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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday, 1 July 2012

जाने किस गलती कि सजा पा रहा हू (What is the mistake being punished)

जाने किस गलती कि सजा पा रहा हू
क्यों मै ऐसे तड़प सा रहा हू
ज़हर जिंदगी का पिए जा रहा हू
क्यों मै ऐसे जिए जा रहा हू

रातो में चैन कि नींद नहीं मिलती
दिन में भी सुकून नहीं मिलती
हम काम करे तो कैसे करे
अब तो वो जूनून भी नहीं मिलती

अच्छे कामो के भी बुरे परिणाम निकल जाते है
सच बोलकर भी हम झूठे कहलाते है
अपनों के बीच में पराये हम बन जाते है
भीड़ में भी तन्हा हम अपने को पाते है

सब कुछ तो खो दिया है हमने
अब तो बहुत रो लिया है हमने
कब गुजरेगी ये काली रात
कब होगी खुशियों कि बरसात 

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