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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Friday, 12 October 2012

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है



कितने आये और चले गए
पर इनके कानों में जूँ तक ना रेंगते है
कोई भले ही फ़ना हो जाए इन्हें जगाने के लिए
मगर ये करवट तक ना बदलते है

क्यों निकला है उस मंजिल को पाने के लिए
जहाँ तक जाता कोई रास्ता नहीं
हाँ पता है तुझे नतीजों की परवाह नहीं
पर इन लाशों में जान फूँकना भी आसान नहीं


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