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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 19 June 2012

सोचता हु कवि बन जाऊ (I have been thinking of becoming a poet)

जी करता है कुछ ऐसा कर जाऊ
की जग में अपना नाम कमाऊ
सोचता हु की कवि बन जाऊ
अच्छी कविताये लोगो को सुनाऊ
पर समझ नहीं आ रहा क्या लिखू
किस चीज़ के बारे में कहू
सकारात्मक लिखू या नकारात्मक
हास्यास्पद लिखू  या व्यंग्यात्मक
लिखने के लिए बहुत सारे विषय है
तेजी से बीत रहा समय है
चलो आमजन की ज़िन्दगी को चुनता हु
क्योकि इस विषय पर बहुत कम सुनता हु
नया होता है रोज इनकी ज़िन्दगी में
भले ही रहते है ये गन्दगी में
उच्च आदर्शो में ये चलते है
भले ही रोज गिरते गिरते सम्हलते है
जीवन में खूब संघर्ष ये करते है
दिनभर मेहनत करके दो वक्त का पेट भरते है

1 comment:

  1. very beautiful poem ,heart touching poem

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