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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday, 15 July 2012

बेवफाई bewafai

बेवफाई ये कैसी कि है तुने
लुट के ले गई मेरा चैन और सुकून सारा
जाना ही था तो आई क्यों जिंदगी में
बड़ा दर्द दे रहा है ये खेल तुम्हारा

जान देते थे हम तेरी एक हँसी के लिए
तेरी हर मुस्कराहट था हमको प्यारा
जाने तुमने क्या सोचकर ये कदम उठाया
तुम न जाती तो एक सुन्दर सा घर होता हमारा

तेरे दिए दर्द से आँसू न रुक रहे है मेरे
तेरी जुदाई ने हर खुशियों को है मारा
तेरी याद मुझे तड़पा रही है
ढूँढ रहा हू मै कोई सहारा

दूर क्यों हो लौट आओ तुम
इंतज़ार है अभी भी समझ लो ये इशारा
तेरे लिए बदला था मैंने अपने को
ऐसा ही रहा तो कही मर न जाऊ मै  कुंवारा 

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