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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Friday, 8 June 2012

जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी

जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना सताएगी ये ज़िन्दगी

सूरज की तरह अपने आप में जल रहा हु मै
बर्फ की तरह तिल तिल कर पिघल रहा हु मै 
टुकडो में जी रहा हु , गिर गिर सम्हाल रहा हु मै
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना रुलाएगी ये ज़िन्दगी

हर लड़ाई मै हार जाता हु
कुछ न हासिल मै कर पाता हु
अब की बार विजय ,अपने दिल को समझाता हु
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना तडपायेगी ये ज़िन्दगी

सोचता हु जो उससे उल्टा हो जाता है
जो पास होता है वो भी खो जाता है
क्यों हो रहा है ये मेरे साथ मै न समझ पाता हु
जाने कहा ले जाएगी ये ज़िन्दगी
और कितना सताएगी ये ज़िन्दगी 

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