उस खुदा ने तो नहीं खींची थी लकीरें इस जमीं पर
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?
देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान
मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान
तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?
देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान
मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान
तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान
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