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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Monday, 14 May 2012

आवारा हवा (Strolling Air)

मै एक आवारा हवा
नहीं मुझे किसी की परवाह 
उड़ता फिरता हू मै हर कहीं 
कभी बादलों के ऊपर
तो कभी पेडों की छाँव तले
कभी समुन्दर के लहरों से खेलता हू 
तो कभी पर्वतों को धकेलता हू 
कभी नदियों के संग बहता हू 
तो कभी पंक्षियों के संग उड़ता हू 
बर्फीली चादर को छू ठिठुरता हू 
लू के थपेडों से जलता हू 
कभी किसी के आंसुओ के संग गिरता हू 
तो कभी मुस्कुराते लबो को छूता हू 
कभी नावों में बैठ झीलों कि सैर करता हू 
कभी किसी पेड़ से बैर करता हू 
मै एक आवारा हवा 
नहीं मुझे किसी की परवाह 

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