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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Saturday, 13 October 2012

एक शख्स (अरविन्द केजरीवाल को समर्पित )

एक शख्स ने हिला दी है जड़े
सिंहासन पर बैठने वालों की
रोशन हुई है उम्मीदें
नाउम्मीदगी में जीने वालों की

लुटते थे जो बेख़ौफ़ वतन को
काँपने लगे है उनके भी हाथ
हर सड़क, हर गली मुहल्ले में
होती है बस उसकी बात



चर्चा ये आम है, हर कोई हैरान है
क्या वो आम इंसान है ? जिसने किया ये काम है
सीधे सादे वस्त्रों में रहनेवाला
कुछ खास नहीं पहचान है

पतला दुबला छोटा है कद
पर हिम्मत है उसमे बड़ी गजब
जब जब लगाया नारा है
हिलता ये जग सारा है 

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