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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 9 October 2012

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे
नदियों की धार पलट जायेंगे
क्यों डरता है इन तानाशाहों से
इनके तो तख़्त और ताज उलट जायेंगे

कब तक सहेगा ये जुल्म और सितम
उठा संग हाथ हमारे सितमगर दूर छिटक जायेंगे
लुट रहे है ये सदियों से हमें
इनकी तिजौरियो में हमारे ताले लटक जायेंगे

अगर हम यूँही चुपचाप बैठे रहे
तो आने वाली पीढ़ी को क्या मुँह दिखायेंगे
इसलिए लगा आज संग जयघोष के नारे
दीवारों में भी दरारें पड़ जायेंगे

अभी भी वक्त है साथी युग बदलने का
मंजिल मिले ना मिले कोशिश तो करके जायेंगे
इस जंग ए आजादी में गई जान अगर
तो सदियों तक याद रखे जायेंगे 

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