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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Thursday 13 December 2012

मै आम आदमी हूँ

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एक आग लगी सीने में,
सबके सीने में लगाना चाहता हूँ
जागा हूँ मै जो अब तो ,
कुछ कर गुजरने को चाहता हूँ,
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सौपा जिनको भी राज यहाँ,
उसने ही जमकर लुट मचाया
अब हमारा जीना हो गया है मुश्किल ,
भ्रष्टाचार महंगाई को इतना बढ़ाया
कागज के टुकडों में बिकने वालों को,
जेल के अंदर पहुँचाना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

नहीं होने दी कभी अन्न की कमी मैंने,
सीमाओं पर दुश्मनों से लड़ा
नहीं होता काम बिन हमारे दफ्तरों में,
कारखाने हमारे दमपर है खड़ा
हम पहुंचाते खबर और सन्देश
शिक्षक बन ज्ञान बांटता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सरफरोशी जागी है अब तो ,
ये हालात बदलना चाहता हूँ
बहुत सह लिए अन्याय अब,
बेईमानों का राज बदलना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

Friday 23 November 2012

शिकायत

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उनकी बेखबरी का आलम तो देखो
लगी है भीषण आग उनके शहर में
और वो अपने महलों में बैठ
मधुर तरानों का लुत्फ़ उठा रहे है

रहनुमा बनके फिरते थे हमारी गलियों में
कहते हुए कि हर मुश्किल में साथ निभाऊंगा
आज जब हमारी ज़िंदगी जहन्नुम हो गई
वो कुर्सी पर बैठ मंद मंद मुस्कुरा रहे है

लंबी फेहरिस्त थी उनकी वायदों की
हमारी तंगहाल ज़िंदगी बदलने की बात करते थे
मौका दिया उनको वायदा निभाने की तो
हमको भूल झोलियाँ अपनी भरे जा रहे है

ईद हो या दिवाली संग होते थे हमारे
चेहरे पर मुस्कुराहट और होठों में दुआ रखते थे
अब दर पर जाते है उनके हाल ए ज़िंदगी कहने तो
मिलना तो दूर, हमसे आँखें चुरा रहे है 

Wednesday 21 November 2012

इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद

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बीच मझधार बह रहा हूँ, बिना पतवार के नाव में
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये

कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं

एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है

इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद 

Monday 19 November 2012

लकीरें

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उस खुदा ने तो नहीं खींची थी लकीरें इस जमीं पर
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?

देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान

मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान

तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान

Saturday 17 November 2012

सवाल सरकार से

1 comment:
एक शख्स बैठ सड़क पर
पूछता है सवाल सरकार से
जिनके दम पर है ये मुल्क सारा
क्यों त्रस्त है वो महंगाई की मार से

क्यों देती है तुम्हारी नीतियाँ
संरक्षण भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों को
क्यों करती है तुम्हारा प्रशासन
नज़रंदाज़ इनकी कारगुजारियों को

किसानों की मौत, मजदूरों के शोषण का
क्या है तुम्हारे पास जवाब
जनता के पैसों की चोरी का
कब दोगे तुम हिसाब

गलत लगते है तुम्हारे
हर दावे और दलीलें ऐ सरकार
समझ चुके है अब हम
तुम्हारी नियत भंली प्रकार 

Friday 9 November 2012

सवाल

5 comments:
किसने कतरें पर उन परिंदों के
उड़ते थे जो दूर आसमान ?
लहूलुहान दिखती है धरती
किसने दिया ये क़त्ल का फरमान ?

है कौन यहाँ इतना बेरहम
जिसको है खून की प्यास ?
क्यों मिट गया उसके अंदर
दूसरों के दर्द का अहसास ?

तड़पती जानों को देख
कौन यहाँ मज़ा ले रहा है ?
बेगुनाहों को सज़ा ए मौत
कौन यहाँ दे रहा है ?

क्रूरता सहन की सीमा से पार हुई
पर सब खड़े क्यों मौन ?
खून से सनी तलवार जिसकी
पूछते है सब, वो है कौन ?

Tuesday 6 November 2012

घोटाले

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मनमोहन तेरे राज में
और कितने मंत्री होंगे बदनाम ?
बड़े-बड़े घोटालों के अलावा
कुछ भी ना हुआ काम

अपाहिजों की बैशाखी कर चोरी
कानून मंत्री करते है मुंहजोरी
संचार मंत्री ने बेचे सरेआम
अरबों के स्पेक्ट्रम कौडियों के दाम

घाना को हुआ जब चाँवल निर्यात
विदेश मंत्री के रंग गए हाथ
कोयले की कालिख लगी खुद तुझपर
आखिर हम विश्वास करे तो किसपर

जयपाल और जयराम ने चुकाई इमानदारी की कीमत
विभाग बदलकर दे दी उद्योगपतियों को राहत
काँमनवेल्थ में हुआ था जो कबाड़ा
शीला और कलमाड़ी का था एक दूसरे को सहारा

Sunday 4 November 2012

घोर कलयुग

2 comments:
देखो घोर कलयुग है आया
बड़ी गजब है इसकी माया
दौलत को भगवान बनाया
बिन दौलत अपने भी पराया

