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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Wednesday, 4 July 2012

एक अनाथ कि भावनाए (Feelings of an orphan)

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

अपना कोई है नहीं, पराया किसी को कहते नहीं
मिलता है जो खुशी से, मिलते है हम भी हँसी से
तन्हाई से है प्यार, किसी का न इंतज़ार
कभी शहर तो कभी पेशा बदल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

मेहनत कि खाता हू, चैन से सो जाता हू
घर कभी बनाया नहीं, रह लेता हू मै हर कही
करता हू काम सच्चाई से, प्यार है अच्छाई से
माँ कि ममता के लिए तिल तिल पिघल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू

गाडी बंगले का शौक नहीं, सादा जीवन ही सही
नहीं है मुझमे कोई व्यसन, जो भी कपडे मिल जाये लेता हू पहन
अनजान है ये डगर ,अनजान है ये सफर
देखकर दूसरे परिवारों को इर्ष्या से जल रहा हू

दुनिया कि भीड़ में, मै अकेला चल रहा हू
कभी उदास बैठा हू, तो कभी खुशी से उछल रहा हू


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