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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Wednesday, 2 December 2015

चल मिटा ले फासले

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कुछ गलतफहमियाँ है, तेरे मेरे दरमियाँ,
चल मिटा लें फासले, कुछ गुफ़्तगू कर लें,

रूठी रहोगी, आखिर कब तलक,
मै इधर तड़पता हूँ, और तु उधर,
मेरी मौजूदगी को यूँ, नजरअंदाज ना कर,
चिर जाती है सीना, देख तेरी गैरो सी नजर,
चल मिटा ले फासले, कुछ गुफ़्तगू कर ले,

तेरी खामोसियाँ, खंचर सी है चुभने लगी,
दूरियाँ हर एक चुप्पी पर तेरे, बढ़ने लगी,
एक आवाज देकर, रोक ले मुझे,
ऐसा ना हो कि दूर हो जाऊँ, पहुँच से तेरे,
चल मिटा ले फासले, कुछ गुफ़्तगू कर ले,

एक पल के गुस्से में, भूल गई वो वादा,
हर हालात में, साथ निभाने का वो इरादा,
कुछ कमियाँ मुझमे है,ये मै जानता हूँ,
छोड़ो गुस्सा हुई मुझसे ही गलती,ये मै मानता हूँ,
चल मिटा ले फासले, कुछ गुफ़्तगू कर ले,






Saturday, 1 August 2015

ऑनलाइन ईमान

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आज का यह नया दौर है
सामान ऑनलाइन बेचने की होड़ है
सोचता हूँ अगर ऑनलाइन बिकने लगे ईमान
तो कैसे कैसे रहेंगे दाम
बाबु तो रखेंगे पांच सौ से हज़ार
अफसरों के होंगे लाख के पार
करोड़ो में बिकेंगे नेताओ के ईमान
तो दस लाख से ऊपर रहेंगे इंजीनियरों के दाम
पुलिस महकमे का अपना ही एक अलग अंदाज दिखेगा
बेगुनाहों को कुछ प्रतिशत की छूट, तो गुनाहगारों को दुगने दाम पर मिलेगा
वकील कोर्ट के अनुसार तय करेंगे
जितना बड़ा कोर्ट दाम उतना ऊँचा रखेंगे
जज रिटायरमेंट के बाद पद की शर्त रखेगा
किसान मजदुर ईमान ना बेचेगा 

Saturday, 25 July 2015

अपना डर जीत ले

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घनी अँधेरी रात हो, और तेरे ना कोई साथ हो
मुमकिन है कि तु डर भी जाय, जब अपना साया तुझे डराए
एक पल के लिए तु कुछ सोच ले, पीछे मुड के भी देख ले
अपना डर जीत ले, अपना डर जीत ले

जब बात कुछ नया करने की हो, नए क्षेत्र में मुकाम हासिल करने की हो
समस्या का समाधान ढूंढने की हो, या कौशल नया सीखने की हो
मुमकिन है कि तेरे पैर थम जाय, अनिश्चितता के बादल तुझे डराए
शुरुआत से पहले अभ्यास कर ले , अज्ञानता अपनी थोड़ी दूर कर ले
अपना डर जीत ले, आपना डर जीत ले

पढ़ाई प्राथमिक शाला या उच्च विद्यालय में हो, या फिर महाविद्यालय में हो
घड़ी परीक्षा की जब आ जाय, व्याकुल मन जब तुझे सताए
परिणाम की चिंता भुला दे, ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगा दे
पढ़कर बुद्धि के भीत ले, अपनी जीत की पक्की तस्वीर खींच ले
अपना डर जीत ले, अपना डर जीत ले 

Friday, 19 June 2015

चलो लड़ना सीखे

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कब तक जियोगे, समझौते भरी ज़िंदगी
तेरी आंखें बताती है, नहीं इसमें तेरी रजामंदी
अरे खुद से पूछ तो सही, तुझे क्या चाहिए ?
उम्मीद जमाने से ना कर, खुद बदल जाईये
आँखों में कोई ख्वाब है अगर, तो पूरा करना सीखे
अपने ख्वाब और हक के लिए, चलो लड़ना सीखे

मुश्किलें तो आती है नदियों के राह में भी
पर मुश्किलों की परवाह उसे रहती नहीं कभी
बना लेती है अपना रास्ता वो हर कही
मंजिल का ख्याल कर हमेशा आगे ही बढ़ी
अरे तेज ना सही तो धीरे धीरे आगे बढ़ना सीखे
मुश्किलों में नदियों सा, चलो लड़ना सीखे

