ये कैसा जमाना आ गया, मै रहा हू सोच
यहाँ कागज के टुकडों पर बिकते है लोग
जनता का सेवक ही, जनता को रहा लुट
धर्म कि बात कौन कहे, यहाँ भाई-भाई में है फुट
डकैती का एक हिस्सा जाता है पहरेदारो को
यहाँ इनाम से नवाज़ा जाता है गद्दारों को
कानून के रखवालों के सामने लुटती है अबलाओ कि अस्मत यहाँ
लुटेरा बना है राजा, उसे है जनता कि फ़िक्र कहाँ
आज भूखा सो रहा सबको खिलानेवाला
एक झोपड़ी के लिए तरस रहा महलों को खड़ा करनेवाला
मंदिर मस्जिद से ज्यादा भीड़ होती है मधुशालाओं में
अब तो फूहड़ता नज़र आती है सभी कलाओं में
यहाँ कागज के टुकडों पर बिकते है लोग
जनता का सेवक ही, जनता को रहा लुट
धर्म कि बात कौन कहे, यहाँ भाई-भाई में है फुट
डकैती का एक हिस्सा जाता है पहरेदारो को
यहाँ इनाम से नवाज़ा जाता है गद्दारों को
कानून के रखवालों के सामने लुटती है अबलाओ कि अस्मत यहाँ
लुटेरा बना है राजा, उसे है जनता कि फ़िक्र कहाँ
आज भूखा सो रहा सबको खिलानेवाला
एक झोपड़ी के लिए तरस रहा महलों को खड़ा करनेवाला
मंदिर मस्जिद से ज्यादा भीड़ होती है मधुशालाओं में
अब तो फूहड़ता नज़र आती है सभी कलाओं में
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