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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 29 October 2013

एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग
लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश
शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर
पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नहीं रहा उतर

क्या ये मुल्क तेरा नहीं,या तु यहाँ रहता नहीं
दिखा दे आज दुनिया को, जिंदा है तु मुर्दा नहीं
घर के अंदर चीखने से, कुछ भी ना बदल पायेगा
आवाज़ वही खत्म हो जायेगी ,कोई सुन भी ना पायेगा

क्यों रोकता है अपने कदम, है तुझे किसका डर
इस लुट का तो हो रहा, तेरे घर पर भी असर
बुजदिली तुझमे भरी,या मुल्क से प्यार नहीं
इंतज़ार है खुदा का,या गद्दारी में हो शामिल कहीं

हौसलेवालों पर ही बरसती है खुदा की रहमत
एक कदम बढ़ाया ही नहीं, और कोसता है अपनी किस्मत
अगर प्यार है मुल्क से, तो अदा करो इसका नमक
कन्याकुमारी से दिल्ली तक, भर दो पूरा सड़क