
पर उम्मीदों पर टिकी है ये जहाँ
मै अपनी उम्मीदे कैसे छोड़ दू

जहा भी गया मिला बस अँधेरा
एक हल्का सा उजियारा भी न दिखाई दी
निकल आया हू बहुत दूर उसे ढूंढने
अपने को वापस कैसे मोड़ लू

रौशनी कि बाते सभी करते है मगर
अँधेरे में जीने कि सबको आदत है
रोज देखता हू सपना उसके मिल जाने की
वो हँसी सपना मै कैसे तोड़ दू 

भाग अधर्मी भाग(Run Impious run)

भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

तुने ही लुटा है इनको
तुने ही बांटा है इनको
आखिर कब तक सहते ये अन्याय
मिलाने आ रहे है तुझे खाक
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

गद्दी पे बिठाया तुझको
पर तुने रुलाया सबको
बहुत सह चुके अब
मांगने आ रहे है हर एक दर्द का हिसाब
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

झूठे किये थे तुने वादे
नेक नहीं थे तेरे इरादे
अपनी शक्तियों का किया दुरूपयोग तुने
जनता समझ चुकी है टरइ नियत आज
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग 

Tuesday, 17 July 2012

आज़ादी के परवाने (Freedom Lovers)

आज़ादी के परवाने, किसी से नहीं डरा करते
हो अगर बलिदान का वक्त, तो पीछे नहीं हटा करते
रहता है बस एक ही धुन, मुल्क कि आज़ादी
तोड़ देते है इसके लिए, ये सारे पाबन्दी

जनता पुकारती है इन्हें, कहकर शूरवीर
मिटा देते है दुश्मनों को, जैसे हो कोई लकीर
अपना सर्वस्व कर देते है, वतन पर अर्पण
अपनी अंतिम साँस तक, नहीं करते समर्पण

वीरो तरह ही जीते है, वीरो की तरह ही मरते है
अपनी पूरी जिंदगी, वतन के नाम करते है
घर बार सब त्यागकर, अकेले ही रहते है
अपने लहू से वतन का, रुद्राभिषेक करते है

अपनी हथियार उठा, जब करते है ललकार
दुश्मन थर थर कांपता है, और दिखते है लाचार
वतन पर शहीद होने को, रहते है ये आतुर
ऐसे वीर जवानो का, क्या कर लेंगे ये असुर

भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है ( A fox has come with lambskin)

भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है
चारो तरफ लुट खसोट मचाया है
सभी जगह जाल बिछाया है
सबको बेवकूफ बनाकर माल खुद खाया है

मुह से मीठी वाणी बोलकर
छल कपट से काम लेता है
भाई बांधव क्या चीज़ है
ये हर किसी को दगा देता है

कई तरह के है चाले चलता
पर सबके सामने है भोला बनता
बहुत खतरनाक है इसका खेल
इसके कर्मो का शक्ल से नहीं है मेल

बड़ी चतुराई से है काम करता
जो इसके खिलाफ हो उसको यह बदनाम करता
अब तो इसको पहचान जाओ
अपनी कौम से इसे दूर भगाओ 

अकेला चल निकला हू

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

चाह बस एक मंजिल पाने की
हौसला है सब कुछ गवाने की
हर सितम हँस के सह लूँगा
मुह से उफ़ तक न करूँगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अगर साथ न मिला किसीका
तो भी बस बढता चलूँगा
अगर आया कोई तूफ़ान
तो उससे भी डटकर लडूंगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अब तो मैंने लिया है ये ठान
मंजिल पर पहुचने पर ही होगा आराम
कदम बढाकर पीछे न हटूंगा
चाहे जो भी हो अंजाम

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर


Monday, 16 July 2012

भारत माता की जय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है दुश्मन बलवान बहुत
धन भी है उसके पास अकूत
अब तो सोचता हू बस यही
कि करना है इनपर विजय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है साथ मेरे चंद लोग
पर भीड़ बड़ी है उनकी
पुकार रहा है दिल आज ये
बलिदान का आ गया है समय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है बैरी को अपने ताकत पर घमंड बड़ी
हो गया है तानाशाह वह पूरी
सामना करने को तैयार हू मै खड़ा
अब तो हो चूका हू मै निर्भय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय





आवारा मन (Maverick Mind)

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी बर्फीले पहाड़ पर होता है
तो कभी समंदर के बीच
कभी इसे फूलों कि सुगंध भाती है
तो कभी घनघोर जंगल डराती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी उड़न खटोले पर होता है
तो कभी झीलों में नाव कि सैर करता है
कभी सुनता है नदियों कि कल कल
तो कभी देखता है मौसम कि हलचल

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी रिमझिम बारिश में भीगता है
तो कभी ठण्ड से सिहरता है
कभी हरियाली इसे लुभाती है
तो कभी गर्मी इसे झुलसाती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है


कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है (There is yet to fulfill some desires )

कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
ठंडी बहती हवाओ में
दूर तक फैले झील में
दुधिया चांदनी रात में
नाव कि सैर अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
चारो ओर सुन्दर खिले फुल हो
पेडों की छाया इतनी घनी हो
कि दूर तक धुप न पहुचे जमीं पर
ऐसे घनघोर जंगल का भ्रमण अभी बाकी है
कुछ हसरते अभी पूरी करनी बाकी है
बर्फ कि चादर बिछी हो
ओलो कि बारिश जहाँ हो
ऊँची ऊँची पर्वत चोटियाँ घिरी हो
ऐसी जगह जाना अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है 

Sunday, 15 July 2012

मै मुसाफिर हू (I am a traveler)

पथरीली राहों का मै मुसाफिर हू
मेरी राह में नुकीले कांच भी है और कांटे भी
चलना है इनपर मुझे नंगे पाँव
राह में न है कोई ठहराव और न कोई पेडों कि छाँव

मैंने ये राह अपनी मर्ज़ी से चुनी है
क्योकि मन में कुछ कर गुजरने कि ठनी है
शाम ढलते तक मंजिल में पहुचनी है
क्योकि राह में न चांदनी है न रौशनी है

चिलचिलाती धुप है
न पानी है न जूस है
पाँव दर्द से रो रहा है
पर मन हौसला न खो रहा है

राह बीच एक घनघोर जंगल है
पर न लाठी है न बन्दुक है
मेरा हौसला मेरा डर भगा रही है
मंजिल कि ओर लिए जा रही है 

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

याद आ रहा है वो पल सुहाना
तोतली जबान से माँ को बुलाना
घुटनों के बल रेंगना
भईया के साथ खेलना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

बारिश में झूला झुलना
पापा के कंधो में घूमना
अनमने मन से स्कुल जाना
फिर दौड़ते हुए घर आना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

बहाने बनाकर स्कुल न जाना
बारिश कि पानी में कागज कि नाव चलाना
दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना
मस्ती में डूबकर नाचना गाना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू


बेवफाई bewafai

बेवफाई ये कैसी कि है तुने
लुट के ले गई मेरा चैन और सुकून सारा
जाना ही था तो आई क्यों जिंदगी में
बड़ा दर्द दे रहा है ये खेल तुम्हारा

जान देते थे हम तेरी एक हँसी के लिए
तेरी हर मुस्कराहट था हमको प्यारा
जाने तुमने क्या सोचकर ये कदम उठाया
तुम न जाती तो एक सुन्दर सा घर होता हमारा

तेरे दिए दर्द से आँसू न रुक रहे है मेरे
तेरी जुदाई ने हर खुशियों को है मारा
तेरी याद मुझे तड़पा रही है
ढूँढ रहा हू मै कोई सहारा

दूर क्यों हो लौट आओ तुम
इंतज़ार है अभी भी समझ लो ये इशारा
तेरे लिए बदला था मैंने अपने को
ऐसा ही रहा तो कही मर न जाऊ मै  कुंवारा 

Saturday, 14 July 2012

शंखनाद है हो चूका, आज़ादी पाने के लिए

शंखनाद है हो चूका, आज़ादी पाने के लिए
इस सम्पूर्ण भारत को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए

उतर आया है इस जमीं पे आज
भगवान भी मानव बनकर
अपने सद्कर्मो से
भारत के लोगो का, सोये भाग्य जगाने के लिए

शंखनाद है हो चूका, आज़ादी पाने के लिए
इस सम्पूर्ण भारत को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए

बहुत सह लिए अन्याय हम
दर्द अब नहीं हो रहा कम
मानवता का निकल रहा दम
निकले है चंद लोग, भारत को बचाने के लिए

शंखनाद है हो चूका, आज़ादी पाने के लिए
इस सम्पूर्ण भारत को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए

आँखें मुंदी सरकार है
अब चुप बैठना बेकार है
मिटने को हम तैयार है
समय आ पंहुचा है, इस देश पर कुर्बान हो जाने के लिए

शंखनाद है हो चूका, आज़ादी पाने के लिए
इस सम्पूर्ण भारत को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए


एक अजीब सी बेचैनी छाई है

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

डूबा रहता हू तेरी यादों में दिनभर
जीना हो गया है मेरा दुर्भर
जब तक तू मुझसे जुदा रहेगी
तन्हाइयों में डूबा ये फिजा रहेगी

