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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Thursday 7 June 2012

पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

दर्द मिलते है राहो पे हज़ार
पर सारे दर्द को मै पीता हु
तू अन्याय को सहता है
मै अन्याय के विरुध्द लड़ता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

तू मुश्किलों से समझौता कर लेता है
मै मुश्किलों से लड़ा करता हु
तू खाने के लिए जीता है
मै जीने के लिए खाता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु

तू थोडा सा दुःख झेल नहीं पाता
मै हजारो दर्द सीने में दबाये खुश रहता हु
तू ऐशो आराम के लिए पैसे कमाता है
मै अपनी कमाई से जरुरत पूरी कर आनंदित रहता हु
ज़िन्दगी तो चलती तेरी भी है
पर मै ज़िन्दगी को जीता हु


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