आंधियाँ उड़ा ले जाती है सूखे पत्ते और धुल
डटकर मुकाबला तो चट्टानें ही करती है ये मत भूल
अपने अंदर का डर निकाल हौसला चट्टान सा कर
खुद की शक्ति पहचान ज़िंदगी जायेगी निखर
आंधियों से लड़ना है तो खुद पर यकीन करना सीखे
चट्टान सी बेजान चीजों से चलो लड़ना सीखे

Thursday, 11 June 2015

जीत का मूलमंत्र

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जीवन में कुछ अर्थपूर्ण करे
सपनों को अपने पूर्ण करे
जीवन के है अपने कुछ नियम
पालन से सफल होगा जीवन

एक लक्ष्य का करो निर्धारण
जिसका हो बार बार मनःउच्चारण
समय सीमा भी कर लो तय
और मन में कर लो दृढ़निश्चय

समर्पण और अनुशासन से
लक्ष्य की ओर बढ़ते ही जाना
दर्द और कठिनाई में
तुम ना कभी पीठ दिखाना

बड़ा है अगर लक्ष्य तो
छोटे टुकड़ों में लो बाँट
समय की पाबंदियाँ
इन पर भी रखो साथ

हर छोटे लक्ष्य की प्राप्ति पर
खुद को भी सम्मानित कर लो
थोड़े देर ही सही पर
ज़िंदगी में उमंग भर लो

धीरे धीरे जीतना तुम्हारी आदत होंगी
सफलता में फिर ना कोई बाधक होंगी
बेझिझक अब कर दो इसकी शुरुआत
जीत के मूलमंत्र का उठा लो अब लाभ

Friday, 24 April 2015

सियासी साजिशें

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इन सियासत के गलियारों ने,
इंसानों को बाँट दिया
इनकी सियासी साजिशों ने
इंसानियत का गला काट दिया

सियासी साजिशों की
बहुत गहरी है जड़े
धरती के कई कोनों में
अभी भी बिखरी है धड़े

मौत के खेल की
कैसी है ये आजमाइश
धरती को लाल देखने की
जैसे किसी ने की हो फरमाइश

महज एक सियासी जीत के लिए
बलि चढ़ गई हजारों की
नफरत की दीवार खड़ी हो गई
दो इंसानों के बीच पहाड़ों सी

डरता हूँ नफरत की आग
कहीं इतनी ना फ़ैल जाय
इंसानियत तो निगल ही रहा
कही दुनिया ना निगल जाय 

Monday, 12 January 2015

भ्रष्टाचार का जाल

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आओ सुनाऊँ देश का हाल 
कैसा बिछा यहाँ भ्रष्टाचार का जाल 
एक बार मै बनवाने गया प्रमाण पत्र निवास 
बाबु बोला निकाल रूपये पचास 
मिनटों में निवास तुम्हारे हाथ होगा 
चक्कर काटने वाली ना कोई बात होगा 
मैंने कहा मेरे दिए टैक्स से मिलती है तुम्हे तनख्वाह 
क्यों परेशान कर रहे हो मांग कर रूपये बेवजह 
गुस्से में उसने बोला तुम मुझको सिखा रहे हो 
रिश्वत का बना नियम यहाँ, क्यों अपनी मति लगा रहे हो 
अगर नहीं मिला मुझको रूपये पचास 
कूड़ेदान में जायेगी तुम्हारी आवेदन निवास 
मैंने कहा तुम्हारी अधिकारी से करूँगा शिकायत 
फिर बैठेगी तुमपर पंचायत 
उसने कहा एक हिस्सा अधिकारी को भी जाता है 
वही तो हमको वसूली का टारगेट बताता है 
मैंने कहा आपने अभी जो बात कही है 
उसकी एक विडियो बन गई है 
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया सामने 
गिडगिडाते लगा माफ़ी मांगने 
पांच मिनट में सील और साइन करा लाया 
निवास को थरथराते मेरे हाथ थमाया 

Tuesday, 6 January 2015

आओ पहल करे

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किसी रूठे को मनाने का, किसी का बिगड़ी बनाने का
कोई रोते को हँसाने का, किसी भूखे को खिलाने का
थोड़ा ही सही, पर कुछ तो चहल करे
आओ पहल करे, आओ पहल करे