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

तेरी यादें ही मुझे जिंदा रखी है
कभी खुशी तो कभी आँखों में आँसू देती है
तुझे भुलाने कि कोशिश कि मैंने बहुत
पर तू कभी ख्वाब तो कभी याद बनकर हर वक्त साथ रही है

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

आँखें इंतज़ार कर रही है तेरे आने की
दिल भूल नहीं पाया है दर्द तेरे जाने की
अब तो लौटकर आ जा
मेरे दिल को यु इतना न तड़पा

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है


आज जिंदगी फिर इम्तिहान ले रही है (Today life is testing again)

आज जिंदगी फिर इम्तिहान ले रही है
सौगात ग़मों का एक साथ दे रही है

घिरा हू मुश्किलों से मै अब
सबसे ज्यादा जरुरत थी तब
साथ छोड़ गए है सब
अब तो आँसू भी न रुक रही है

आज जिंदगी फिर इम्तिहान ले रही है
सौगात ग़मों का एक साथ दे रही है

जाने कितनी लंबी होगी ये काली रात
समझ आ रहा है केवल एक बात
सहना है मुझे वो सब जो हो रहा मेरे साथ
रुकना नहीं है राह में ये दिल मुझसे कह रही है

आज जिंदगी फिर इम्तिहान ले रही है
सौगात ग़मों का एक साथ दे रही है

कई कांटे चुभे है पांव में
चैन नहीं है अब पेड़ों कि छाँव में
समतल सडको में भी फिसल जा रहे है हम
सुकून देती थी जो अब वो भी दर्द जिंदगी में भर रही है

आज जिंदगी फिर इम्तिहान ले रही है
सौगात ग़मों का एक साथ दे रही है


Monday, 9 July 2012

आग (Fire)

धधक रही है आग
उड़ा रही है राख
पूरी दुनिया में फैलने को
बेकरार है ये आग

जो भी इस आग के सामने आएगा
ख़ाक में मिल जाएगा
मामूली नहीं है ये आग
कह रही है ये राख

बरसो बाद जली है ये
कांटो में पली है ये
अब बुझने वाली नहीं है ये आग
जब तक दुश्मनों को न कर दे सुपुर्देखाक

परिवर्तन ले के आई है ये
दुनिया को बदल जायेगी ये
एक नई व्यवस्था लाने
आई है ये आग 

ना जाने क्यों मै डरता हू

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू

पहला दिन स्कुल का
जैसे सजा मिल रही हो किसी बड़ी भूल का
पहली बार जब हाथ में लिया साईकिल
सर से पाँव तक मै गया हिल

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू


पहली बार गाँव के बाहर स्कुल में पढ़ना
जैसे लग रहा था मुझे है कोई जंग लड़ना
कालेज का वो पहला दिन
लगता था जैसे पूरी ताकत गया है छीन

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू


पहली बार का साक्षात्कार
लग रहा था जैसे हू मै कोई गुनाहगार
पहला दिन नौकरी का
हाल ऐसा था जैसे जरुरत से ज्यादा भरे टोकरी का

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू

आज़ादी के लिए लड़ने वाली जूनून कि तलाश है

आज़ादी के लिए लड़ने वाली जूनून कि तलाश है
एक और आजादी कि लड़ाई बहुत पास है

आज निकले है चंद लोग देश बचाने के लिए
हो रहे घोटालों से मुक्ति दिलाने के लिए
अपनी जान गवाकर लोगो कि खुशियाँ लौटाने के लिए
देश के लिए फ़ना होने वाली सरफरोशी कि आस है

आज़ादी के लिए लड़ने वाली जूनून कि तलाश है
एक और आजादी कि लड़ाई बहुत पास है

भारत माँ का आँचल है मैला हो चूका
सोने कि चिड़िया कहलाने का हक है खो चूका
जनता भी अब बहुत रो चुकी
जो अब भी नहीं जागा वो एक लाश है

आज़ादी के लिए लड़ने वाली जूनून कि तलाश है
एक और आजादी कि लड़ाई बहुत पास है

रिश्वतखोरी कि जड़े है बहुत गहरी
भ्रष्टाचार है लोगो के दिलोदिमाग में भरी
पुकार रहा है अपना ये जमीं
जो देश के लिए मिटेगा वो एक खास है

आज़ादी के लिए लड़ने वाली जूनून कि तलाश है
एक और आजादी कि लड़ाई बहुत पास है


Wednesday, 4 July 2012

एक अनाथ कि भावनाए (Feelings of an orphan)

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

अपना कोई है नहीं, पराया किसी को कहते नहीं
मिलता है जो खुशी से, मिलते है हम भी हँसी से
तन्हाई से है प्यार, किसी का न इंतज़ार
कभी शहर तो कभी पेशा बदल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

मेहनत कि खाता हू, चैन से सो जाता हू
घर कभी बनाया नहीं, रह लेता हू मै हर कही
करता हू काम सच्चाई से, प्यार है अच्छाई से
माँ कि ममता के लिए तिल तिल पिघल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

गाडी बंगले का शौक नहीं, सादा जीवन ही सही
नहीं है मुझमे कोई व्यसन, जो भी कपडे मिल जाये लेता हू पहन
अनजान है ये डगर ,अनजान है ये सफर
देखकर दूसरे परिवारों को इर्ष्या से जल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू


स्वतंत्रता दिवस (Independence Day)

स्वतंत्रता दिवस जब आता है
हम सब में जोश भर जाता है
लाखों ने दी थी अपनी कुर्बानी
कइयो ने न्योछावर कि अपनी जवानी

वीरो ने लड़ी थी ये लड़ाई
सदियों बाद हमें जीत मिल पाई
कोई नहीं कर पायेगा उनकी भरपाई
जिन्होंने आजादी कि लड़ाई में जान गवाई

आज भी हमें याद है वो
आजादी के लिए लड़े थे जो
पर देश कि सरकार रही है सो
आजादी का सही मतलब रहा है खो

आमजनो कि आजादी रही है छीन
बर्ताव हो रहा इनके साथ औरो से भिन्न
आओ मिलकर एक ऐसा देश बनाए
सब रहे खुशी से ऐसा परिवेश बनाए

किसान (Former)

मै एक किसान हू
बारिश न होने से परेशान हू
उगाता सब्जियां और धान हू
आधुनिक तकनीक से अनजान हू

मेहनत करता हू दिन रात
तब जाकर उगता है अनाज
हल चलाकर बोता हू बीज
गाय और बैल है मेरे मीत

कीट पतंगे और चूहे
दुश्मन है ये हमारे
मेरे उगाए अनाज से ही
पेट भरते है तुम्हारे

चाहे सुखा हो या बाढ़
दोनों लाते है दुखो का पहाड़
जूझ रहे है हम कमियों से
ठगे जा रहे है बिचौलियों से 

Tuesday, 3 July 2012

डरता हू मै कहीं मेरे दामन में दाग न लग जाए

डरता हू मै कहीं मेरे दामन में दाग न लग जाए
डरता हू मै कहीं लोग मुझे बेईमान कहकर न बुलाये
इसीलिए अपने कर्मो को साफ़ सुथरा रखता हू
जो मेरे जमीर को भाये वही काम करता हू
भ्रष्टाचार के नाम से ही चिढ आती है
गद्दारों कि संगत मुझे नहीं भाती है
आज ऊपर से नीचे तक हर कोई रिश्वत ले रहा
आम आदमी अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा दे रहा
एक गरीब को साबित करने के लिए कि वो गरीब है
पैसा दे रहा ये कैसा उसका नसीब है
भ्रष्टाचारियों ने एक ऐसा किला है बनाया
जिसको आज तक कोई भेद नहीं पाया
निकला हू मै इसे उजाड़ने
सच्चाई और इमानदारी का झंडा गाड़ने 

शिक्षक (Teacher)

देश के आधार स्तंभ है शिक्षक
यही तो बनाते है इंजीनीयर और चिकित्सक
अक्षरों को लिखना ये बताते
शब्दों को पढ़ना है सिखाते
बच्चो के है भाग्य निर्माता
कहते है सब इनको विधाता
सीधा सरल जीवन है इनका
करते है भलाई सबका
पक्षपात के बिना काम है करते
हमारी जीवनशैली का निर्माण है करते
स्वच्छता का है पाठ पढाते
सच झूठ को है पहचान जाते
गलतियों पर शिक्षकों का डटना फटकारना
जैसे सहारा देकर घड़े को कुम्हार का मारना
बड़ा महान है इनका काम
पुरे शिक्षक जाति को हमारा सलाम 

नेताजी (Politician)

नेताजी है बड़े चतुर
चुनाव लड़ने रहते आतुर
लोगो को झूठे वादों में फसाते है
चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते है
भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाते है
झोलियाँ अपनी भरते जाते है
केवल चुनाव के समय ही दीखते है
बाकी समय तो विदेश में फिरते है
उज्जवल कपड़ो में हमेशा रहते है
करम उतने ही बुरे करते है
भ्रष्टाचार इनके लिए आम बात है
अय्याशी में गुजरती हर रात है
पाल के रखते है ये गुंडे
एक नहीं कई मुस्टंडे
जो बोले इनके खिलाफ
बंद कर देते उसकी आवाज़ 

