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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Tuesday, 23 October 2012

सर्दी का मौसम

सिहर उठता है तन मन
जब चलती है मंद पवन
भाती मन को सूर्यकिरण
कि आया सर्दी का मौसम

हरित तृणों पर ओंस की बुँदे
लगती है मनभावन
सूर्यकिरण पड़ती जब इनपर
जैसे हो तारे करते टिमटिम

जहाँ भी देखो वहाँ दिखे
ऊनी कपड़ों में लिपटा बदन
आग का घेरा डाले है
आज यहाँ पर जन-जन

ठंडे पानी से नहाना
लगता है बहुत कठिन
सुबह जल्दी उठने का
नहीं करता है ये मन 

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