किसी का दर्द मिटाने का, अनपढों को पढ़ाने का
किसी को न्याय दिलाने का, बेवजह मुस्कुराने का
छोटा सा ही सही, पर प्रयास सफल करे
आओ पहल करे आओ पहल करे

धर्म और जात पात का, भाषा और क्षेत्रवाद का
अमीर और गरीब का, अपने अच्छे नसीब का
अहं को छोड़कर,झगडो को खतम करे
आओ पहल करे, आओ पहल करे

छत नहीं है जिसके पास, सोता जो खुले आकाश
कपकपाती ठण्ड में, कम्बल की जिसको है आस
रैन बसेरो का प्रबंध कर, कुछ की समस्या तो हल करे
आओ पहल करे, आओ पहल करे




Sunday, 28 December 2014

ख़ामोशी

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किसी ने मुझसे कहा क्यों खामोश है इतना भुप्पी
अब तोड़ भी दे अपनी चुप्पी
मैंने कहा लोकतंत्र की हत्या देख रहा हूँ
उसके पुनर्जन्म की बाट जोह रहा हूँ
क्या गीता में श्रीकृष्ण की बात झूठी हो गई
अधर्म ही यहाँ रीति हो गई
खामोश हूँ मुझे खामोश ही रहने दो
बहुत की बोलने की कोशिश अब मुझे चुप रहने दो

उसने कहा याद कर इतने दिनों तक तु लड़ा
अब क्यों है चुपचाप खड़ा
इतने दिनों की तेरी मेहनत जायेगी व्यर्थ
ऐसा ना कर तु अनर्थ
मैंने कहा बात तुम्हारी सच्ची है
सोचने पर जचती है
तन के दुःख को बड़ा मान लिया
अब अपनी असलियत पहचान लिया
दौड़ दौड़ के गया था थक
छोटी मुश्किलों में ही गया था अटक
अब फिर से मुझको लड़ना है
अपनी किस्मत खुद गढ़ना है 

Saturday, 20 September 2014

प्रयास

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जीत हार तो है, एक मामूली सी बात
मूल्यवान तो है, तेरा ये प्रयास रे
मुश्किलों का क्या, ये तो मिलती है हर कही
जीत जायेगा तु, मुश्किलों को सभी
खुद पर तो कर विश्वास रे
कर प्रयास रे, कर प्रयास रे

कर मुकाबला हर हालात का
आंधी तूफ़ान हो या जज्बात का
ना रोक कदम, डरकर के कभी
हँसकर पी जा, घुट गम के सभी
टूट ना पाए तेरी ये आस रे
कर प्रयास रे, कर प्रयास रे

ना समझ खुद को कमजोर तु
हिम्मत लगा पुरजोर तु
अपनी शक्तियों की कर पहचान
मिट जायेगा तेरा अज्ञान
बन जायेगा तु भी खास रे
कर प्रयास रे, कर प्रयास रे





Sunday, 10 November 2013

दिल्ली मै आ रहा हूँ

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दिल्ली तेरी गलियों में फिर शोर होगा
वंदे मातरम की गूंज चहुंओर होगा
कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गए थे, पूरा करने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

पिछली बार जब हम मिले थे
जागती आँखों से सपना दिखाया था मुझे
उन सपनों को हकीकत में बदलने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

तेरी सड़को, तेरी गलियों ने पुकारा है फिर मुझे
यूँ तो भीड़ होती है उस महफ़िल में बहुत
उस भीड़ में एक और इजाफा करने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

कुछ अरमान तुझसे मिले बिना पूरी ना होंगी
पर सर्द रहती है अक्सर हवायें तेरी
उन सर्द हवाओं को सहने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

Saturday, 9 November 2013

मुर्दों का शहर

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ये मुर्दों का शहर है या बेफिक्रों का,
लोग मिलते है लाशों की तरह,
जबां पे लगा लिए है ताले ,
और पूछते है इतना सन्नाटा क्यों है ?

मेहनत करती है लाशें दिलोजान से,
मेहनताना छीन ले जाता है क़ातिल,
मुफ़लिसी में दिन कटते है लाशों के,
क़ातिल का दिन अय्याशी में गुजरता क्यों है ?