Monday, 2 July 2012

हाथो कि लकीरों पे मत यकीन करना

हाथो कि लकीरों पे मत यकीन करना
ये तो बदलती रहती है
जिनके हाथ नहीं हुआ करते
उनकी भी जिंदगी चलती है

तेरे अपने करम ही
तेरा भविष्य लिखेंगे
बिना हवा चले तो
पत्ते भी न हिल सकेंगे

उठा औजार अपनी
और अपने कर्मो से लिख एक ऐसी कहानी
रखे लोग याद तुझे
चाहे पीढ़ियां हो जाए कितनी भी पुरानी

रास्ते में अगर आया कोई तूफ़ान
तो तू मन में ले ये ठान
अब जो भी हो अंजाम
पूरा करूँगा अपना काम 

Sunday, 1 July 2012

तुझे किसी से डरना नहीं है (you have not afraid of anyone)

तू वीर है इस जहाँ का , तुमसा कोई दूसरा नहीं है
तुझसे ही जुडी है लोगो कि आशाएं , तुझे किसी से डरना नहीं है

मुश्किलें हो अगर पर्वत सी बड़ी, चाहे जान पर बन आये तेरी
हौसला कर ले अपनी मैदान सी चौड़ी, तुझे कभी झुकना नहीं है

अगर राह है कांटो से भरी, और चलना है तुझे नंगे पांव
तो सर पे कफ़न बाँध ले अपनी, तुझे कभी मुडना नहीं है

मुकाबला हो चाहे ताकतवर गद्दार से, या हो पुरे संसार से
चाहे साथ न मिले किसी का,पर तुझे हारना नहीं है

हाथ लिए घातक हथियार, कोई करता रहे अन्याय अगर
चाहे सेना हो उसकी कितनी भी बड़ी, पर तुझे सहना नहीं है

बाढ़ (Flood)

ये जो तबाही है
जो बाढ़ लेके आयी है
हर ओर बस पानी दिखता है
फिर कुछ न मन में सूझता है
जलमग्न हो गए है सब घर
हो गए है लाखो बेघर
कोई अपना बच्चा ढूंड रहा है
तो कोई अपनी माँ तलाश रहा है
देखते है हम जब इधर उधर
पानी में बह लाश रहा है
कई लोग पेडों के ऊपर है
संग सांप और अजगर है
कई उपरी टीले में बैठे है
भोजन कि आस में कई दिनों से भूखे है
राहत कार्य जब पहुंचा उनके पास
तब आयी उनके साँस में साँस
हो चुके थे सब उदास
अब जगी है जीने कि आस

जिंदगी (Life)

ये जिंदगी भी अजीब है
सबका अपना अपना नसीब है
खुशिया मिले तो खुशनसीब है
गम मिले तो बदनसीब है

कभी हसाती है तो कभी रुलाती है
हमेशा कुछ नया कर जाती है
कभी लिखाती है तो कभी पढ़ाती है
जिंदगी हमें बहुत कुछ सिखाती है

समझना है इसको बड़ा मुश्किल
जाने कब किसको क्या जाए मिल
मैंने एक बात तो जाना है
दुःख के बाद सुख तो आना है

अब सुन लो मेरी बात
इसको रखना तुम याद
जिंदगी को जीना भरपूर
न रहना कभी बनके मजबूर 

जाने किस गलती कि सजा पा रहा हू (What is the mistake being punished)

जाने किस गलती कि सजा पा रहा हू
क्यों मै ऐसे तड़प सा रहा हू
ज़हर जिंदगी का पिए जा रहा हू
क्यों मै ऐसे जिए जा रहा हू

रातो में चैन कि नींद नहीं मिलती
दिन में भी सुकून नहीं मिलती
हम काम करे तो कैसे करे
अब तो वो जूनून भी नहीं मिलती

अच्छे कामो के भी बुरे परिणाम निकल जाते है
सच बोलकर भी हम झूठे कहलाते है
अपनों के बीच में पराये हम बन जाते है
भीड़ में भी तन्हा हम अपने को पाते है

सब कुछ तो खो दिया है हमने
अब तो बहुत रो लिया है हमने
कब गुजरेगी ये काली रात
कब होगी खुशियों कि बरसात 

वो लड़की (That Girl)

चांदनी से सराबोर वो हसीन रात
याद है मुझे उसकी हर एक बात
उसका हर शब्दों के बाद पलके झपकाना
हर बात पे उसका यु मुस्कुराना

झिलमिल सितारों से भरी आसमान
दिल में जगा रहे थे कई अरमान
घूर रहा था उसको मै होके हैरान
मज़ा आ रहा था करने में उसको परेशान

सरगम सी सुरीली उसकी आवाज़
छेड रहे थे दिल में कई साज
उठकर जब वो जाने लगी
आँखों में मेरे आंसू आने लगी

छोड़ गयी अपनी यादो कि बारात
जाने फिर कब मिलना होगा उसके साथ
जब भी वो याद आती है
दिल को बड़ा तडपाती है


Friday, 29 June 2012

जनता का नौकर आज जनता का राजा बना है (Public servant has become a king of public)

जनता का नौकर आज जनता का राजा बना है
सच है ये बात कि आज इमानदारी से काम करना मना है

गुंडागर्दी आज एक सद्गुण है
सदाचार आज एक अवगुण है
नेता वही बनता है
जो बेईमानी में निपुण है

जनता का नौकर आज जनता का राजा बना है
सच है ये बात कि आज इमानदारी से काम करना मना है

चापलूसी करना जिनका काम है
आज उन्ही अफसरों का नाम है
सिध्दान्तो और वसूलो में चलनेवाले
तो आज बदनाम है

जनता का नौकर आज जनता का राजा बना है
सच है ये बात कि आज इमानदारी से काम करना मना है

जो झूठ बोलते है और ठगी करते है
आज वही तो अमीर बनते है
सच्चाई कि राह में जो चलते है
जिंदगी भर गरीब रहते है

जनता का नौकर आज जनता का राजा बना है
सच है ये बात कि आज इमानदारी से काम करना मना है


पूरा होगा तेरा ये सफर (Your Journey will complete)

काम ऐसा कर
कि तेरे बारे में लिखा जाय
बुलंदियों में पहुच इतना
कि तेरे बारे में पढ़ा जाय

सच्चाई कि राह में तू जा निकल
मुश्किलें आये तो बन जा अटल
कांटो भरी रहेंगी तेरी ये डगर
पर तू कदम दर कदम बस बढता चल , बस बढता चल

रोकेंगे अपने भी तुझे
पर तू कभी रुकना नहीं
होगी हर घडी परीक्षा तेरी
पर तू कभी झुकना नहीं

कर विश्वास अपनी ताकत पर
और बन जा निडर
तेरे हौसले से ही
पूरा होगा तेरा ये सफर


एक ख्वाब को पूरा करने के लिए जी रहा हू (Only living to fulfill a dream)

एक ख्वाब को पूरा करने के लिए जी रहा हू
ज़हर जिंदगी का मै किश्तों में पी रहा हू

ख्वाब है एक नया भारत बनाने का
अपनी सोच को आजमाने का
मै चाहता हू एक ऐसा देश
जहा हो अति सुन्दर परिवेश

एक ख्वाब को पूरा करने के लिए जी रहा हू
ज़हर जिंदगी का मै किश्तों में पी रहा हू

मिलकर रहे सभी धरम
अच्छे हो सबके करम
गरीबी और भुखमरी का न हो नामोनिशान
जिंदगी चले सबकी आसान

एक ख्वाब को पूरा करने के लिए जी रहा हू
ज़हर जिंदगी का मै किश्तों में पी रहा हू

राजनितिक हो विशुद्ध
देश की प्रगति हो उनका कर्मयुद्ध
जनता हो सर्वोपरि
काश हो जाए ऐसी जादूगरी

एक ख्वाब को पूरा करने के लिए जी रहा हू
ज़हर जिंदगी का मै किश्तों में पी रहा हू




Wednesday, 27 June 2012

कब तक युहीं सोये रहोगे (How long will You sleep)

कब तक युहीं सोये रहोगे
पुरानी यादों में खोये रहोगे

अब तो जाग जाओ
अब तो होश में आओ
देश क़ुरबानी मांग रहा है
तेरी ये जवानी मांग रहा है
कब तक युहीं सोये रहोगे
पुरानी यादों में खोये रहोगे

सच्चाई का गला घोटकर
लुट रहे है इसे अपने ही वतनवाले
देश बचाने के लिए निकले
कहाँ चले गए वो कफ़नवाले
कब तक युहीं सोये रहोगे
पुरानी यादों में खोये रहोगे

तेरी जरुरत है आन पड़ी
देश बचाने की समस्या है सामने खड़ी
तू जाग और सबको जगा
मिले सम्पूर्ण आज़ादी ऐसी क्रांति ला
कब तक युहीं सोये रहोगे
पुरानी यादों में खोये रहोगे


जंगल (Forest)

एक घनघोर जंगल
नदियाँ बहती है इसमें कल कल
पंक्षियाँ मधुर गीत गाती है
जंगल की हरियाली हमें लुभाती है
सभी प्रकार के है जीव जंतु
कुछ जहरीले है परन्तु
शेर जब गुर्राता है
पूरा जंगल दहल जाता है
जब चलता है हाथी
हिलती है जंगल की धरती
जंगल में सजे है रंग बिरंगे फूल
देखो कहीं रास्ता न जाना भूल
यहाँ है नाना प्रकार के पेड़
साल सागौन और खेर