दौलत से चलती सरकार
जनता की होती तिरस्कार
मंत्री करता जितना बड़ा भ्रष्टाचार
मिलता उसको उतना बड़ा पुरस्कार

चोर संग पुलिस खाए मलाई
रिपोर्ट दर्ज कराने वाले की होती पिटाई
जेल के अंदर वो है जाता
जो जनता में अलख जगाता

जनसेवकों को मिली रिश्वत की खुली छूट
हरकोई जनता को रहा लुट
बेईमानों का होता सम्मान
ईमानदार सहते अपमान 

Friday 2 November 2012

दुविधा

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छाया है घना कोहरा
या सुलग रही है कहीं पर आग
ये भीड़ है तमाशा देखने वालों की
या जनता गई है जाग

ये हाथों में तिरंगा लहरानेवाले
वंदे मातरम का नारा लगानेवाले
पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी आया है
या है ये आज़ादी के परवाने

ये बादलों की गड़गड़ाहट है
या जनता रही दहाड़
निकली है भीड़ सैर पर
या फेंकने सिंहासन को उखाड़

यहाँ हर कोई है गुस्से में
या चेहरे की ऐसी ही है बनावट
आए है ये व्यवस्था परिवर्तन के लिए
या थोड़े दिनों की है कसावट  

Wednesday 31 October 2012

दीपावली

4 comments:
दीपों का त्यौहार आया
पूरा देश जगमगाया
ढेरों खुशियाँ संग लाया
मन में उमंग छाया

राम की वापसी हुई थी इस दिन
पूरा हुआ था वनवास कठिन
रावण हरा घर पहुंचे थे राम
लंका जीत किये थे बड़ा काम

घर की होती रंगाई पुताई
चारो ओर दिखती सफाई
एक दूसरे को देते सब बधाई
बंटती रसगुल्ले और मिठाई

सज गए है सारे बाजार
खरीददारों की लगी कतार
फुलझडियों की लगी बहार
पटाखे करते आसमान को उजियार 

Monday 29 October 2012

गुलामी

2 comments:
गुलामी का दर्द बयां करना है मुश्किल
गुलामी में चैन सुकून सब जाता है छीन
दर्द गुलामी का, पूछो उस परिंदे से
कैद है जो, आज एक छोटे से पिंजरे में

झील और झरने का पानी पीता था जो हरदम
कटोरी में पानी देख घुटता है उसका दम
स्वभाव था उसका डालियों में फुदकने का
आज करता है नाकाम कोशिश सलाखों को कुतरने का

पंख फैलाए उड़ता था, कभी दूर आसमां
अब तो पंख फैलाते ही, खत्म होता है जहां
पर्वत की चोटी पर बैठ, ढलते सूरज को निहारता था कभी
आज तो सूरज की रौशनी ही, नसीब होती है कभी-कभी

पहले मीठे फलों को दूर तक ढूंढने था जाता
अब रुखी सुखी रोटी के संग दिन है बिताता
गुलामी के जंजीरों में, जब से दिन है बिताया
आज़ादी का सही मतलब, उसको समझ आया 

Saturday 27 October 2012

दशहरा

2 comments:
जिसने किया था सीता का हरण
राम ने मारा था वो रावण
हर साल मर के लेता नया जनम
अब का है ये कैसा रावण

कागज़ के पुतले तो प्रतीक है
हम सब में छिपा बैठा है एक रावण
कागज के पुतले को दहन कर
क्या मार लिया अपने अंदर का रावण ?

बुराई पर अच्छाई की जीत का
त्यौहार है यह दशहरा
पर बुराई मिटने के बजाय
हो रहा और हरा भरा

बुराई तो तब हारेगी
जब हम अपने अंदर के रावण को मारे
आओ हम सब मिलकर बुराई ना करने
और बुराई का ना साथ देने का कसम खा ले 

Tuesday 23 October 2012

सर्दी का मौसम

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सिहर उठता है तन मन
जब चलती है मंद पवन
भाती मन को सूर्यकिरण
कि आया सर्दी का मौसम

हरित तृणों पर ओंस की बुँदे
लगती है मनभावन
सूर्यकिरण पड़ती जब इनपर
जैसे हो तारे करते टिमटिम

जहाँ भी देखो वहाँ दिखे
ऊनी कपड़ों में लिपटा बदन
आग का घेरा डाले है
आज यहाँ पर जन-जन

ठंडे पानी से नहाना
लगता है बहुत कठिन
सुबह जल्दी उठने का
नहीं करता है ये मन 

Sunday 21 October 2012

सुनामी

3 comments:
याद आता है वो मंजर
जब कहर ढाया था समंदर
लहरों में थी उफान
आ गया था एक तूफ़ान

ऊँची लहरों ने किया प्रवेश
जैसे हो तबाही का श्री गणेश
गाँव हो या शहर
सब पर बरसा कहर

गाँव शहर सब डूबा लिया
मिट्टी में सबको मिला दिया
चली गई हजारों जान
गाँव शहर कर गया शमशान

सुनामी है इस कहर का नाम
बड़ी डरावनी है इसकी पहचान
रुंह तक काँप जाती है
जब जिक्र सुनामी की आती है 

Saturday 20 October 2012

भ्रष्टाचार (corruption)

