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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday, 22 July 2012

एक भीड़ निकली है सडको पे आज

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हर उम्र दराज के लोग है इसमें
है शब्दों में जोश भरा
सदियों बाद जगे है ये
इतिहास के पन्नों में नया पन्ना जोड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हो गई थी जुल्म कि इन्तहा
रो रोकर बहुत सह लिए
दास्तान-ए-दर्द सुनकर तो रुंह भी कपने लगे
आज खड़े है सड़कों पे अन्याय को जड़ से उखाड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

बिगुल तो फूंक चुके है लड़ाई की
अंजाम तक पहचाना अभी बाकी है
मांग रहे है हर एक दर्द का हिसाब
निकले है ये आज अपना भविष्य सुधारने

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

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