Monday, 25 June 2012

आओ मिलकर एक ऐसा जहाँ हम बनाये (We have come together to create a world)

आओ मिलकर एक ऐसा जहाँ हम बनाये
जहा हर कोई अपनी ज़िन्दगी जी पाए

जहा हर कोई आजाद हो
किसी की ज़िन्दगी न बरबाद हो
जहा हर किसी के सपने पुरे हो
कोई ख्वाहिश न अधूरे हो
आओ मिलकर एक ऐसा जहाँ हम बनाये
जहा हर कोई अपनी ज़िन्दगी जी पाए

एक ऐसा सुन्दर परिवेश हो
जिसमे किसी का किसी से न द्वेष हो
जहा झूठ का न हो नामोनिशान
सच बोलकर बने हर कोई महान
आओ मिलकर एक ऐसा जहाँ हम बनाये
जहा हर कोई अपनी ज़िन्दगी जी पाए

जहा पैसे से ज्यादा प्यार की अहमियत हो
सबके दिल में नेकी की नियत हो
जहा बड़ो का आदर हो
पर छोटो का न निरादर हो
आओ मिलकर एक ऐसा जहाँ हम बनाये
जहा हर कोई अपनी ज़िन्दगी जी पाए

पर दिल में है एक तूफ़ान (There is storm in my heart)

खामोश है जुबान
पर दिल में है एक तूफ़ान

सहनशक्ति है अपना धैर्य खो चुकी
मानवता भी अब बहुत रो चुकी
अन्याय अब कोई न सहन होगा
मानवता भी अब कही न दफ़न होगा
खामोश है जुबान
पर दिल में है एक तूफ़ान

भ्रष्टाचारियो पर अब लगेगी लगाम
रिश्वतखोरी का होगा काम तमाम
हम करेंगे ऐसा काम
की भारत का हो ऊँचा नाम
खामोश है जुबान
पर दिल में है एक तूफ़ान

न्याय के लिए अब संघर्ष होगा
बलिदान देश के लिए सहर्ष होगा
अब साथ मिलकर चलना होगा
अधिकारों के लिए लड़ना होगा
खामोश है जुबान
पर दिल में है एक तूफ़ान


सियासतदानो ने कुछ ऐसा रचा है षड़यंत्र (It is a conspiracy hatched by some politicians)

सियासतदानो ने कुछ ऐसा रचा है षड़यंत्र
की इनके बस में हो गया है ये पूरा तंत्र

जाति पाति और धर्म का भेद बढ़ाते है
हमें आपस में लड़ाते है
वोट की राजनीती कर भरपूर फायदा उठाते है
और चुनाव जीतकर संसद में पहुच जाते है
सियासतदानो ने कुछ ऐसा रचा है षड़यंत्र
की इनके बस में हो गया है ये पूरा तंत्र

गुंडागर्दी करते न आती इनको शरम
भ्रष्टाचार करना है इनका प्रमुख करम
मुनाफावसूली को देते है बढावा
रिश्वत लेना है इनका प्रमुख चढ़ावा
सियासतदानो ने कुछ ऐसा रचा है षड़यंत्र
की इनके बस में हो गया है ये पूरा तंत्र

जनता का पैसा अपने अय्याशी में उड़ाते है
बिना मतलब के विदेश दौरे में जाते है
उद्द्योगपतियो को पैसो के लिए धमकाते है
कुछ छोटे मोटे काम कर अपने को धर्मात्मा बताते है
सियासतदानो ने कुछ ऐसा रचा है षड़यंत्र
की इनके बस में हो गया है ये पूरा तंत्र  

कोशिश कर रहा हु (I am trying)

इंसान की खामोशियाँ भी कहती है बहुत कुछ
मै इन खामोशियो को समझने की कोशिश कर रहा हु

किसी की आँखें बात करती है तो कोई इशारो से बात करता है
मै इनके भावो को समझने की कोशिश कर रहा हु

किसी की हलकी सी आवाज़ में भी कशिश होती है बहुत
मै अपने लब्जो में कशिश भरने की कोशिश कर रहा हु

कभी किसी का मासूम सा चेहरा आकर्षित करता है बहुत
मै हर चेहरे से आकर्षित होने की कोशिश कर रहा हु

कोई अँधेरे से डरता है तो कोई अँधेरे में जीता है
मै अँधेरा हटा उजाला करने की कोशिश कर रहा हु

समुन्दर में आया तूफान है मै बीच मजधार में फ़सा हु
मै अपनी नाव किनारे लाने की कोशिश कर रहा हु 


Sunday, 24 June 2012

शादी (Marriage)

शादी नहीं है कोई खेल
ये तो है दो दिलो का मेल

ये तो दो परिवारों का संगम है
दृश्य शादी का तो विहंगम है
दो परिवार एक हो जाते है
मन में कई सपने सजाते है
शादी नहीं है कोई खेल
ये तो है दो दिलो का मेल

दुल्हे को अच्छी दुल्हन की तलाश होती है
तो दुल्हन को दुल्हे से बहुत सी आस होती है
सज धज के दूल्हा दुल्हन लेने आता है
संग दिल में कई अरमान लाता है
शादी नहीं है कोई खेल
ये तो है दो दिलो का मेल

बेटी बाबुल का घर छोड़ पिया घर जाती है
परायी घर को अपना बनाती है
आँख में आंसू मन में संकोच होती है
बाबुल का घर हमेशा के लिए खोती है
शादी नहीं है कोई खेल
ये तो है दो दिलो का मेल

Saturday, 23 June 2012

और ये कहते है हो रहा भारत निर्माण (And they say Bharat Nirman is going on)

ऊपर से निचे तक हर कोई कर रहा भ्रष्टाचार
और ये कहते है हो रहा भारत निर्माण

महंगाई करो कम ,जनता कर रही ये पुकार
कम होने के बजाय ले रहा ये दैत्याकार
बढती बेरोजगारी से मचा है हाहाकार
ये सब देखते हुए भी चुप बैठी है सरकार
ऊपर से निचे तक हर कोई कर रहा भ्रष्टाचार
और ये कहते है हो रहा भारत निर्माण

अपराधियों को सजा न मिल पा रही
गुंडागर्दी दिनोदिन बढते जा रही
न्याय के चौखट पर अन्याय हो रही
पर सरकार तो चैन की नींद सो रही
ऊपर से निचे तक हर कोई कर रहा भ्रष्टाचार
और ये कहते है हो रहा भारत निर्माण

किसान और मजदुर आज तड़प रहा
उनकी मेहनत का सही कीमत न मिल रहा
लोग इलाज की कमी में मर रहे
क्योकि डाक्टर समय से न मिल रहे
ऊपर से निचे तक हर कोई कर रहा भ्रष्टाचार
और ये कहते है हो रहा भारत निर्माण

Friday, 22 June 2012

भ्रष्ट नेता और बेईमान अफसर (corrupt politician and dishonest officer)

भ्रष्ट नेता और बेईमान अफसर
करते है भ्रष्टाचार इस कदर

जनता को ठेंगा दिखाकर
कोठियां भरते है अपनी
जो इनके खिलाफ बोले
देते ये उन्हें धमकी चमकी
भ्रष्ट नेता और बेईमान अफसर
करते है भ्रष्टाचार इस कदर

सडको को कागजो में बनाकर
मरम्मत का भी पैसा निकालते
गरीबो तक आनाज पहुचने से पहले
ये सारा माल है बेच डालते
भ्रष्ट नेता और बेईमान अफसर
करते है भ्रष्टाचार इस कदर

इमानदारी से कोई करे काम
तो करते है ये उसका जीना हराम
अपनी शक्ति का दुरूपयोग है करते
आमजन को डराते फिरते
भ्रष्ट नेता और बेईमान अफसर
करते है भ्रष्टाचार इस कदर

प्रकृति बाते करती है मुझसे (Nature talks with me)

प्रकृति बाते करती है मुझसे
पानी कहती है
जिस रंग में मिलो उस रंग का हो जाओ
बादल कहती है
सुखा मिटाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे
हवा कहती है
बढते चले जाओ
आग कहती है
दुसरो के लिए अपने को जलाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे
पर्वत कहती है
अपने को ऊपर उठाओ
पेड़ कहती है
दुसरो को शीतलता पहुचाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे

प्रकृति (Nature)

ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये कान के पास से गुजरती हवाओ की सरसराहट
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट
ये समुन्दर की लहरों का शोर
ये बारिश में नाचती मोर
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये चांदनी रात
ये तारों की बरसात
ये खिले हुए सुन्दर फूल
ये उड़ते हुए धुल
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये नदियों की कलकल
ये मौसम की हलचल
ये पर्वत की चोटियाँ
ये झींगुर की सीटियाँ
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे


Wednesday, 20 June 2012

ज़िन्दगी एक पहेली है (Life is a puzzle)

ज़िन्दगी एक पहेली है
समझ जाओ तो एक सहेली है

सुख और दुःख दो साथी है
मस्ती में जियो तो एक झाकी है
गम के बाद ख़ुशी तो आनी होती है
हर ज़िन्दगी की अपनी एक कहानी होती है