इनको लगता है कि क़ातिल रहते है आसमां में,
उनको जमीं पे लाना है नामुमकिन,
एक पत्थर भी उछाले नहीं है,
और कहते है आसमां इतना ऊँचा क्यों है ?

मै बाशिंदा हूँ उस शहर का,
जहाँ जिंदा कौमें दहाड़ती है,
इंसान के साये को भी पुकारती है,
ये शहर कहता है मुझसे तु इतना बोलता क्यों है ?

Tuesday, 29 October 2013

एक अपील

3 comments:
ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग
लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश
शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर
पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नहीं रहा उतर

क्या ये मुल्क तेरा नहीं,या तु यहाँ रहता नहीं
दिखा दे आज दुनिया को, जिंदा है तु मुर्दा नहीं
घर के अंदर चीखने से, कुछ भी ना बदल पायेगा
आवाज़ वही खत्म हो जायेगी ,कोई सुन भी ना पायेगा

क्यों रोकता है अपने कदम, है तुझे किसका डर
इस लुट का तो हो रहा, तेरे घर पर भी असर
बुजदिली तुझमे भरी,या मुल्क से प्यार नहीं
इंतज़ार है खुदा का,या गद्दारी में हो शामिल कहीं

हौसलेवालों पर ही बरसती है खुदा की रहमत
एक कदम बढ़ाया ही नहीं, और कोसता है अपनी किस्मत
अगर प्यार है मुल्क से, तो अदा करो इसका नमक
कन्याकुमारी से दिल्ली तक, भर दो पूरा सड़क

चलो सवाल करते है

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वर्षों से हो रही लुट पर,
रिश्वत की मिली खुली छूट पर,
दमनकारी निरंकुश शासन पर,
बेईमान निकम्मे प्रशासन पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

बढ़ रही बेरोजगारी पर,
घट रही वफ़ादारी पर,
मजदूरो के शोषण पर,
गरीब बच्चों के कुपोषण पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है!

गिरती शिक्षा स्तर पर,
बढ़ती महंगाई दर पर,
अस्पतालों की बदहाली पर,
किसानो की तंगहाली पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है!

बढते साम्प्रदायिक दंगो पर,
राजनीति में गलत हथकंडो पर,
तेजी से बढ़ते अपराध पर ,
नेताओं और गुंडों के सांठगांठ पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

सरकार की आम आदमी से बेरुखाई पर,
भ्रष्ट अफसरों की रुसवाई पर,
जब तक हर सवाल का जवाब न मिले,
एक एक पैसे का हिसाब न मिले,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

Friday, 20 September 2013

लाशों की तरह जीने से तो, लड़कर मरना अच्छा है,

2 comments:
सिल लिए हो होठ अपने,
कोने में छुप छुप रोते हो
कायरो सी ज़िंदगी है,
हर जुल्म चुप चुप सहते हो !

सुभाष, भगत और गाँधी की,
पावन धरा में तुमने जन्म लिया,
फिर अन्याय को तुमने क्यों,
अपनी नियति समझ लिया ?

लाशों की तरह जीने से तो,
लड़कर मरना अच्छा है,
हालातों से जो लड़ता है,
वही तो वीर सच्चा है !

तटस्थता में ही जीना है तो,
क्यों पहना इंसान का चोला है ? 
घर बैठ कुछ नहीं बदलने वाला,
सड़को पर निकलना अच्छा है !

छाया घना अँधेरा तो क्या
एक जुगुनू भी रौशनी कर जाता है ,
सूरज ना बन पाए तो क्या
दीपक की तरह जलना अच्छा है !

दे जवाब डरपोक मौन को
साहस भरी एक आवाज से ,
इस डरी सहमी ख़ामोशी से
बलिदानी ललकार अच्छा है !

अवसर की राह जो तकता है,
लगता नहीं कुछ उसके हाथ ,
राहों में जो नहीं रुकता है ,
उसका जीत तो पक्का है !




Saturday, 24 August 2013

भारत निर्माण

2 comments:
आम आदमी है यहाँ परेशान
महंगाई कर रही हलाकान
भ्रष्टाचार पर नहीं है लगाम
बेरोजगारी ले रही है जान
आंख दिखा रहा चीन पाकिस्तान
मौज उड़ा रहे हुक्मरान
और हो रहा भारत निर्माण