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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday 10 November 2013

दिल्ली मै आ रहा हूँ

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दिल्ली तेरी गलियों में फिर शोर होगा
वंदे मातरम की गूंज चहुंओर होगा
कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गए थे, पूरा करने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

पिछली बार जब हम मिले थे
जागती आँखों से सपना दिखाया था मुझे
उन सपनों को हकीकत में बदलने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

तेरी सड़को, तेरी गलियों ने पुकारा है फिर मुझे
यूँ तो भीड़ होती है उस महफ़िल में बहुत
उस भीड़ में एक और इजाफा करने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

कुछ अरमान तुझसे मिले बिना पूरी ना होंगी
पर सर्द रहती है अक्सर हवायें तेरी
उन सर्द हवाओं को सहने जा रहा हूँ
दिल्ली मै आ रहा हूँ, दिल्ली मै आ रहा हूँ

Saturday 9 November 2013

मुर्दों का शहर

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ये मुर्दों का शहर है या बेफिक्रों का,
लोग मिलते है लाशों की तरह,
जबां पे लगा लिए है ताले ,
और पूछते है इतना सन्नाटा क्यों है ?

मेहनत करती है लाशें दिलोजान से,
मेहनताना छीन ले जाता है क़ातिल,
मुफ़लिसी में दिन कटते है लाशों के,
क़ातिल का दिन अय्याशी में गुजरता क्यों है ?

इनको लगता है कि क़ातिल रहते है आसमां में,
उनको जमीं पे लाना है नामुमकिन,
एक पत्थर भी उछाले नहीं है,
और कहते है आसमां इतना ऊँचा क्यों है ?

मै बाशिंदा हूँ उस शहर का,
जहाँ जिंदा कौमें दहाड़ती है,
इंसान के साये को भी पुकारती है,
ये शहर कहता है मुझसे तु इतना बोलता क्यों है ?

Tuesday 29 October 2013

एक अपील

3 comments:
ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग
लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश
शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर
पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नहीं रहा उतर

क्या ये मुल्क तेरा नहीं,या तु यहाँ रहता नहीं
दिखा दे आज दुनिया को, जिंदा है तु मुर्दा नहीं
घर के अंदर चीखने से, कुछ भी ना बदल पायेगा
आवाज़ वही खत्म हो जायेगी ,कोई सुन भी ना पायेगा

क्यों रोकता है अपने कदम, है तुझे किसका डर
इस लुट का तो हो रहा, तेरे घर पर भी असर
बुजदिली तुझमे भरी,या मुल्क से प्यार नहीं
इंतज़ार है खुदा का,या गद्दारी में हो शामिल कहीं

हौसलेवालों पर ही बरसती है खुदा की रहमत
एक कदम बढ़ाया ही नहीं, और कोसता है अपनी किस्मत
अगर प्यार है मुल्क से, तो अदा करो इसका नमक
कन्याकुमारी से दिल्ली तक, भर दो पूरा सड़क

चलो सवाल करते है

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वर्षों से हो रही लुट पर,
रिश्वत की मिली खुली छूट पर,
दमनकारी निरंकुश शासन पर,
बेईमान निकम्मे प्रशासन पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

बढ़ रही बेरोजगारी पर,
घट रही वफ़ादारी पर,
मजदूरो के शोषण पर,
गरीब बच्चों के कुपोषण पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है!

गिरती शिक्षा स्तर पर,
बढ़ती महंगाई दर पर,
अस्पतालों की बदहाली पर,
किसानो की तंगहाली पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है!

बढते साम्प्रदायिक दंगो पर,
राजनीति में गलत हथकंडो पर,
तेजी से बढ़ते अपराध पर ,
नेताओं और गुंडों के सांठगांठ पर,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

सरकार की आम आदमी से बेरुखाई पर,
भ्रष्ट अफसरों की रुसवाई पर,
जब तक हर सवाल का जवाब न मिले,
एक एक पैसे का हिसाब न मिले,
चलो सवाल करते है, चलो सवाल करते है !

Friday 20 September 2013

लाशों की तरह जीने से तो, लड़कर मरना अच्छा है,

2 comments:
सिल लिए हो होठ अपने,
कोने में छुप छुप रोते हो
कायरो सी ज़िंदगी है,
हर जुल्म चुप चुप सहते हो !

सुभाष, भगत और गाँधी की,
पावन धरा में तुमने जन्म लिया,
फिर अन्याय को तुमने क्यों,
अपनी नियति समझ लिया ?

लाशों की तरह जीने से तो,
लड़कर मरना अच्छा है,
हालातों से जो लड़ता है,
वही तो वीर सच्चा है !

तटस्थता में ही जीना है तो,
क्यों पहना इंसान का चोला है ? 
घर बैठ कुछ नहीं बदलने वाला,
सड़को पर निकलना अच्छा है !

छाया घना अँधेरा तो क्या
एक जुगुनू भी रौशनी कर जाता है ,
सूरज ना बन पाए तो क्या
दीपक की तरह जलना अच्छा है !

