कोई चीखती लबों से , कह गयी बहुत कुछ
कुछ नींद से जागे है, कुछ अनसुना कर गये !
रोती होंगी रुंह भी, जमीं का मंजर देखकर
जो उठे थे हाथ, उनपर भी खंजर चल गये !
आसमां पर बैठ, सोचती होंगी वो दामिनी
इन ज़मींवालो के रगों में, पानी कैसे भर गये ?
आज दिल्ली में लुटेरे, बेख़ौफ़ लुटते है आबरू
पर पहरेदारों की चौकसी, कागजो में क्यों सिमट गये ?
सुन बहन की बिलखती आवाज़, भाई चुप बैठा है क्यों ?
रक्षाबंधन पर किया वादा, वो कैसे भूल गये ?
अब ना जागे सब तो , रुसवा होंगी इंसानियत
दिल की दबी बात, आज कलम कह गये !
कुछ नींद से जागे है, कुछ अनसुना कर गये !
रोती होंगी रुंह भी, जमीं का मंजर देखकर
जो उठे थे हाथ, उनपर भी खंजर चल गये !
आसमां पर बैठ, सोचती होंगी वो दामिनी
इन ज़मींवालो के रगों में, पानी कैसे भर गये ?
आज दिल्ली में लुटेरे, बेख़ौफ़ लुटते है आबरू
पर पहरेदारों की चौकसी, कागजो में क्यों सिमट गये ?
सुन बहन की बिलखती आवाज़, भाई चुप बैठा है क्यों ?
रक्षाबंधन पर किया वादा, वो कैसे भूल गये ?
अब ना जागे सब तो , रुसवा होंगी इंसानियत
दिल की दबी बात, आज कलम कह गये !
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