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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Monday, 28 May 2012

इस बार की गर्मी (Summer of this time)

इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
तपती धुप जला रही है
लू के थपेड़े झुलसा रही है
जंगल धू धूकर जल रहे है
ग्लेशियर के बर्फ पिघल रहे है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी  
ग्लोबल वार्मिंग के सही मायने समझा रही है
पेड़ो के कटने का दुष्परिणाम बता रही है
तेज हवा घरो के छत उड़ा रही है
धुल के गुब्बार बवाल मचा रही है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी
पंखे और कूलर के बिना दिन नहीं कट रहे है
राहगीर पेड़ो की छाव ढूंढ़ रहे है
पसीने से कपडे भीग जा रहे है
गर्मी से पानी उबल सा जा रहा है
इस बार की गर्मी जैसे
जान लेके जाएगी
ऐसा लग रहा है जैसे
ये कोई कयामत लाएगी