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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 16 October 2012

लहू की धार बहना अभी बाकी है

अभी तो केवल आगाज है हुआ, राज़ से पर्दा गिराने का
जाने कितने राज़ का बेपर्दा होना अभी बाकी है

जुल्म और सितम का दौर अभी ठहरा नहीं है
दहकते अंगारों पर चलना अभी बाकी है

रहनुमा का नकाब लिए फिरते थे जो ज़ालिम
उनके चेहरों से नकाब का हटना अभी बाकी है

सिंहासन पर बैठे थे जो मुल्क को अपनी ज़ागीर समझकर
उन ज़ागीरवालों का सिंहासन से उतरना अभी बाकी है

सदियों से लुट रहे है जो वतन, वो अभी जिंदा है
उनको इस हिमाकत का सज़ा मिलना अभी बाकी है

लहू मांगती है जंग ए आज़ादी, धरती के सुर्ख लाल होने तक
अभी तो गिरा है थोड़ा ही लहू, लहू की धार बहना अभी बाकी है

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