4 comments:
गहरी जमी है जड़े भ्रष्टाचार की
साफ़ नहीं दिखती नियत सरकार की
आरोप लगते है जब भ्रष्टाचार की
कहते है ये बात है बिना आधार की

एक चपरासी से लेकर अधिकारी तक
निजी से लेकर सरकारी तक
वकील से लेकर धर्माधिकारी तक
हो गए है सब भ्रष्ट, आम जनता है त्रस्त

राशन कार्ड की बात हो या वीजा कार्ड की
बात नहीं बनती बिना उपहार की
वृध्दावस्था पेंशन हो या विधवा पेंशन
बिना कमीशन होता है टेंशन

औद्योगिक घराना हो या कोई नेता
सबने मिलकर ही देश को लुटा
कालाधन का मामला हो या टैक्स चोरी की
खूब फायदा उठाते है कानून की कमजोरी की

घोटालों के लिए बनती है नई योजनाएं
नेता और अफसर मिलबांट कर खाए
किसानों की जमीन हड़प कर गए
देश को दीमक की तरह चट कर गए

Tuesday 16 October 2012

लहू की धार बहना अभी बाकी है

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अभी तो केवल आगाज है हुआ, राज़ से पर्दा गिराने का
जाने कितने राज़ का बेपर्दा होना अभी बाकी है

जुल्म और सितम का दौर अभी ठहरा नहीं है
दहकते अंगारों पर चलना अभी बाकी है

रहनुमा का नकाब लिए फिरते थे जो ज़ालिम
उनके चेहरों से नकाब का हटना अभी बाकी है

सिंहासन पर बैठे थे जो मुल्क को अपनी ज़ागीर समझकर
उन ज़ागीरवालों का सिंहासन से उतरना अभी बाकी है

सदियों से लुट रहे है जो वतन, वो अभी जिंदा है
उनको इस हिमाकत का सज़ा मिलना अभी बाकी है

लहू मांगती है जंग ए आज़ादी, धरती के सुर्ख लाल होने तक
अभी तो गिरा है थोड़ा ही लहू, लहू की धार बहना अभी बाकी है

Saturday 13 October 2012

एक शख्स (अरविन्द केजरीवाल को समर्पित )

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एक शख्स ने हिला दी है जड़े
सिंहासन पर बैठने वालों की
रोशन हुई है उम्मीदें
नाउम्मीदगी में जीने वालों की

लुटते थे जो बेख़ौफ़ वतन को
काँपने लगे है उनके भी हाथ
हर सड़क, हर गली मुहल्ले में
होती है बस उसकी बात


Friday 12 October 2012

क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे

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क्यों लगाया है उम्मीद मुसाफिर उनसे
जो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है


Thursday 11 October 2012

हम यकीन करे भी तो किसपर करे

2 comments:

हम यकीन करे भी तो, किसपर करे 
यहाँ लोग दौलत के लिए, अपनों से दगा कर जाते है 

शराफत का चोला पहन, घूमते लोग 
बस्तियां उजाड़ते, नज़र आते है 

लोग कहते है जिसे, सच्चाई की मूरत 
वही लोगो से, ठगी करते हुए पाए जाते है 

रक्षक का तमगा ओढ़, फिरते है जो शान से 
भक्षक की तरह काम करते, नज़र आते है 

जनता की सेवा के लिए, सिंहासन पर बिठाया जिसे भी 
वही तानाशाहों की तरह, हुक्म फरमाते है 

जिन माँ-बाप ने मुश्किलों में पाला हमें 
लोग उन्ही माँ-बाप को, सड़क पर छोड़ जाते है 

सुबह शाम धर्म की बात करनेवाले 
अपनी तिजौरियों में, दान का पैसा छुपाते है 

पहरेदारी करना है जिनका काम 
वही चोरों से हिस्सा मांगते, नज़र आते है 

Wednesday 10 October 2012

सुबह का इंतज़ार

2 comments:
छाया था घना कोहरा, काली अंधियारी रात,
सुबह का था इंतज़ार, कि हो सूरज से मुलाक़ात !
पल पल बीत रहे थे सदियों सी, सिंह रहा था दहाड़,
पतले वस्त्र थे तन पे और वो ठण्ड की मार !

कुंडली मारे सर्प, फन फैलाए रहा था फुफकार,
डर के भागे हम इधर उधर, चुभ गए कांटे कई हज़ार !
बिच्छू ने मारा डंक, पूरा विष हम पे दिया उतार,
विष धीरे धीरे चढ़ने लगा, हम किसको लगाते पुकार !

अजगर भी मुँह खोल बड़ा, सरक रहा था हमारी ओर,
समझ नहीं आ रहा था, भागे हम किस छोर !
सोचा पेड़ पर जाऊ चढ़, तो कम होगा साँप बिच्छू का डर,
कुछ दूर चढ़ा था ऊपर, पैर फिसला आ गिरा जमीं पर !

हाथ पांव थे सलामत,चोटिल हुआ कमर,
दर्द से दिल कराह उठा, दिमाग पर हुआ असर !
गिरा फिर उठ ना सका, हिम्मत दे गई जवाब,
चींटियों को मिल चूका था, पसंदीदा कबाब !

