आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी बर्फीले पहाड़ पर होता है
तो कभी समंदर के बीच
कभी इसे फूलों कि सुगंध भाती है
तो कभी घनघोर जंगल डराती है
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी उड़न खटोले पर होता है
तो कभी झीलों में नाव कि सैर करता है
कभी सुनता है नदियों कि कल कल
तो कभी देखता है मौसम कि हलचल
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी रिमझिम बारिश में भीगता है
तो कभी ठण्ड से सिहरता है
कभी हरियाली इसे लुभाती है
तो कभी गर्मी इसे झुलसाती है
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी बर्फीले पहाड़ पर होता है
तो कभी समंदर के बीच
कभी इसे फूलों कि सुगंध भाती है
तो कभी घनघोर जंगल डराती है
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी उड़न खटोले पर होता है
तो कभी झीलों में नाव कि सैर करता है
कभी सुनता है नदियों कि कल कल
तो कभी देखता है मौसम कि हलचल
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है
कभी रिमझिम बारिश में भीगता है
तो कभी ठण्ड से सिहरता है
कभी हरियाली इसे लुभाती है
तो कभी गर्मी इसे झुलसाती है
आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है