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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

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Monday 16 July 2012

आवारा मन (Maverick Mind)

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आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी बर्फीले पहाड़ पर होता है
तो कभी समंदर के बीच
कभी इसे फूलों कि सुगंध भाती है
तो कभी घनघोर जंगल डराती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी उड़न खटोले पर होता है
तो कभी झीलों में नाव कि सैर करता है
कभी सुनता है नदियों कि कल कल
तो कभी देखता है मौसम कि हलचल

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी रिमझिम बारिश में भीगता है
तो कभी ठण्ड से सिहरता है
कभी हरियाली इसे लुभाती है
तो कभी गर्मी इसे झुलसाती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है


कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है (There is yet to fulfill some desires )

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कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
ठंडी बहती हवाओ में
दूर तक फैले झील में
दुधिया चांदनी रात में
नाव कि सैर अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
चारो ओर सुन्दर खिले फुल हो
पेडों की छाया इतनी घनी हो
कि दूर तक धुप न पहुचे जमीं पर
ऐसे घनघोर जंगल का भ्रमण अभी बाकी है
कुछ हसरते अभी पूरी करनी बाकी है
बर्फ कि चादर बिछी हो
ओलो कि बारिश जहाँ हो
ऊँची ऊँची पर्वत चोटियाँ घिरी हो
ऐसी जगह जाना अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है 

Friday 22 June 2012

प्रकृति बाते करती है मुझसे (Nature talks with me)

7 comments:
प्रकृति बाते करती है मुझसे
पानी कहती है
जिस रंग में मिलो उस रंग का हो जाओ
बादल कहती है
सुखा मिटाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे
हवा कहती है
बढते चले जाओ
आग कहती है
दुसरो के लिए अपने को जलाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे
पर्वत कहती है
अपने को ऊपर उठाओ
पेड़ कहती है
दुसरो को शीतलता पहुचाओ
प्रकृति बाते करती है मुझसे

प्रकृति (Nature)

55 comments:
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये कान के पास से गुजरती हवाओ की सरसराहट
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट
ये समुन्दर की लहरों का शोर
ये बारिश में नाचती मोर
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये चांदनी रात
ये तारों की बरसात
ये खिले हुए सुन्दर फूल
ये उड़ते हुए धुल
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये नदियों की कलकल
ये मौसम की हलचल
ये पर्वत की चोटियाँ
ये झींगुर की सीटियाँ
कुछ कहना चाहती है मुझसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है मुझसे


Tuesday 19 June 2012

एक शाम बड़ी सुहानी थी (A evening was very pleasant )

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एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

सूरज धीरे धीरे ढल रहा था
देख के उसको मेरा दिल मचल रहा था
आसमान में लालिमा छाई थी
प्रकृति सबसे सुन्दर रूप में आई थी
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

समुन्दर किनारे बैठे थे हम
दोस्तों के बीच बाँट रहे थे गम
लहरे गुनगुना रही थी
दिल में हलचल मचा रही थी
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

शुरू जब चुटकुलों का दौर हुआ
ठहाको का शोर चारो ओर हुआ
मौसम का लुफ्त उठाया हमने
जब मिलकर गीत गाया सबने
एक शाम बड़ी सुहानी थी
ठंडी पवन कर रही अपनी मनमानी थी

Sunday 10 June 2012

जुनून (Passion)

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दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

बादलो की गडगडाहट सुनाई नहीं देती
सूरज की तेज रौशनी दिखाई नहीं देती
कुछ इस कदर खो गया हु मै
की लगता पूरा जग पराया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

हर शाम सुहानी लगती है
हर रात दीवानी दिखती है
अब तो ऐसा लग रहा है मुझे
की बाते कर रही मुझसे मेरा साया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है

चिडियों की चहचाहट भाती है
तो नदिया भी कल कल गाती है
जाने क्या हुआ मेरे साथ
जो इस तरह की दीवानगी लाया है
दिल में एक तूफान सा आया है
कुछ नया करने का जुनून सा छाया है
 

Wednesday 6 June 2012

बारिश का मौसम (Rainy season)

13 comments:
बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है
प्यासी  धरती  की  प्यास  बुझाती  है
धुलो  का  उड़ना  बंद  कर  जाती  है
मिटटी  की  भीनी  सुगंध  फैलाती  है
बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

भीषण  गर्मी  से  बचाती  है
शीतलता  हमें  दे  जाती  है
मुसलाधार  प्रहारों  से  पतझड़  को  भागाती  है
बहारो  का  मौसम  लाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

चारो  ओर  हरियाली  फैलाती  है
नदियों  का  पानी  बढाती  है
तालाबो  को  भर  जाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

बारिश  के  चलते  ही  खेती  हो  पाती  है
किसानो  के  होठो  पे  मुस्कान  ये  लाती  है
रिमझिम  फुहारों  से  सुखा  मिटाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

मोरो  को  नचाती  है
पहाड़ो  में   फूल  खिलाती  है
बीजो  से  नए  पौधे  उगाती  है

बारिश  जब  आती  है 
ढेरो  खुशिया  लाती  है

Sunday 3 June 2012

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

1 comment:
ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बतलाता हु
इसका सही मायने समझाता हु
पेड़ काटे जायेंगे अगर बेतहाशा
तो तापमान बढता रहेगा हमेशा
फैक्ट्री लगाये जा रहे रोज हज़ार
वायु प्रदुषण बढ रहा लगातार
कार्बन डाई आक्साइड अगर बढेगा
तो तापमान भी चढ़ेगा
तापमान के बढ़ने से
ग्लेशियर का बर्फ पिघल रहा
समुद्र किनारे के लोगो का
जीना मुश्किल कर रहा
जलवायु रहा बदल
भयंकर आंधिया रही चल 
एक तरफ जनसँख्या बढ रही
दूसरी तरफ रहने के लिए जमीने कम पड़ रही
ग्लोबल वार्मिंग को अगर काबू में लाना है
तो जन जन में इसके लिए जागरूकता फैलाना है
पेड़ो को कटने से बचाना है
चारो ओर हरियाली बढाना है

