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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Saturday, 20 October 2012

भ्रष्टाचार (corruption)

गहरी जमी है जड़े भ्रष्टाचार की
साफ़ नहीं दिखती नियत सरकार की
आरोप लगते है जब भ्रष्टाचार की
कहते है ये बात है बिना आधार की

एक चपरासी से लेकर अधिकारी तक
निजी से लेकर सरकारी तक
वकील से लेकर धर्माधिकारी तक
हो गए है सब भ्रष्ट, आम जनता है त्रस्त

राशन कार्ड की बात हो या वीजा कार्ड की
बात नहीं बनती बिना उपहार की
वृध्दावस्था पेंशन हो या विधवा पेंशन
बिना कमीशन होता है टेंशन

औद्योगिक घराना हो या कोई नेता
सबने मिलकर ही देश को लुटा
कालाधन का मामला हो या टैक्स चोरी की
खूब फायदा उठाते है कानून की कमजोरी की

घोटालों के लिए बनती है नई योजनाएं
नेता और अफसर मिलबांट कर खाए
किसानों की जमीन हड़प कर गए
देश को दीमक की तरह चट कर गए