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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Saturday 13 October 2012

एक शख्स (अरविन्द केजरीवाल को समर्पित )

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एक शख्स ने हिला दी है जड़े
सिंहासन पर बैठने वालों की
रोशन हुई है उम्मीदें
नाउम्मीदगी में जीने वालों की

लुटते थे जो बेख़ौफ़ वतन को
काँपने लगे है उनके भी हाथ
हर सड़क, हर गली मुहल्ले में
होती है बस उसकी बात


Friday 12 October 2012

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे

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क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है


Thursday 11 October 2012

हम यकीन करे भी तो किसपर करे

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हम यकीन करे भी तो, किसपर करे 
यहाँ लोग दौलत के लिए, अपनों से दगा कर जाते है 

शराफत का चोला पहन, घूमते लोग 
बस्तियां उजाड़ते, नज़र आते है 

लोग कहते है जिसे, सच्चाई की मूरत 
वही लोगो से, ठगी करते हुए पाए जाते है 

रक्षक का तमगा ओढ़, फिरते है जो शान से 
भक्षक की तरह काम करते, नज़र आते है 

जनता की सेवा के लिए, सिंहासन पर बिठाया जिसे भी 
वही तानाशाहों की तरह, हुक्म फरमाते है 

जिन माँ-बाप ने मुश्किलों में पाला हमें 
लोग उन्ही माँ-बाप को, सड़क पर छोड़ जाते है 

सुबह शाम धर्म की बात करनेवाले 
अपनी तिजौरियों में, दान का पैसा छुपाते है 

पहरेदारी करना है जिनका काम 
वही चोरों से हिस्सा मांगते, नज़र आते है 

Wednesday 10 October 2012

सुबह का इंतज़ार

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छाया था घना कोहरा, काली अंधियारी रात,
सुबह का था इंतज़ार, कि हो सूरज से मुलाक़ात !
पल पल बीत रहे थे सदियों सी, सिंह रहा था दहाड़,
पतले वस्त्र थे तन पे और वो ठण्ड की मार !

कुंडली मारे सर्प, फन फैलाए रहा था फुफकार,
डर के भागे हम इधर उधर, चुभ गए कांटे कई हज़ार !
बिच्छू ने मारा डंक, पूरा विष हम पे दिया उतार,
विष धीरे धीरे चढ़ने लगा, हम किसको लगाते पुकार !

अजगर भी मुँह खोल बड़ा, सरक रहा था हमारी ओर,
समझ नहीं आ रहा था, भागे हम किस छोर !
सोचा पेड़ पर जाऊ चढ़, तो कम होगा साँप बिच्छू का डर,
कुछ दूर चढ़ा था ऊपर, पैर फिसला आ गिरा जमीं पर !

हाथ पांव थे सलामत,चोटिल हुआ कमर,
दर्द से दिल कराह उठा, दिमाग पर हुआ असर !
गिरा फिर उठ ना सका, हिम्मत दे गई जवाब,
चींटियों को मिल चूका था, पसंदीदा कबाब !

पेड़ के नीचे दर्द संग, फिर गुजरी पूरी रात,
धीरे धीरे सूरज उगने लगा, जगी थोड़ी सी आस!
धन्य है वो मानव , जिसने लिया मुझे देख,
वाहन की व्यवस्था कर, अस्पताल दिया भेज !

Tuesday 9 October 2012

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे

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कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे
नदियों की धार पलट जायेंगे
क्यों डरता है इन तानाशाहों से
इनके तो तख़्त और ताज उलट जायेंगे

कब तक सहेगा ये जुल्म और सितम
उठा संग हाथ हमारे सितमगर दूर छिटक जायेंगे
लुट रहे है ये सदियों से हमें
इनकी तिजौरियो में हमारे ताले लटक जायेंगे

Monday 8 October 2012

वो भगवान कहाँ है ?

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बैठा है दुर्योधन, हर गली मोहल्ले में
करता है रोज एक द्रोपती का चीरहरण
भरी महफ़िल में द्रोपती की लाज बचानेवाला
वो श्याम कहाँ है ? वो श्याम कहाँ है ?

है कंसो का राज यहाँ
करते है जनता पे अत्याचार
जनता का दुःख हरनेवाला
वो गोपाल कहाँ है ? वो गोपाल कहाँ है ?

है रावणों की भरमार यहाँ
जो करते है सीता का हरण
रावण के कब्जे से सीता को छुड़ानेवाला
वो राम कहाँ है ? वो राम कहाँ है ?

यहाँ मित्र ही मित्र को दे रहा दगा
हर कोई एक दूसरे को ठग रहा
सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ानेवाला
वो हनुमान कहाँ है ? वो हनुमान कहाँ है ?

हैवानियत और जुल्म चरम पर पहुंची
दम घुट रहा सच्चाई का
दुष्टों का संहारकर्ता सबका पालनहार
वो भगवान कहाँ है ? वो भगवान कहाँ है ?

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Sunday 7 October 2012

शहीदों का दर्द

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छलक आते होंगे आंसू शहीदों के
अपने वतन की हालत देखकर
सोचते होंगे क्यों मर गए हम
इन खुदगर्जो के लिए

सपना जो देखा था शहीदों ने
एक खुशहाल वतन बनाने का
आज बिक रहे है वतनवाले ही
चंद कागज के टुकडों के लिए

दर्द से भर जाता होगा उनका भी दिल
जब जब जमीं पर देखते होंगे
लहू से सींचा था जिस जमीं को
आज उनपर कांटे उगते हुए

ये बात तो उठती होगी उनके भी मन में
कि क्या सोचा था और क्या पाया
सुनहरे भविष्य के लिए दी थी कुर्बानी
अब शहीदों को याद भी किया जाता है तो दिखावे के लिए

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