बीच मझधार बह रहा हूँ, बिना पतवार के नाव में
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये
कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं
एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है
इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये
कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं
एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है
इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
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