क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है
कितने आये और चले गए
पर इनके कानों में जूँ तक ना रेंगते है
कोई भले ही फ़ना हो जाए इन्हें जगाने के लिए
मगर ये करवट तक ना बदलते है
क्यों निकला है उस मंजिल को पाने के लिए
जहाँ तक जाता कोई रास्ता नहीं
हाँ पता है तुझे नतीजों की परवाह नहीं
पर इन लाशों में जान फूँकना भी आसान नहीं
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है
कितने आये और चले गए
पर इनके कानों में जूँ तक ना रेंगते है
कोई भले ही फ़ना हो जाए इन्हें जगाने के लिए
मगर ये करवट तक ना बदलते है
क्यों निकला है उस मंजिल को पाने के लिए
जहाँ तक जाता कोई रास्ता नहीं
हाँ पता है तुझे नतीजों की परवाह नहीं
पर इन लाशों में जान फूँकना भी आसान नहीं
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