ज़िन्दगी एक पहेली है
समझ जाओ तो एक सहेली है

बुरे दिनों में रुलाती है
तो अच्छे दिनों  में हसाती है
समय समय  में तडपाती है
तो कभी कभी मुस्कुराती है

ज़िन्दगी एक पहेली है
समझ जाओ तो  एक सहेली है

पाठ नए नए पढ़ाती है
हमेशा कुछ नया सिखाती है
कभी पुरानी यादे ताजा कर जाती है
तो कभी भविष्य की चेतावनी दे जाती है

ज़िन्दगी एक पहेली है
समझ जाओ तो एक सहेली है




पर खुद को बदलने से मै डरता हु (I have been afraid of changing myself)

दुनिया  बदलने की ख्वाहिश मै रखता हु
पर खुद को बदलने से मै डरता हु

परिवर्तन तो तब आएगा
जब ऐशो आराम की ज़िन्दगी को छोड़ा जायेगा
दर्द के साथ जीना होगा
हर गम को पीना होगा

दुनिया  बदलने की ख्वाहिश मै रखता हु
पर खुद को बदलने से मै डरता हु

ज्ञान को बढाना होगा
अज्ञानता को दूर भगाना होगा
अग्निपथ पे बढते जाना होगा
मुश्किलों से टकराना होगा

दुनिया  बदलने की ख्वाहिश मै रखता हु
पर खुद को बदलने से मै डरता हु

सादा जीवन बिताना होगा
उच्च विचार बनाना होगा
माया मोह का त्याग कर जाना होगा
सन्यास धर्म अपनाना होगा

दुनिया  बदलने की ख्वाहिश मै रखता हु
पर खुद को बदलने से मै डरता हु


Tuesday, 19 June 2012

परीक्षा

परीक्षा हमें डराती है
रातों को जगाती है

बड़ी बड़ी किताबों में छोटे छोटे नियम
रेत के ढेर में सुई ढूढने जैसे करम
पास्कल का नियम हो या न्यूटन का
ये सब कारण है हमारे घुटन का
परीक्षा हमें डराती है
रातों को जगाती है

रेखागणित समझ नहीं आता
प्रश्न हल करते वक़्त है अँधेरा छाता
इतिहास तो नहीं होता याद
आखिर किससे करे हम फरियाद
परीक्षा हमें डराती है
रातों को जगाती है

भूगोल के अक्षांश देशांश
करते है हमको परेशान
संस्कृत के शब्द है कठिनतम
जिसको याद नहीं कर पाते हम
परीक्षा हमें डराती है
रातों को जगाती है

अंग्रेजी का बोझ भारी है
क्योकि परायी भाषा ये हमारी है
हिंदी हमको प्यारी है
क्योकि मातृभाषा ये हमारी है
परीक्षा हमें डराती है
रातों को जगाती है

सोचता हु कवि बन जाऊ (I have been thinking of becoming a poet)

जी करता है कुछ ऐसा कर जाऊ
की जग में अपना नाम कमाऊ
सोचता हु की कवि बन जाऊ
अच्छी कविताये लोगो को सुनाऊ
पर समझ नहीं आ रहा क्या लिखू
किस चीज़ के बारे में कहू
सकारात्मक लिखू या नकारात्मक
हास्यास्पद लिखू  या व्यंग्यात्मक
लिखने के लिए बहुत सारे विषय है
तेजी से बीत रहा समय है
चलो आमजन की ज़िन्दगी को चुनता हु
क्योकि इस विषय पर बहुत कम सुनता हु
नया होता है रोज इनकी ज़िन्दगी में
भले ही रहते है ये गन्दगी में
उच्च आदर्शो में ये चलते है
भले ही रोज गिरते गिरते सम्हलते है
जीवन में खूब संघर्ष ये करते है
दिनभर मेहनत करके दो वक्त का पेट भरते है

एक शाम बड़ी सुहानी थी (A evening was very pleasant )

एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

सूरज धीरे धीरे ढल रहा था
देख के उसको मेरा दिल मचल रहा था
आसमान में लालिमा छाई थी
प्रकृति सबसे सुन्दर रूप में आई थी
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

समुन्दर किनारे बैठे थे हम
दोस्तों के बीच बाँट रहे थे गम
लहरे गुनगुना रही थी
दिल में हलचल मचा रही थी
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

शुरू जब चुटकुलों का दौर हुआ
ठहाको का शोर चारो ओर हुआ
मौसम का लुफ्त उठाया हमने
जब मिलकर गीत गाया सबने
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

Monday, 18 June 2012

थक कर रुकना न कभी यूँही डगर में

थकान तो लगती है सभी को
यूँही सफ़र में
पर थककर रुकना न कभी
यूँही डगर में
मुश्किलों से भरी है राहें तेरी
पर ये बात मान ले मेरी
हथियार कभी डालना नहीं
हार कभी मानना नहीं
थकान तो लगती है सभी को
यूँही सफ़र में
पर थककर रुकना न कभी
यूँही डगर में
जो रुकता नहीं राहों में
जीत होती है उसकी बांहों में
तू हर वक़्त रह तैयार
तेरी ही ओर चलेगी हर बयार
थकान तो लगती है सभी को
यूँही सफ़र में
पर थककर रुकना न कभी
यूँही डगर में
तूफान तेरा रास्ता क्या रोक पायेगा
जब तू हिम्मत से बढ़ता जायेगा
समुन्दर की लहरे भी तेरा रास्ता न रोक पाएंगी
तेरा हौसला तेरी नाव को किनारे तक लायेंगी
थकान तो लगती है सभी को
यूँही सफ़र में
पर थककर रुकना न कभी
यूँही डगर में

Friday, 15 June 2012

ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है (Life tends to be incomplete)

ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

समझ नहीं आ रहा किसकी तलाश है
क्यों लगता हर समय प्यास है
अँधेरे में रौशनी की तलाश है
तो उजाले में छाया की आस है
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

हमेशा कुछ नया करने की सोचता हु
पर पुरानी गलियों में ही भटकता हु
ज़िन्दगी खाली खाली सी लगती है
ऐसा क्या है जिसको पाने के लिए भटकती है
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

मंजिल मेरे लिए नहीं है
सोचकर रास्ता बदल जाता हु
किस मंजिल को पाने की कोशिश करू
मै समझ नहीं पाता हु
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

उठो जागो और संघर्ष करो (Wake up and fight)

उठो जागो और संघर्ष करो
मुश्किलों के दर्द पर तुम हर्ष करो

कंटीली है राहें बहुत
पर तुझे रुकना नहीं है
दुश्मन करेगा झुकाने की कोशिश बहुत
पर तुझे झुकना नहीं है
उठो जागो और संघर्ष करो
मुश्किलों के दर्द पर तुम हर्ष करो

भारत पहुंचे शीर्ष पर
रखो मन में केवल यही ध्येय
जो भी कठिनाई आये राहो में
कर ले तू उस पर विजय
उठो जागो और संघर्ष करो
मुश्किलों के दर्द पर तुम हर्ष करो

काम ऐसा कर की न रहे
नामोनिशान यहाँ भ्रष्टाचार का
पढ़ा दे पाठ आज तू
दुनिया को सदाचार का
उठो जागो और संघर्ष करो
मुश्किलों के दर्द पर तुम हर्ष करो

हर अन्याय का दे तू मुहतोड़ जवाब
हर एक दर्द का मांग ले हिसाब
हिम्मत से बढता रह इस राह पर
आसान होते जायेगा ये डगर
उठो जागो और संघर्ष करो
मुश्किलों के दर्द पर तुम हर्ष करो 



Wednesday, 13 June 2012

कि देश आज बलिदान मांग रहा है (The country is asking for sacrifice)

कि देश आज बलिदान मांग रहा है
रिश्वतखोरी हो रही आज हर जगह
दे रहा आज हर व्यक्ति एक दुसरे को दगा
भ्रष्टाचारियो को मिले जल्दी सजा
ऐसा अंजाम मांग रहा है
कि देश आज बलिदान मांग रहा है
चारो ओर हाहाकार मचा है
जुल्म के खिलाफ बोलना एक सजा है
न्याय मिले हर किसी को
ऐसा संविधान मांग रहा है
कि देश आज बलिदान मांग रहा है
महंगाई लोगो को तडपा रही है
कीमते आसमान छू जा रही है
मुनाफाखोरी पर लगे पूरी रोक
ऐसा कानून मांग रहा है
कि देश आज बलिदान मांग रहा है

Sunday, 10 June 2012

जुनून (Passion)

दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

बादलो की गडगडाहट सुनाई नहीं देती
सूरज की तेज रौशनी दिखाई नहीं देती
कुछ इस कदर खो गया हु मै
की लगता पूरा जग पराया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

हर शाम सुहानी लगती है
हर रात दीवानी दिखती है
अब तो ऐसा लग रहा है मुझे
की बाते कर रही मुझसे मेरा साया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

चिडियों की चहचाहट भाती है
तो नदिया भी कल कल गाती है
जाने क्या हुआ मेरे साथ
जो इस तरह की दीवानगी लाया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है
 

समय आ पंहुचा है लड़ने का (The time has come to fight)