प्रदुषण (pollution)

7 comments:
बड़ी बड़ी चिमनियों से निकलता ये धुआं
है इंसानों की ज़िंदगी के लिए एक जुआ
धुल उडाती बड़ी गाड़ियां
फेफड़े के लिए है बीमारियाँ
प्रदुषण जो तेजी से बढ़ रहा है
नई नई बीमारियाँ पैदा कर रहा है
वाहनों की संख्या तेज रफ़्तार से बढ़ रही है
लोगो की मौत की नई परिभाषा गढ़ रही है
पेड़ रहे है तेजी से कट
जीवन प्रत्याशा रही है घट
प्रदुषण बढ़ रहा लगातार
फैक्ट्रिया जो खुल रही कई हज़ार
परमाणु उर्जा पे हो रहे हम निर्भर
विकिरण के साथ जीना हो रहा दुर्भर
नित नए हो रहे अविष्कार
ध्वनि प्रदुषण बढ़ा रहे लगातार
फैक्ट्रियो से छोड़े जा रहे अवशिष्ट
मिटटी खो रही अपनी गुण विशिष्ट
कचड़ा जो नदियों में डाला जा रहा
जल प्रदुषण फैला रहा
रोकना है अगर प्रदुषण बढ़ने की गति 
तो उपयोग में लाना होगा अपना मति 
सीमित रखो अपना उपयोग 
मत करो संसाधनों का दुरूपयोग  

Tuesday 29 May 2012

सबसे प्यारा गाँव हमारा (Our fondest village)

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सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
स्वच्छ हवा बहती यहाँ है
स्वच्छ जल मिलती यहाँ है
खेत खलिहानों से भरा पूरा गाँव है
यहाँ हर तरफ पेड़ो की छाँव है
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
हर त्यौहार को उल्लास से मनाते है
बड़े बड़े तालाबो में नहाने हम जाते है
पर्यावरण का  ख्याल हम रखते
पेड़ो की रखवाली हम करते
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा
बड़ो का यहाँ है आदर सम्मान
मुझको है अपने गाँव पे अभिमान
सादगी से सब जीवन जीते
गायो का पौष्टिक दूध सब पीते
सबसे प्यारा गाँव हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा

Monday 28 May 2012

इस बार की गर्मी (Summer of this time)

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इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
तपती धुप जला रही है
लू के थपेड़े झुलसा रही है
जंगल धू धूकर जल रहे है
ग्लेशियर के बर्फ पिघल रहे है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी  
ग्लोबल वार्मिंग के सही मायने समझा रही है
पेड़ो के कटने का दुष्परिणाम बता रही है
तेज हवा घरो के छत उड़ा रही है
धुल के गुब्बार बवाल मचा रही है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
पंखे और कूलर के बिना दिन नहीं कट रहे है
राहगीर पेड़ो की छाव ढूंढ़ रहे है
पसीने से कपडे भीग जा रहे है
गर्मी से पानी उबल सा जा रहा है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी  

Monday 21 May 2012

पर्यावरण (Environment)

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पर्यावरण को बचाना हमारा ध्येय हो
सबके पास इसके लिए समय हो
पर्यावरण अगर नहीं रहेगा सुरक्षित
हो जायेगा सबकुछ दूषित
भले ही आप पेड़ लगाये एक
पूरी तरह करे उसकी देखरेख
सौर उर्जा का करे सब उपयोग
कम करे ताप विद्युत् का उपभोग
रासायनिक खाद का कम करे छिडकाव
भूमि को प्रदूषित होने से बचाव
कचड़ो का समुचित रीती से करो निपटारा
फिर न होगी कोई नदी प्रदुषण का मारा
फैक्ट्रियो में जब सौर यन्त्र लगाई जाएँगी
वायु प्रदुषण में अपने आप कमी आएँगी
तब जाकर पर्यावरण प्रदुषण में कमी आएँगी
आधी बीमारिया अपने आप चली जाएगी 

Monday 14 May 2012

बारिश (Rain)

4 comments:
आसमान पर छाई है काली घटाएँ
सूरज भी जा छुपा है बादलों के साये 

तेज बहती पवन और पत्तों की सरसराहट 
लगती है ऐसे जैसे हो तूफ़ान की आहट

चकाचौंध रौशनी सी बिजली की चमक 
बादलों की गडगडाहट और बूंदों की धमक 

पहली बारिस की बुँदे मिट्टी की सौंधी महक 
सुखी तरसती धरती उठी है चहक 

कभी रिमझिम फुहार तो कभी मूसलाधार 
कभी थम के बरसता है तो कभी लगातार 

आवारा हवा (Strolling Air)

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मै एक आवारा हवा
नहीं मुझे किसी की परवाह 
उड़ता फिरता हू मै हर कहीं 
कभी बादलों के ऊपर
तो कभी पेडों की छाँव तले
कभी समुन्दर के लहरों से खेलता हू 
तो कभी पर्वतों को धकेलता हू 
कभी नदियों के संग बहता हू 
तो कभी पंक्षियों के संग उड़ता हू 
बर्फीली चादर को छू ठिठुरता हू 
लू के थपेडों से जलता हू 
कभी किसी के आंसुओ के संग गिरता हू 
तो कभी मुस्कुराते लबो को छूता हू 
कभी नावों में बैठ झीलों कि सैर करता हू 
कभी किसी पेड़ से बैर करता हू 
मै एक आवारा हवा 
नहीं मुझे किसी की परवाह