पेड़ के नीचे दर्द संग, फिर गुजरी पूरी रात,
धीरे धीरे सूरज उगने लगा, जगी थोड़ी सी आस!
धन्य है वो मानव , जिसने लिया मुझे देख,
वाहन की व्यवस्था कर, अस्पताल दिया भेज !

Tuesday 9 October 2012

कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे

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कदम बढ़ा तो साथी संग हमारे
नदियों की धार पलट जायेंगे
क्यों डरता है इन तानाशाहों से
इनके तो तख़्त और ताज उलट जायेंगे

कब तक सहेगा ये जुल्म और सितम
उठा संग हाथ हमारे सितमगर दूर छिटक जायेंगे
लुट रहे है ये सदियों से हमें
इनकी तिजौरियो में हमारे ताले लटक जायेंगे

Monday 8 October 2012

वो भगवान कहाँ है ?

2 comments:
बैठा है दुर्योधन, हर गली मोहल्ले में
करता है रोज एक द्रोपती का चीरहरण
भरी महफ़िल में द्रोपती की लाज बचानेवाला
वो श्याम कहाँ है ? वो श्याम कहाँ है ?

है कंसो का राज यहाँ
करते है जनता पे अत्याचार
जनता का दुःख हरनेवाला
वो गोपाल कहाँ है ? वो गोपाल कहाँ है ?

है रावणों की भरमार यहाँ
जो करते है सीता का हरण
रावण के कब्जे से सीता को छुड़ानेवाला
वो राम कहाँ है ? वो राम कहाँ है ?

यहाँ मित्र ही मित्र को दे रहा दगा
हर कोई एक दूसरे को ठग रहा
सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ानेवाला
वो हनुमान कहाँ है ? वो हनुमान कहाँ है ?

हैवानियत और जुल्म चरम पर पहुंची
दम घुट रहा सच्चाई का
दुष्टों का संहारकर्ता सबका पालनहार
वो भगवान कहाँ है ? वो भगवान कहाँ है ?

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Sunday 7 October 2012

शहीदों का दर्द

2 comments:
छलक आते होंगे आंसू शहीदों के
अपने वतन की हालत देखकर
सोचते होंगे क्यों मर गए हम
इन खुदगर्जो के लिए

सपना जो देखा था शहीदों ने
एक खुशहाल वतन बनाने का
आज बिक रहे है वतनवाले ही
चंद कागज के टुकडों के लिए

दर्द से भर जाता होगा उनका भी दिल
जब जब जमीं पर देखते होंगे
लहू से सींचा था जिस जमीं को
आज उनपर कांटे उगते हुए

ये बात तो उठती होगी उनके भी मन में
कि क्या सोचा था और क्या पाया
सुनहरे भविष्य के लिए दी थी कुर्बानी
अब शहीदों को याद भी किया जाता है तो दिखावे के लिए

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Thursday 4 October 2012

गरीब

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कटे-फटे जीर्ण वस्त्रों में
अधढका तन वाला वो इंसान
हररोज लड़ता है जंग
जिंदा रहने के लिए

निकलता है कड़ी धूप में
भूखे पेट, नंगे पांव
हाथो में पड़े होते है फफोले
और पैरों में छाले
लिये औजार कंधो पर
दो वक्त की रोटी के लिए

झलकती है तन से हड्डियाँ
हो जाता है पसीने से तरबतर
जब चलाता है औजार अपनी, पत्थरों पर
पत्थरों को आकार देने के लिए

दर्द करता है कोशिश बहुत
उसे रोकने के लिए
मिलती है उसको तो हार
जब ठान लेता है वो
काज पूरा करने के लिए

पर इतने मेहनत के बाद
मिलता है जो उसको मेहनताना
कम पड़ जाते है उसके परिवार को
दो वक्त की रोटी के लिए

सबको खिलाकर, अधभरा पेट
सोता है घास फूस के झोपड़े में
सुबह उठते ही निकल जाता है
फिर वही जंग लड़ने के लिए 

Wednesday 26 September 2012

दास्तान-ए-आम इंसान

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आओ सुनाऊ एक दास्तान
जिसका नायक है एक आम इंसान
महंगाई करती इसको परेशान
सिर्फ चुनाव के समय ही कहलाता ये भगवान

कभी खुले आसमान के नीचे
भूखे पेट है सोता
कभी चिलचिलाती धूप में
नंगे पाँव है चलता

मुश्किलों में पढ़ता बढ़ता
जीने के लिए संघर्ष करता
नौकरी के लिए भटकता फिरता
मिले जो छोटी नौकरी तो हर्ष करता

महीने के पहले हफ्ते में होता है ठाट नवाबी
दूसरे हफ्ते से फिर सबकुछ लेता है उधारी
बसों और ट्रेनों में जिंदगी भर करता सवारी
सपना होता है उसका लेनी बड़ी गाड़ी

पेंशन से फिर कटता है उसका बुढ़ापा
नाती पोतों के संग खेलकर दिन गुजरता जाता
फिर आता है दिन जब वो बिस्तर से उठ नहीं पाता
बिस्तर में लेटे-लेटे ही सबको अलविदा कह जाता

Monday 17 September 2012

यहाँ कागज के टुकडो पर बिकते है लोग (People of here are sold on pieces of paper)

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ये कैसा जमाना आ गया, मै रहा हू सोच
यहाँ कागज के टुकडों पर बिकते है लोग

