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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Monday, 9 July 2012

ना जाने क्यों मै डरता हू

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू

पहला दिन स्कुल का
जैसे सजा मिल रही हो किसी बड़ी भूल का
पहली बार जब हाथ में लिया साईकिल
सर से पाँव तक मै गया हिल

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू


पहली बार गाँव के बाहर स्कुल में पढ़ना
जैसे लग रहा था मुझे है कोई जंग लड़ना
कालेज का वो पहला दिन
लगता था जैसे पूरी ताकत गया है छीन

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू


पहली बार का साक्षात्कार
लग रहा था जैसे हू मै कोई गुनाहगार
पहला दिन नौकरी का
हाल ऐसा था जैसे जरुरत से ज्यादा भरे टोकरी का

जब कोई काम पहली बार मै करता हू
ना जाने क्यों मै डरता हू

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