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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday 28 December 2014

ख़ामोशी

3 comments:
किसी ने मुझसे कहा क्यों खामोश है इतना भुप्पी
अब तोड़ भी दे अपनी चुप्पी
मैंने कहा लोकतंत्र की हत्या देख रहा हूँ
उसके पुनर्जन्म की बाट जोह रहा हूँ
क्या गीता में श्रीकृष्ण की बात झूठी हो गई
अधर्म ही यहाँ रीति हो गई
खामोश हूँ मुझे खामोश ही रहने दो
बहुत की बोलने की कोशिश अब मुझे चुप रहने दो

उसने कहा याद कर इतने दिनों तक तु लड़ा
अब क्यों है चुपचाप खड़ा
इतने दिनों की तेरी मेहनत जायेगी व्यर्थ
ऐसा ना कर तु अनर्थ
मैंने कहा बात तुम्हारी सच्ची है
सोचने पर जचती है
तन के दुःख को बड़ा मान लिया
अब अपनी असलियत पहचान लिया
दौड़ दौड़ के गया था थक
छोटी मुश्किलों में ही गया था अटक
अब फिर से मुझको लड़ना है
अपनी किस्मत खुद गढ़ना है