समय आ पंहुचा है लड़ने का
अन्यायी और अत्याचारियों से झगड़ने का

यु चुपचाप अगर हम सहते रहे
तो ये जुल्म ख़तम न होगा
यु आँखें मूंदे अगर हम बैठे रहे
तो इस सितम का अंत न होगा
समय आ पंहुचा है लड़ने का
अन्यायी और अत्याचारियों से झगड़ने का

महंगाई बहुत बढ़ा रहे है
हमें आपस में लड़ा रहे है
जाति धर्म का भेद बता रहे है
हमें नफरत सिखा रहे है
समय आ पंहुचा है लड़ने का
अन्यायी और अत्याचारियों से झगड़ने का

देश को लूटना मकसद है इनका
बेच रहे है हर एक तिनका
झूठी बातो में बहलाते है
और संसद में पहुच जाते है
समय आ पंहुचा है लड़ने का
अन्यायी और अत्याचारियों से झगड़ने का


  

Friday, 8 June 2012

जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी

जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना सताएगी ये ज़िन्दगी

सूरज की तरह अपने आप में जल रहा हु मै
बर्फ की तरह तिल तिल कर पिघल रहा हु मै 
टुकडो में जी रहा हु , गिर गिर सम्हाल रहा हु मै
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना रुलाएगी ये ज़िन्दगी

हर लड़ाई मै हार जाता हु
कुछ न हासिल मै कर पाता हु
अब की बार विजय ,अपने दिल को समझाता हु
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना तडपायेगी ये ज़िन्दगी

सोचता हु जो उससे उल्टा हो जाता है
जो पास होता है वो भी खो जाता है
क्यों हो रहा है ये मेरे साथ मै न समझ पाता हु
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना सताएगी ये ज़िन्दगी 

एक दोराहे पर खड़ा हु मै (I have been at a crossroad)

एक दोराहे पर खड़ा हु मै
समझ नहीं आ रहा किधर जाऊ

एक रास्ता अन्याय सहने पर मजबूर करता है
तो दूसरा अन्याय के विरुध्द लड़ने पर गुरुर करता है
एक रास्ता नियति पर भरोसा करता है
तो दूसरा अपनी किस्मत खुद लिखने पर
एक दोराहे पर खड़ा हु मै
समझ नहीं आ रहा किधर जाऊ

एक रास्ता गुमनामी की तरफ ले जाता है
पर दुसरे में ज़िन्दगी का भरोसा नहीं
दुसरे रास्ते में मुश्किलें है बहुत
तो पहले में मंजिल का पता नहीं
एक दोराहे पर खड़ा हु मै
समझ नहीं आ रहा किधर जाऊ

एक रास्ता मोह में बांधे रखता है
तो दूसरा विरक्ति की ओर ले जाता है
एक रास्ता सुकून की ज़िन्दगी गुजारने वाला है
तो दूसरा हर पल नया करने वाला है
एक दोराहे पर खड़ा हु मै
समझ नहीं आ रहा किधर जाऊ

Thursday, 7 June 2012

पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

दर्द मिलते है राहो पे हज़ार
पर सारे दर्द को मै पीता हु
तू अन्याय को सहता है
मै अन्याय के विरुध्द लड़ता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

तू मुश्किलों से समझौता कर लेता है
मै मुश्किलों से लड़ा करता हु
तू खाने के लिए जीता है
मै जीने के लिए खाता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

तू थोडा सा दुःख झेल नहीं पाता
मै हजारो दर्द सीने में दबाये खुश रहता हु
तू ऐशो आराम के लिए पैसे कमाता है
मै अपनी कमाई से जरुरत पूरी कर आनंदित रहता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु


Wednesday, 6 June 2012

व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है (The time has come to change the system)

व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है
भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है

मुनाफाखोरी की बीमारी लगी सभी को
महंगाई से जनता त्रस्त हो गई तभी तो
न्याय मिलने में देरी हो रही है
राष्ट्रिय संपत्ति चोरी हो रही है
व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है
भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है

सडको का हाल बेहाल है
दूर दूर तक न कोई अस्पताल है
सरकार आँखे मूंदे बैठी है
चोरो का अड्डा तो पुलिस चौकी है
व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है
भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है

नौकरशाही सब पे भारी है
हर एक को रिश्वतखोरी की बीमारी है  
भ्रष्ट लोगो के खिलाफ जो आवाज़ उठाता है
बहुत जल्दी ही आवाज़ दबा दिया  जाता है
व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है
भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है

बारिश का मौसम (Rainy season)

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है
प्यासी  धरती  की  प्यास  बुझाती  है
धुलो  का  उड़ना  बंद  कर  जाती  है
मिटटी  की  भीनी  सुगंध  फैलाती  है
बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

भीषण  गर्मी  से  बचाती  है
शीतलता  हमें  दे  जाती  है
मुसलाधार  प्रहारों  से  पतझड़  को  भागाती  है
बहारो  का  मौसम  लाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

चारो  ओर  हरियाली  फैलाती  है
नदियों  का  पानी  बढाती  है
तालाबो  को  भर  जाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

बारिश  के  चलते  ही  खेती  हो  पाती  है
किसानो  के  होठो  पे  मुस्कान  ये  लाती  है
रिमझिम  फुहारों  से  सुखा  मिटाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

मोरो  को  नचाती  है
पहाड़ो  में   फूल  खिलाती  है
बीजो  से  नए  पौधे  उगाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

अनमोल वचन (Precious Speech )

कोई  रोके  कितना  भी
पर  तुम  कभी  रुकना  नहीं
कोई  झुकाए  कितना  भी
पर  तुम  कभी  झुकना  नहीं
कोई  भड़काए  कितना  भी
पर  तुम  कभी  भडकना  नहीं
कोई  बहकाए  कितना  भी
पर  तुम  कभी  बहकाना  नहीं
कोई  डराए  कितना  भी
पर  तुम  कभी  डरना  नहीं
कोई  करे  अन्याय  तो
तुम  कभी  सहना  नहीं
भ्रश्चार  से  लाभ  हो  कितना  भी
पर  तुम  कभी  करना  नहीं
खेल  बुजदिलो  सा
तुम  कभी  खेलना  नहीं
झूठ  भूलकर  भी
तुम  कभी  बोलना  नहीं
गलत  रास्ते  पर
तुम  कभी  चलना  नहीं
कडवे  बोल
तुम  कभी  कहना  नहीं
बीच  रास्ते  से
तुम  कभी  मुड़ना  नहीं 

Monday, 4 June 2012

मंजिल तो मिल ही जाती है (The goal is to get )

तुझे अब नहीं रोना है
समय एक पल भी नहीं खोना है

जो हुआ उसे भूल जा
लक्ष्य पर नज़रे टिका
कदम कदम बस बढते जा
लक्ष्य का नशा चढ़ा

पीछे मुड़कर न देख कभी
बाधाओं को पार कर जा सभी
हो दर्द तो मत कराह कभी
झेल जा दर्द सभी

हर मोह का तू त्याग कर
हमेशा के लिए बन जा निडर
सोचता है जो करके बता
दुनिया को जीत के दिखा

राह आसान होते जायेगा
जब तू हिम्मत से बढ़ता जायेगा
जो भी मुश्किल आएगा
तू जीतता चला जायेगा

बीते लम्हों का न कर अफ़सोस तू
भर अपने में जोश तू
कभी हार के रुकना नहीं
मुश्किलों में झुकना नहीं

मंजिल तो मिल ही जाती है
बस ज़रा सा तडपाती है

वीर तुम कहलाओगे (You will be called warrior )

कांच के जैसे सीने से
तुम मंजिल कैसे पाओगे

पत्थर सा सीना कर
तुम हर हाल में जीत जाओगे

कायरो सा जीना नहीं
अन्याय को मत सहनकर
लड़ते हुए गई जान अगर
तो शहीद तुम कहलाओगे

रखेंगे लोग याद तुझे
अमर तुम बन जाओगे

उठा हथियार अपनी
दुश्मनों का सर कलमकर
जीत गए तुम अगर
तो वीर तुम कहलाओगे

होगी चारो ओर तुम्हारी बाते
तुम प्रसिध्दि पाओगे

Sunday, 3 June 2012

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बतलाता हु
इसका सही मायने समझाता हु
पेड़ काटे जायेंगे अगर बेतहाशा
तो तापमान बढता रहेगा हमेशा
फैक्ट्री लगाये जा रहे रोज हज़ार
वायु प्रदुषण बढ रहा लगातार
कार्बन डाई आक्साइड अगर बढेगा
तो तापमान भी चढ़ेगा
तापमान के बढ़ने से
ग्लेशियर का बर्फ पिघल रहा
समुद्र किनारे के लोगो का
जीना मुश्किल कर रहा
जलवायु रहा बदल
भयंकर आंधिया रही चल 
एक तरफ जनसँख्या बढ रही
दूसरी तरफ रहने के लिए जमीने कम पड़ रही
ग्लोबल वार्मिंग को अगर काबू में लाना है
तो जन जन में इसके लिए जागरूकता फैलाना है
पेड़ो को कटने से बचाना है
चारो ओर हरियाली बढाना है

आपस की लड़ाई (Battle of interconnect)