जनता का सेवक ही, जनता को रहा लुट
धर्म कि बात कौन कहे, यहाँ भाई-भाई में है फुट

डकैती का एक हिस्सा जाता है पहरेदारो को
यहाँ इनाम से नवाज़ा जाता है गद्दारों को

कानून के रखवालों के सामने लुटती है अबलाओ कि अस्मत यहाँ
लुटेरा बना है राजा, उसे है जनता कि फ़िक्र कहाँ

आज भूखा सो रहा सबको खिलानेवाला
एक झोपड़ी के लिए तरस रहा महलों को खड़ा करनेवाला

मंदिर मस्जिद से ज्यादा भीड़ होती है मधुशालाओं में
अब तो फूहड़ता नज़र आती है सभी कलाओं में 

धरती माँ का आह्वाहन (A call of Motherland)

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कर रही आह्वाहन, धरती माँ नौजवानों से
जागो और संघर्ष करो, वतन के इन बेईमानों से

सूरज की गर्मी है तुझमे, तू ही है नदियों की तेज धार
जयचंद बैठे है गद्दी पर, इनको दो तुम उतार

बदलो कि गड़गहड़ाट तुझमे, है तुझमे ही बिजली सी चमक
पुकार रहा है देश तुम्हारा, अदा करो इसका नमक

हो संगठित तुम, एक ताक़तवर मुट्ठी बन जाओ
कोई ना तुम्हे सकता तोड़, ये दुनिया को तुम दिखलाओ

अन्याय अपने चरम पर पहुची, तुम लाचार बने हो क्यों
काँपेगी अन्यायी कि रुंह भी, सुभाष और भगत तो बनो

शोला जो तुम्हारे सीने में भरा, आज उसको दहक जाने दो
क्रांति जो सदियों से है राह देखती, उसे आ जाने दो

गुलामी कि बेडियाँ तोड़, अपने मन को तुम आज़ाद करो
वीरो ने जो दी थी कुर्बानी, उसे यूँही ना बर्बाद करो

हिलेगी तानाशाहों कि गद्दी, तुम्हारे हर हुंकार से
कब तक रहोगे सोये, अब जाग भी जाओ इस ललकार से

आज़ादी का सूरज जो डूब रहा, सूरज बन आसमान में छा जाओ
एक नया सवेरा तुम लाओ, एक नया सवेरा तुम लाओ 

Thursday 30 August 2012

बेईमानों का राज

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बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

नई नई योजनाये बनती करने नए घोटाले
गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले
सड़को को कागजो में बनाकर मरम्मत का भी पैसा निकाले
पेंशन के बटवारे में भी करते है गडबडझाले

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी
योजनाओ का लाभ लेने में आती उसकी पहली बारी
गरीब तो बीपीएल में नाम जुडवाने अपनी पूरी उम्र है गुजारी
इनकी जिंदगी नहीं बदलती चाहे हो कोई भी पार्टी सत्ताधारी

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव
जीतने के बाद जनता से ये कहते हमारे सामने सिर झुकाव
अफसर भी नहीं बढ़ाते फाइल लिए बिन पैसे
पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज


ये हालात बदलना चाहता हूँ

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बहुत सह लिए अन्याय अब, ये हालात बदलना चाहता हूँ
सरफरोशी जो जागी है अब , ये जवानी वतन के नाम करना चाहता हूँ

कर रहे बेईमान, भारत माँ का आंचल मैला रोज
भागीरथी मै नहीं मगर, हर गांव में गंगा बहाना चाहता हूँ

लुट रहे भारत माँ को, अपने ही वतनवाले रोज
लुटती हुई भारत माँ की, आबरू बचाना चाहता हूँ

जागते इंसान कर रहे यहाँ मुर्दों सा व्यवहार
मुर्दे भी लगाए जयघोष के नारे, ऐसी अलख जगाना चाहता हूँ

अब जो जागा हू तो मै, कुछ कर गुजरना चाहता हूँ
लगी है आग जो मेरे सीने में, सबके सीने में लगाना चाहता हूँ  

है सड़क पर आज हम (We are on the road)

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है सड़क पर आज हम, मांगने हमारा हक
मांग अगर मानी नहीं गई तो, कर देंगे तख्ता पलट

कर रहे ललकार आज, एक सुर और एक ताल में
हिल रही है तानाशाहों कि गद्दी, हमारे हर हुंकार से

हाथो में तिरंगा है और होठो पे वंदे मातरम बसा
झूठे वायदों से हमको, इन्होने हर रोज ठगा

अबकी जो जागे है तो, कुछ कर के ही जायेंगे
हर हैवानियत और जुल्म को, जड़ से मिटायेंगे

क़र्ज़ धरती माँ का जो हम पर है, आज उतारने है आये
बढ़ गए है जो अब ना रुकेंगे, चाहे प्राण निकल जाए 

Saturday 11 August 2012

भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है

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कुछ अच्छा करने निकलो
तो जाने क्यों लोग हँसी उड़ाते है
हो गए अगर कामयाब
तो जाने क्यों लोग जल जाते है

राह में मुश्किलें आये हज़ार
पर हम तो बढ़ते चले जाते है
लोगो कि परवाह ना कर
सच्चाई का साथ निभाते है

