कोई रोके कितना भी
पर तुम कभी रुकना नहीं
कोई झुकाए कितना भी
पर तुम कभी झुकना नहीं
कोई भड़काए कितना भी
पर तुम कभी भडकना नहीं
कोई बहकाए कितना भी
पर तुम कभी बहकाना नहीं
कोई डराए कितना भी
पर तुम कभी डरना नहीं
कोई करे अन्याय तो
तुम कभी सहना नहीं
भ्रश्चार से लाभ हो कितना भी
पर तुम कभी करना नहीं
खेल बुजदिलो सा
तुम कभी खेलना नहीं
झूठ भूलकर भी
तुम कभी बोलना नहीं
गलत रास्ते पर
तुम कभी चलना नहीं
कडवे बोल
तुम कभी कहना नहीं
बीच रास्ते से
तुम कभी मुड़ना नहीं
पर तुम कभी रुकना नहीं
कोई झुकाए कितना भी
पर तुम कभी झुकना नहीं
कोई भड़काए कितना भी
पर तुम कभी भडकना नहीं
कोई बहकाए कितना भी
पर तुम कभी बहकाना नहीं
कोई डराए कितना भी
पर तुम कभी डरना नहीं
कोई करे अन्याय तो
तुम कभी सहना नहीं
भ्रश्चार से लाभ हो कितना भी
पर तुम कभी करना नहीं
खेल बुजदिलो सा
तुम कभी खेलना नहीं
झूठ भूलकर भी
तुम कभी बोलना नहीं
गलत रास्ते पर
तुम कभी चलना नहीं
कडवे बोल
तुम कभी कहना नहीं
बीच रास्ते से
तुम कभी मुड़ना नहीं
Very inspiring poem
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