गुलामी का दर्द बयां करना है मुश्किल
गुलामी में चैन सुकून सब जाता है छीन
दर्द गुलामी का, पूछो उस परिंदे से
कैद है जो, आज एक छोटे से पिंजरे में
झील और झरने का पानी पीता था जो हरदम
कटोरी में पानी देख घुटता है उसका दम
स्वभाव था उसका डालियों में फुदकने का
आज करता है नाकाम कोशिश सलाखों को कुतरने का
पंख फैलाए उड़ता था, कभी दूर आसमां
अब तो पंख फैलाते ही, खत्म होता है जहां
पर्वत की चोटी पर बैठ, ढलते सूरज को निहारता था कभी
आज तो सूरज की रौशनी ही, नसीब होती है कभी-कभी
पहले मीठे फलों को दूर तक ढूंढने था जाता
अब रुखी सुखी रोटी के संग दिन है बिताता
गुलामी के जंजीरों में, जब से दिन है बिताया
आज़ादी का सही मतलब, उसको समझ आया
गुलामी में चैन सुकून सब जाता है छीन
दर्द गुलामी का, पूछो उस परिंदे से
कैद है जो, आज एक छोटे से पिंजरे में
झील और झरने का पानी पीता था जो हरदम
कटोरी में पानी देख घुटता है उसका दम
स्वभाव था उसका डालियों में फुदकने का
आज करता है नाकाम कोशिश सलाखों को कुतरने का
पंख फैलाए उड़ता था, कभी दूर आसमां
अब तो पंख फैलाते ही, खत्म होता है जहां
पर्वत की चोटी पर बैठ, ढलते सूरज को निहारता था कभी
आज तो सूरज की रौशनी ही, नसीब होती है कभी-कभी
पहले मीठे फलों को दूर तक ढूंढने था जाता
अब रुखी सुखी रोटी के संग दिन है बिताता
गुलामी के जंजीरों में, जब से दिन है बिताया
आज़ादी का सही मतलब, उसको समझ आया
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteधन्यवाद
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