राह में दर्द मिलते है कई
पर हम हर दर्द पर मुस्कुराते है
कोई करे रास्ता रोकने कि कोशिश अगर
तो उसको भी जवाब दे जाते है

दुराचारी अपनी ताकत पर
इतना क्यों इठलाते है
जबकि अंत में रावण कंस और कौरवो
सा ही अंजाम पाते है

सच कि हमेशा जीत होती है
जाने क्यों लोग अक्सर भूल जाते है
जिस मंजिल को पाने कि चाह में हम निकलते है
भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है 

सनम कि रुसवाई

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नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

जी रहे थे जिसके लिए उसने ही आज धोखा किया
करके वादा वफाओ का हमें रुसवा किया
उनकी बेवफाई का हमने ना गिला किया ना सिकवा किया
छाये है काले बादल जिंदगी में और बदल भी ना रहा ये मौसम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

उनकी यादे हमें रह रहकर तडपाती है
दर्द होता है इतना जैसे जान निकल जाती है
नींद में उसके लौट आने कि ख्वाब तो आती है
मगर हकीकत में तो वो है पत्थर दिल सनम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

आहट जो सुनते है कदमो कि लगता है कि वो आ गए
पर किस्मत को मंज़ूर है कुछ और लो फिर अँधेरा छा गए
आखिर कब तक करू इंतज़ार तेरे लौट आने कि ऐ सनम
घुट घुट के जी रहा हू कुछ तो करो रहम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम


जुदाई (Separation)

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तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई

कुछ सुहाने पलों को याद कर, मुस्कुरा लेते है हम
आंसुओ कि धारा बहा, भुला लेते है उसके जाने का गम
उसने वादा किया था, हर पल साथ निभाने का
पर न जाने उसने कदम क्यों उठाया दूर जाने का

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


हम तो जिंदा है उसके यादो के सहारे में
पर वो जा बैठी है उस किनारे में और हम है इस किनारे में
जीने का सपना देखा था जो उसके साथ
पर वक्त बेरहम ने अलग कर दिए हमारे हाथ

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


उसकी हर एक बात याद आती है
जुदाई उसकी बड़ा तडपाती है
उसके आने का इंतज़ार आज भी है
उससे मिलने को दिल बेकरार आज भी है

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई




Tuesday 7 August 2012

इंसान और शैतान (Man And Devil)

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विवश है आज का हर एक आम इंसान
मौज उड़ा रहा है शैतान
मानवता खो रही अपनी पहचान
जुल्म मिटाने वाला कहा गया वो भगवान

सितमगरो ने कुछ ऐसा कहर ढाया है
रोम रोम में दर्द समाया है
सड़क पर गिरा लहू जुल्म कि कहानी कहती है
भूख से तडपकर जान क्यों निकलती है

सबको खिलाने वाला ही आज दर दर भटक रहा
दर्द सहने कि सीमा पार हुई, पाँव पटक रहा
जिनके मेहनत से महले खड़ा होती है
आज वही एक झोपडी के लिए तरस रहा

कुछ इस कदर लुटा है हमें इन शैतानो ने
जैसे लुटा न गया हो किसी से जमानो में
केवल दर्द कि दास्तान होती है अब पैगामो में
वो आज़ादी पाने कि जूनून कहा गई दीवानों में 

निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

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काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

तिरंगा लिए हाथ, टोलियाँ बनाकर
भगत सिंह और सुभाष को दिल में बसाकर
नया भारत बनाने का सपना सजाकर
निकले है बनाने नया इतिहास अपने बलिदानों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

जनता के कदमो कि आहट सुन कानो से
थर्राता है अब तो दिल सत्ता के दलालो का
समय राह देखता था ऐसे अफसानों का
सिंहासन जब हिलने लगेगी जनता के दहाडो से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

लहू का हर एक कतरा पुकारता है भारत माता कि जय
बढ़े जा रहे है सभी होकर निर्भय
मन में है बस एक ही बात, करनी है दुश्मनों पर विजय
गूंजती है आवाजे आज पहाड़ों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से


देशभक्तों कि गली (Street of Patriots)

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आज चल निकला हू उन गलियों पर
जहाँ जय हिंद और वंदे मातरम का नारा बुलंद होता है
जहाँ देशभक्ति के गीत गाये जाते है
भारत माता में शीश चढ़ाये जाते है

रग रग में बसा होता है देशभक्ति जहाँ
मिलते है जुनूनी लोग यहाँ
जहाँ कटा सिर भी भारत माता कि जय पुकारता है
जहाँ लहू का हर एक कतरा दुश्मन को ललकारता है

हर एक दिल में आग लगी होती है
आज़ादी पाने कि प्यास जगी होती है
यहाँ हर कोई अपने बलिदान को आतुर दिखता है
अपने लहू से इतिहास का पन्ना लिखता है

जहाँ सिर्फ देशभक्ति कि बाते बोली जाती है
हर एक बलिदान को दुश्मनों के कटे सिरों से तोली जाती है
है मकसद जहाँ कि सम्पूर्ण आज़ादी
चाहे देनी पड़े कितनी भी कुर्बानी 

