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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 14 May 2013

हम आम इंसान है

ना चमक है, ना दमक है,
ना जेब में सिक्कों की खनक है ,
बस पास एक कीमती ईमान है,
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !

सूरज देख निकलते है, शाम देख मुरझाते
राह में सीधे चलते है , दर दर ठोकर खाते
दुनिया की चतुराई से, हम तो अनजान है
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !

सिल लिए है होठ, जितनी भी लगे चोट
सोचा अपनी किस्मत में ही है खोट
जतन कर लिए तमाम है
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !


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