तुम ये क्या कर रहे हो
दुश्मनों के बजाय आपस में लड़ रहे हो
उन्होंने फायदे के लिए बाटा हमें
छोटी सी बात समझ नहीं आ रही तुम्हे
लड़ाई जो तुम आपस में करोगे
तो इसका नुकसान भी तुम ही भरोगे
कोई और इसका फायदा उठाएगा
तुम्हारे हिस्से में कुछ न आयेगा
तुम जो इस तरह जियोगे
तो आगे कैसे बढोगे
भाई को भाई से ये आपस में लड़ाते है
दुसरो की मुर्गी में दाल अपनी गलाते है
अब भी वक़्त है सम्हल जाने का
न लड़कर इस पचड़े से बाहर आने का
मिलकर रहोगे तो होगी प्रगति
आपस में लड़ोगे तो होगी दुर्गति 

प्रदुषण (pollution)

बड़ी बड़ी चिमनियों से निकलता ये धुआं
है इंसानों की ज़िंदगी के लिए एक जुआ
धुल उडाती बड़ी गाड़ियां
फेफड़े के लिए है बीमारियाँ
प्रदुषण जो तेजी से बढ़ रहा है
नई नई बीमारियाँ पैदा कर रहा है
वाहनों की संख्या तेज रफ़्तार से बढ़ रही है
लोगो की मौत की नई परिभाषा गढ़ रही है
पेड़ रहे है तेजी से कट
जीवन प्रत्याशा रही है घट
प्रदुषण बढ़ रहा लगातार
फैक्ट्रिया जो खुल रही कई हज़ार
परमाणु उर्जा पे हो रहे हम निर्भर
विकिरण के साथ जीना हो रहा दुर्भर
नित नए हो रहे अविष्कार
ध्वनि प्रदुषण बढ़ा रहे लगातार
फैक्ट्रियो से छोड़े जा रहे अवशिष्ट
मिटटी खो रही अपनी गुण विशिष्ट
कचड़ा जो नदियों में डाला जा रहा
जल प्रदुषण फैला रहा
रोकना है अगर प्रदुषण बढ़ने की गति 
तो उपयोग में लाना होगा अपना मति 
सीमित रखो अपना उपयोग 
मत करो संसाधनों का दुरूपयोग  

Saturday, 2 June 2012

जन लोकपाल बिल(Jan Lokpal Bill)

भ्रष्टाचार की फैली महामारी है
हर एक को रिश्वत लेने या देने की बीमारी है
कब होगा भारत भ्रष्टाचार मुक्त
समय आ गया है जब सब हो जाये एकजुट
अब तो ऐसे भारत का निर्माण होगा
जिसमे भ्रष्टाचार का न नामोनिशान होगा
पहले व्यवस्था परिवर्तन लाना है
जनलोकपाल बिल पास कराना है
लोकपाल को सबके ऊपर बिठाना है
हर भ्रष्टाचारी को जेल के अंदर पहुचाना है
भ्रष्टाचारियो को मिलने लगेगी कड़ी सजा
फिर न देगा कोई किसी को दगा
इसलिए आओ हम सब मिलकर लगाये ये नारा
जन लोकपाल बिल पास हो हमारा

कालाधन (Black Money)

कालाधन  अगर  वापस  आएगा
तो  देश  फिर  से  सोने  की  चिड़िया  कहलायेगा 
प्रगति  की  राह  में  बढ़ता  चला  जायेगा 
महंगाई  भी  स्थिर  हो  जायेगा 
सबको  रोजगार  भी  मिल  जायेगा 
कालाधन  अगर  वापस  आएगा
तो  देश  फिर  से  सोने  की  चिड़िया  कहलायेगा
कही  से  भी  न  ऋण  लेना  होगा
किसी  को  न  टैक्स  देना  होगा
आधारभूत  संरचना  होगी  मजबूत
मिलेगा  जो  हमें  धन  अकूत
कालाधन  अगर  वापस  आएगा
तो  देश  फिर  से  सोने  की  चिड़िया  कहलायेगा
निर्यात  फिर  बढ़ने  लगेगा
आयात भी घटने  लगेगा
फिर  न  रहेगा  कोई  गरीब
हर  हाथ  को  काम  होगा  नसीब
कालाधन  अगर  वापस  आएगा
तो  देश  फिर  से  सोने  की  चिड़िया  कहलायेगा
सड़के  हमारी  भी  चमकेंगी
आईने  की  तरह  झलकेंगी
भुखमरी से  न  होगी  मौत
संसाधनों  का  होगा  भरपूर  उपयोग
कालाधन  अगर  वापस  आएगा
तो  देश  फिर  से  सोने  की  चिड़िया  कहलायेगा 

Friday, 1 June 2012

रिश्वतखोरों को न दो तुम पुरस्कार (Don't Give Prize To Bribe-takers)

रिश्वतखोरो को न दो तुम पुरस्कार
सब मिलकर करो इनका बहिष्कार
कर रहे ये भ्रष्टाचारी भारत को बीमार
इनको तो करना है अब लाचार
तब जाके होगा भारत का उध्दार
भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना होगा साकार
रिश्वतखोरो को न दो तुम पुरस्कार
सब मिलकर करो इनका बहिष्कार
बढ रहा ये भ्रष्टाचार
ले रहा बड़ा आकार
कुछ दिनों में हो जायेगा दैत्याकार
मत करो तुम इन बेईमानो को स्वीकार
रिश्वतखोरो को न दो तुम पुरस्कार 
सब मिलकर करो इनका बहिष्कार
दीमक की तरह खाय जा रहा ये भ्रष्टाचार
महंगाई बढ रही लगातार
मचा रहा जो ये हाहाकार
कर दो तुम इनको निराधार
रिश्वतखोरो को न दो तुम पुरस्कार
सब मिलकर करो इनका बहिष्कार


अगर भ्रष्टाचार को करना है ख़तम ( If Corruption is to eliminate)

अगर भ्रष्टाचार को करना है ख़तम
तो लेनी होगी हम सबको ये कसम
की न रिश्वत लेंगे और न देंगे हम
मैंने तो ये ठानी है
रोकनी भ्रष्टाचारियो की मनमानी है
फिर बनने वाली एक कहानी है
इनको रोकते हुए जान तो मेरी जानी है
ये जानते हुए भी मै न रुकुंगा
भ्रष्टाचार को ख़त्म कर के रहूँगा
अब न मै कोई जुल्म सहूंगा
और न किसी को सहने दूंगा
इसके लिए हम सब को जागना पड़ेगा
रिश्वत देने की आदत को त्यागना पड़ेगा
सच्चा देशभक्त बनना पड़ेगा
हर बुराई से लड़ना पड़ेगा
तब जाके ख़त्म होगा ये भ्रष्टाचार
फिर न किसी पे होगा अत्याचार
आओ मिलकर करे पुकार
बंद करो ये भ्रष्टाचार
बंद करो ये भ्रष्टचार

Thursday, 31 May 2012

मेरा देश (My Country)

एक अनोखा देश हमारा
जो हमको प्राणों से प्यारा
उत्तर में है हिमालय विशाल
मध्य में है नदियों का जाल
पश्चिम में फैला मरुस्थल
पूरब में है भरा पूरा जंगल
एक अनोखा देश हमारा
जो हमको प्राणों से प्यारा
दक्षिण में है हिंद महासागर
पश्चिम में है अरब सागर
बंगाल की खाड़ी है पूरब में
देश हमारा प्रायदीप की सूरत में
एक अनोखा देश हमारा
जो हमको प्राणों से प्यारा
कई भाषा और बोलिया यहाँ पर
कई धर्म और मजहब जहा पर
कई छोटे द्वीप यहाँ पर
बड़े बड़े पठार जहा पर
एक अनोखा देश हमारा
जो हमको प्राणों से प्यारा

Wednesday, 30 May 2012

मुझे गुस्सा क्यों आता है (Why I Get Angry)

देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है 
ऊपर से जब किसी काम के लिए 
दस रूपये भेजा जाता है 
नीचे पहुचते पहुचते 
दस पैसे क्यों हो जाता है 
खुद के काम के लिए 
रिश्वत क्यों लिया जाता है 
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है
न्याय के लिए चक्कर
काटने क्यों पड़ते है
गोदामों में रखे हुए
अनाज क्यों सड़ते है
किसानो से भी ज्यादा
मुनाफाखोर क्यों कमाता है
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है
भ्रष्टाचारियो को सजा
क्यों नहीं मिल पाती
भारत तेजी से तरक्की
क्यों नहीं कर पाती
महंगाई हर चार दिन में
क्यों बढ़ जाता है
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है
वोट डालते वक़्त जनता
अक्ल क्यों नहीं लड़ाती है 
 मुजरिमों को संसद में
क्यों पहुचाती है
बेरोजगारों को रोजगार
क्यों नहीं मिल पाता है
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है
कई गरीब रात में
भूखा क्यों सो जाता है
बार बार शेयर मार्केट हमारा 
क्यों गिर जाता है 
जनसँख्या हमारी तेजी से 
क्यों बढ़ जाता है 
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है
भारत ओलंपिक में कोई
मेडल क्यों नहीं पाता है
क्रिकेट के खेल को इतना
बढ़ावा क्यों दिया जाता है
हाकी के खेल को हरकोई
क्यों नहीं अपनाता है
देश की हालत देखकर 
मुझे गुस्सा क्यों आता है   
 

Tuesday, 29 May 2012

सबसे प्यारा गाँव हमारा (Our fondest village)

सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
स्वच्छ हवा बहती यहाँ है
स्वच्छ जल मिलती यहाँ है
खेत खलिहानों से भरा पूरा गाँव है
यहाँ हर तरफ पेड़ो की छाँव है
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
हर त्यौहार को उल्लास से मनाते है
बड़े बड़े तालाबो में नहाने हम जाते है
पर्यावरण का  ख्याल हम रखते
पेड़ो की रखवाली हम करते
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
बड़ो का यहाँ है आदर सम्मान
मुझको है अपने गाँव पे अभिमान
सादगी से सब जीवन जीते
गायो का पौष्टिक दूध सब पीते
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा

मै असफल क्यों हु ? (Why am I failing)

मै बार बार असफल क्यों हो जाता हु 
बार बार ऐसी कौन सी गलती कर जाता हु 
शायद सफल होने के लिए पूरी ताक़त नहीं लगाता हु 
अधूरी तैयारी के साथ परीक्षा देने जाता हु 
अभ्यास करने में कामचोरी दिखाता हु 
इसलिए मै कुछ लिख नहीं पाता हु 
अब से पूरा अभ्यास करूँगा 
पूरी तैयारी के साथ ही परीक्षा दूंगा 
सभी प्रश्न मै हल करूँगा 
तब जाकर मै सफल होऊंगा

यादें (Memories)

कुछ पल बहुत याद आते है 
जो हमको तड़पा जाते है 
अपनी यादे  ताजा कर जाता हु 
आपको एक दास्ताँ सुनाता हु 
बात उस समय की है जब मै स्कुल जाया करता था 
तालाबो में मज़े से नहाया करता था 
दोस्तों में मेरा एक दोस्त था मुन्ना 
रहता था हरदम चौकन्ना 
हमेशा हसी मजाक किया करता था 
ज़िन्दगी को भरपूर जिया करता था 
लेकिन वक़्त ने ऐसी पलटी खाई 
उसने मौत को गले लगाई
जाने वो क्या कर गया 
हम दोस्तों के सीने में दर्द भर गया 
वो हमें आज भी याद आता है 
आँखों में आंसू दे जाता है 
कुछ पल बहुत याद आते है 
जो हमको तड़पा जाते है

जनसंख्या (Population)

जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
खाद्द्यान्न संकट खड़ा हो गया
उर्जा संकट बढ़ा हो गया
भुखमरी चारो ओर बढ़ी
गरीबी की समस्या सामने खड़ी
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
बेरोजगारी हताशा ला रही
आर्थिक संकट की चिंता खाय जा रही
महंगाई तेजी से बढ़ रही
आम लोगो का जीना मुश्किल कर रही
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा
जनता को न्याय नहीं मिल रहा
जंगल काटे जाते है
पेड़ न कोई लगाते है
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
चारो ओर प्रदुषण बढ़ते जा रहा
नई नई बीमारिया फैला रहा
खतरे में है वन्यजीवों का जीवन
हो रहे रोज उनपर नए नए सितम
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
हमें इन समस्यायों से निजात पाना होगा
जनसंख्या के बढ़ने पे अंकुश लगाना होगा
हमें कुछ तो कदम उठाना होगा
छोटा परिवार , सुखी परिवार का नारा लगाना होगा

Monday, 28 May 2012

इस बार की गर्मी (Summer of this time)

इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
तपती धुप जला रही है
लू के थपेड़े झुलसा रही है
जंगल धू धूकर जल रहे है
ग्लेशियर के बर्फ पिघल रहे है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी  
ग्लोबल वार्मिंग के सही मायने समझा रही है
पेड़ो के कटने का दुष्परिणाम बता रही है
तेज हवा घरो के छत उड़ा रही है
धुल के गुब्बार बवाल मचा रही है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
पंखे और कूलर के बिना दिन नहीं कट रहे है
राहगीर पेड़ो की छाव ढूंढ़ रहे है
पसीने से कपडे भीग जा रहे है
गर्मी से पानी उबल सा जा रहा है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी  

Sunday, 27 May 2012

डर (Fear)

हर काम को पहली बार करने से डर लगता है
डर के कारण पसीना छूटने लगता है
जब मै पहली बार स्कुल गया मै डरा
जब मै पहली बार साइकिल चलाया मै डरा
जब मै पहली बार घर से बाहर के स्कुल में पढ़ा मै डरा
जब मै पहली बार कॉलेज गया मै डरा
नौकरी के लिए पहली बार साक्षात्कार में मै डरा
नौकरी में पहले दिन मै डरा
जब मै पहली बार बाइक में चढ़ा मै डरा
जब पहली बार शादी की बात हुई मै डरा
जब पहली बार लड़की देखने गया मै डरा
पहली बार जब किसी छोटे बच्चे को गोद में उठाया मै डरा
पहली बार जब भाषण दिया मै डरा
पहली बार बस की सवारी में मै डरा
पहली बार ट्रेन की सवारी में मै डरा
पहली बार कार की सवारी में मै डरा

गाँधी और भगत सिंह (Gandhi And Bhagat Singh)

मै जितना गाँधी को जानता हु
उतना ही भगत सिंह को भी मानता हु
गाँधी की सादगी मुझे भाती है
तो भगत की तीखी तेवर मुझे उकसाती है
गाँधी की सत्याग्रह मुझे पसंद है
तो कुर्बान होने की भगत के ललक में भी आनंद है
मै जितना गाँधी को जानता हु
उतना ही भगत सिंह को भी मानता हु
गाँधी का असहयोग सब पे भारी है
तो भगत के क्रांति के विचार के हम आभारी है
गाँधी का मौन उचित था
तो भगत का अंग्रेजो को डराना भी सही था
मै जितना गाँधी को जानता हु
उतना ही भगत सिंह को भी मानता हु
गाँधी को महात्मा पुकारना अच्छा लगता है
तो भगत को शहीद -ए-आजम बुलाना सच्चा लगता है
गाँधी राष्ट्र के पिता है
तो भगत युवाओ के जान है
गाँधी और भगत दोनों महान है
मै जितना गाँधी को जानता हु
उतना ही भगत सिंह को भी मानता हु

Friday, 25 May 2012

देश की हालत

देख वतन का हाल
बहती है अश्क की धार
जनता को ही लुट रही
जनता की चुनी सरकार

अपराधियों से भरी संसद
कानून दिखती लाचार
रिश्वत की लत लगी सभी को
हर ओर फैला भ्रष्टाचार

चोर पुलिस है भाई भाई
आम जनता सहती अत्याचार
ईमानदारों का मुँह है बंद
बेईमानों को मिलता पुरुस्कार

जिसने भरा सबका पेट
वो सहता महंगाई की मार
अमीरों के साथ है दुनियां
गरीब हो गए है निराधार

छीन किसानों की जमीनें
हो गए कई मालदार
जिसने की आवाज़ बुलंद
पहुँच जाता है वो कारागार

रुकना नहीं (Don't Stop)

तेरी हर वार को हथियार बना तुझपे ही उलटवार करूँगा
कोई  मेरे वतन से  खिलवाड़ करे नागवार करूँगा
न मै कोई जुल्म सहूंगा न ही सहने दूंगा 
हर जुल्म और अत्याचार का मुहतोड़ जवाब मै दूंगा
सर पे कफ़न  बांध जो निकला हु घर से
बिना मंजिल  पे पहुचे न आराम करूँगा
जो कोई भी  मेरा  रास्ता  रोकेगा 
उसका जीना मै हराम करूँगा    
तेरी हर वार को हथियार बना तुझपे ही उलटवार करूँगा
कोई   मेरे  वतन  से खिलवाड़  करे  नागवार   करूँगा
मुझे पता है राह में मुश्किलें आएँगी बहुत
पर हर मुश्किलों पे अपनी जीत का परचम लहराऊंगा
हार न मानूंगा इन मुश्किलों से मै कभी
और दुनिया को मुश्किलों  से जीतना सिखलाऊंगा
तेरी हर वार को हथियार बना तुझपे ही उलटवार करूँगा
कोई मेरे  वतन से खिलवाड़  करे नागवार करूँगा

दहेज़ एक अभिशाप (Dowry System A Curse)

दहेज़ एक अभिशाप है
दहेज़ लेना और देना दोनों पाप है

सपने संजोये बेटिया पिया के घर जाते है
पर दहेज़ के लोभी उसे बहुत रुलाते है
जब वह ये सब नहीं सह पाती है
तब आत्महत्या कर जाती है

दहेज़ एक अभिशाप है
दहेज़ लेना और देना दोनों पाप है

देश के अन्दर आज अगर लडकिया न होगी
तो पत्नी और माएं भी न होगी
लडकियों को सम्मान और अधिकार दिलाना है
दहेज़ के छाप को लोगो के मन से मिटाना है

दहेज़ एक अभिशाप है
दहेज़ लेना और देना दोनों पाप है

दिनोदिन लडकियों की संख्या में गिरावट आ रही है
क्युकी लोगो के दिलो में दहेज़ की चिंता सताए जा रही है
अगर दहेज़ की व्यवस्था हो जाये ख़तम
तो लडकियों और लडको की संख्या बराबर रहेगी हरदम

दहेज़ एक अभिशाप है
दहेज़ लेना और देना दोनों पाप है