Sunday 22 July 2012

एक भीड़ निकली है सडको पे आज

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एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हर उम्र दराज के लोग है इसमें
है शब्दों में जोश भरा
सदियों बाद जगे है ये
इतिहास के पन्नों में नया पन्ना जोड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हो गई थी जुल्म कि इन्तहा
रो रोकर बहुत सह लिए
दास्तान-ए-दर्द सुनकर तो रुंह भी कपने लगे
आज खड़े है सड़कों पे अन्याय को जड़ से उखाड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

बिगुल तो फूंक चुके है लड़ाई की
अंजाम तक पहचाना अभी बाकी है
मांग रहे है हर एक दर्द का हिसाब
निकले है ये आज अपना भविष्य सुधारने

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

शहीद का परिवार (Family of martyr)

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माँ कि नज़रे टिकी थी राह पर
वीर पुत्र के आने के इंतज़ार में
वो आया भी तो तिरंगे में लिपटकर
माँ के आँखों में आँसू भर गया

बाप के कंधो में खेला बड़ा हुआ
आज बाप के कंधो में ही विदा हो चला
रहेगा याद हमेशा लोगो को वो
लो आज एक और वीर शहीद हो गया

जब तक जिया, जिया वो शान से
आज मरने पे भी, शान में न कमी आई
वीरो कि तरह लड़ा, न झुका, न डरा
अपनी अमरता का, लोगो को सन्देश दे गया

बिलखती माँ पुकार रही है, बेटा तू लौट आ
गहरी नींद में सोया है वो, न आएगा कभी
बावरी हो गई बेवा उसकी, कह रही है
मुझको भी साथ ले जाता, अकेले क्यों चला गया 

मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

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जिंदगी समझौतों से भरी होती है मगर
मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

दुनिया का कोई भी कोना अनदेखा न रहे
मै दुनिया के हर कोने कि सैर करना चाहता हू

दूर तक बस पानी ही पानी दिखाई दे
मै ऐसे झील में नाव में बैठ घूमना चाहता हू

देर रात तक मस्ती में डूबी पार्टियां हो
मै ऐसी पार्टियों में मस्ती में नाचना चाहता हू

वैसे तो जिंदगी में मिलती है खुशियाँ हज़ार
मै हर खुशी में ठहाको के साथ हसना चाहता हू

दुनिया में हर जगह कि भोजन कि अलग पहचान होती है
मै दुनिया के हर भोजन का स्वाद लेना चाहता हू

तेज रफ़्तार का अपना एक अलग मज़ा होता है
मै हर तेज रफ़्तार वाली वाहनों में सफर करना चाहता हू 

Friday 20 July 2012

एक चिंगारी (A Spark)

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एक चिंगारी उठी है कहीं पे
फैलना चाह रही है बनके आग
मिटाने आयी है दुश्मनों को
कर देगी उनको सुपुर्देखाक

अभी तो उठ रहा है केवल धुआँ
लपटे निकलना तो अभी बाकी है
घासों से निकल रहा है ये धुआँ
सिंहासनो का जलना अभी बाकी है

बरसो बाद उठी है ये चिंगारी
लेके कई बलिदान
बड़ा भयंकर लगेगी  आग
लेके जायेगी कइयो कि जान 

रौशनी कि तलाश

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तलाशता हू रौशनी मै इस अँधेरी दुनिया में
अब तक तो लगी है बस निराशा हाथ
पर उम्मीदों पर टिकी है ये जहाँ
मै अपनी उम्मीदे कैसे छोड़ दू

जहा भी गया मिला बस अँधेरा
एक हल्का सा उजियारा भी न दिखाई दी
निकल आया हू बहुत दूर उसे ढूंढने
अपने को वापस कैसे मोड़ लू

रौशनी कि बाते सभी करते है मगर
अँधेरे में जीने कि सबको आदत है
रोज देखता हू सपना उसके मिल जाने की
वो हँसी सपना मै कैसे तोड़ दू 

भाग अधर्मी भाग(Run Impious run)

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भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

तुने ही लुटा है इनको
तुने ही बांटा है इनको
आखिर कब तक सहते ये अन्याय
मिलाने आ रहे है तुझे खाक
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

गद्दी पे बिठाया तुझको
पर तुने रुलाया सबको
बहुत सह चुके अब
मांगने आ रहे है हर एक दर्द का हिसाब
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

झूठे किये थे तुने वादे
नेक नहीं थे तेरे इरादे
अपनी शक्तियों का किया दुरूपयोग तुने
जनता समझ चुकी है टरइ नियत आज
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग 

Tuesday 17 July 2012

आज़ादी के परवाने (Freedom Lovers)

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आज़ादी के परवाने, किसी से नहीं डरा करते
हो अगर बलिदान का वक्त, तो पीछे नहीं हटा करते
रहता है बस एक ही धुन, मुल्क कि आज़ादी
तोड़ देते है इसके लिए, ये सारे पाबन्दी

जनता पुकारती है इन्हें, कहकर शूरवीर
मिटा देते है दुश्मनों को, जैसे हो कोई लकीर
अपना सर्वस्व कर देते है, वतन पर अर्पण
अपनी अंतिम साँस तक, नहीं करते समर्पण

वीरो तरह ही जीते है, वीरो की तरह ही मरते है
अपनी पूरी जिंदगी, वतन के नाम करते है
घर बार सब त्यागकर, अकेले ही रहते है
अपने लहू से वतन का, रुद्राभिषेक करते है

अपनी हथियार उठा, जब करते है ललकार
दुश्मन थर थर कांपता है, और दिखते है लाचार
वतन पर शहीद होने को, रहते है ये आतुर
ऐसे वीर जवानो का, क्या कर लेंगे ये असुर

भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है ( A fox has come with lambskin)

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भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है
चारो तरफ लुट खसोट मचाया है
सभी जगह जाल बिछाया है
सबको बेवकूफ बनाकर माल खुद खाया है

मुह से मीठी वाणी बोलकर
छल कपट से काम लेता है
भाई बांधव क्या चीज़ है
ये हर किसी को दगा देता है

कई तरह के है चाले चलता
पर सबके सामने है भोला बनता
बहुत खतरनाक है इसका खेल
इसके कर्मो का शक्ल से नहीं है मेल

बड़ी चतुराई से है काम करता
जो इसके खिलाफ हो उसको यह बदनाम करता
अब तो इसको पहचान जाओ
अपनी कौम से इसे दूर भगाओ 

अकेला चल निकला हू

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अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

चाह बस एक मंजिल पाने की
हौसला है सब कुछ गवाने की
हर सितम हँस के सह लूँगा
मुह से उफ़ तक न करूँगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अगर साथ न मिला किसीका
तो भी बस बढता चलूँगा
अगर आया कोई तूफ़ान
तो उससे भी डटकर लडूंगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अब तो मैंने लिया है ये ठान
मंजिल पर पहुचने पर ही होगा आराम
कदम बढाकर पीछे न हटूंगा
चाहे जो भी हो अंजाम

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर


Monday 16 July 2012

भारत माता की जय

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खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है दुश्मन बलवान बहुत
धन भी है उसके पास अकूत
अब तो सोचता हू बस यही
कि करना है इनपर विजय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है साथ मेरे चंद लोग
पर भीड़ बड़ी है उनकी
पुकार रहा है दिल आज ये
बलिदान का आ गया है समय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है बैरी को अपने ताकत पर घमंड बड़ी
हो गया है तानाशाह वह पूरी
सामना करने को तैयार हू मै खड़ा
अब तो हो चूका हू मै निर्भय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय





आवारा मन (Maverick Mind)

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आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी बर्फीले पहाड़ पर होता है
तो कभी समंदर के बीच
कभी इसे फूलों कि सुगंध भाती है
तो कभी घनघोर जंगल डराती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी उड़न खटोले पर होता है
तो कभी झीलों में नाव कि सैर करता है
कभी सुनता है नदियों कि कल कल
तो कभी देखता है मौसम कि हलचल

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है

कभी रिमझिम बारिश में भीगता है
तो कभी ठण्ड से सिहरता है
कभी हरियाली इसे लुभाती है
तो कभी गर्मी इसे झुलसाती है

आवारा मन न जाने क्यों भटकता है
कभी इस गली तो कभी उस गली टहलता है


कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है (There is yet to fulfill some desires )

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कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
ठंडी बहती हवाओ में
दूर तक फैले झील में
दुधिया चांदनी रात में
नाव कि सैर अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है
चारो ओर सुन्दर खिले फुल हो
पेडों की छाया इतनी घनी हो
कि दूर तक धुप न पहुचे जमीं पर
ऐसे घनघोर जंगल का भ्रमण अभी बाकी है
कुछ हसरते अभी पूरी करनी बाकी है
बर्फ कि चादर बिछी हो
ओलो कि बारिश जहाँ हो
ऊँची ऊँची पर्वत चोटियाँ घिरी हो
ऐसी जगह जाना अभी बाकी है
कुछ हसरते पूरी करनी अभी बाकी है 

Sunday 15 July 2012

मै मुसाफिर हू (I am a traveler)

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पथरीली राहों का मै मुसाफिर हू
मेरी राह में नुकीले कांच भी है और कांटे भी
चलना है इनपर मुझे नंगे पाँव
राह में न है कोई ठहराव और न कोई पेडों कि छाँव

मैंने ये राह अपनी मर्ज़ी से चुनी है
क्योकि मन में कुछ कर गुजरने कि ठनी है
शाम ढलते तक मंजिल में पहुचनी है
क्योकि राह में न चांदनी है न रौशनी है

चिलचिलाती धुप है
न पानी है न जूस है
पाँव दर्द से रो रहा है
पर मन हौसला न खो रहा है

राह बीच एक घनघोर जंगल है
पर न लाठी है न बन्दुक है
मेरा हौसला मेरा डर भगा रही है
मंजिल कि ओर लिए जा रही है 

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू

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एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

याद आ रहा है वो पल सुहाना
तोतली जबान से माँ को बुलाना
घुटनों के बल रेंगना
भईया के साथ खेलना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

बारिश में झूला झुलना
पापा के कंधो में घूमना
अनमने मन से स्कुल जाना
फिर दौड़ते हुए घर आना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू

बहाने बनाकर स्कुल न जाना
बारिश कि पानी में कागज कि नाव चलाना
दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना
मस्ती में डूबकर नाचना गाना

एक हँसी ख्वाब मै बुन रहा हू
बीते लम्हों से कुछ अच्छे लम्हे चुन रहा हू