दे जवाब डरपोक मौन को
साहस भरी एक आवाज से ,
इस डरी सहमी ख़ामोशी से
बलिदानी ललकार अच्छा है !

अवसर की राह जो तकता है,
लगता नहीं कुछ उसके हाथ ,
राहों में जो नहीं रुकता है ,
उसका जीत तो पक्का है !




Saturday 24 August 2013

भारत निर्माण

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आम आदमी है यहाँ परेशान
महंगाई कर रही हलाकान
भ्रष्टाचार पर नहीं है लगाम
बेरोजगारी ले रही है जान
आंख दिखा रहा चीन पाकिस्तान
मौज उड़ा रहे हुक्मरान
और हो रहा भारत निर्माण 

Thursday 4 July 2013

हमारी बहन वर्तमान की झाँसी की रानी, संतोष कोली को समर्पित

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कोई रोक ले मेरे आंसुओ को सैलाब बनने से
डरता हूँ अपने हाथ को खून से रंगने से
क़यामत हो जायेगी अगर सीने में छुपी बारूद में आग लग गयी
फिर ना कहना हमें तुम्हारे कमीज में खून की दाग लग गयी

तेरे लहू की हर एक बूंद का हिसाब माँगा जायेगा
तेरे पूछे गये हर सवाल का जवाब माँगा जायेगा
हमने तो सीखा है जीना तुझे देख देखकर
जो तुम ना रही तो फिर सैलाब माँगा जायेगा

जब तुम निकलती थी हाथो में तिरंगा लिए
वंदे मातरम से गूंजती थी सड़के सारी
हजारों को जगाया है तुमने अपनी आवाज़ से
हर दिल में हमेशा बसी रहेगी तेरी बहादुरी



Tuesday 21 May 2013

तो जीने का मज़ा क्या है ?

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आँखों में कोई सपना ना हो, तो जीने का मज़ा क्या है ?
सपने के लिए बरबाद हुए, तो इसमें खता क्या है ?

लोग कहते है पागल मुझे, मेरे हालात पर हँसते हुए 
इस पागल ने कुछ कर दिखाया नहीं, तो जीने का मज़ा क्या है ?

यूँ तो दर्द में आँसू निकल आते है सबके 
पर दर्द में मुस्कुराया नहीं, तो जीने का मज़ा क्या है ?

यहाँ तो सब ही जीते है अपने ही लिए 
दूसरों का दर्द भुलाया नहीं, तो जीने का मज़ा क्या है ?

थम जाती है साँसे हर रोज हजारों के, कुछ लोग होते है जनाजे के लिए 
अपनी मैय्यत पर लाखो को रुलाया नहीं, तो जीने का मज़ा क्या है ?

Tuesday 14 May 2013

हम आम इंसान है

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ना चमक है, ना दमक है,
ना जेब में सिक्कों की खनक है ,
बस पास एक कीमती ईमान है,
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !

सूरज देख निकलते है, शाम देख मुरझाते
राह में सीधे चलते है , दर दर ठोकर खाते
दुनिया की चतुराई से, हम तो अनजान है
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !

सिल लिए है होठ, जितनी भी लगे चोट
सोचा अपनी किस्मत में ही है खोट
जतन कर लिए तमाम है
हम आम इंसान है ! हम आम इंसान है !


Wednesday 20 March 2013

हमें स्वराज चाहिए

2 comments:
ना दान चाहिए, ना भीख चाहिए
हमें स्वराज चाहिए, हमें स्वराज चाहिए

लोकतंत्र बना आज लूटतंत्र
फूंका हो जैसे किसी ने मन्त्र
रिश्वत का हो गया एक यंत्र
भ्रष्टाचार मुक्त भारत चाहिए

ना दान चाहिए, ना भीख चाहिए
हमें स्वराज चाहिए, हमें स्वराज चाहिए

न्याय के लिए भटकती प्रजा
बेगुनाहों को मिल रही सजा
कोई तो बताये हमारी खता
हमें न्याय का अधिकार चाहिए

ना दान चाहिए, ना भीख चाहिए
हमें स्वराज चाहिए, हमें स्वराज चाहिए

जर्जर सड़क देख दुखता है मन
सालों से अधूरा पाठशाला भवन
पानी बिजली नहीं पहुंची जन जन
हर गांव में हमें विकास चाहिए

ना दान चाहिए, ना भीख चाहिए
हमें स्वराज चाहिए, हमें स्वराज चाहिए


Monday 11 March 2013

दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीड़ित लड़की "दामिनी" को समर्पित

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कोई चीखती लबों से , कह गयी बहुत कुछ
कुछ नींद से जागे है, कुछ अनसुना कर गये !

रोती होंगी रुंह भी, जमीं का मंजर देखकर
जो उठे थे हाथ, उनपर भी खंजर चल गये !

आसमां पर बैठ, सोचती होंगी वो दामिनी
इन ज़मींवालो के रगों में, पानी कैसे भर गये ?

आज दिल्ली में लुटेरे, बेख़ौफ़ लुटते है आबरू
पर पहरेदारों की चौकसी, कागजो में क्यों सिमट गये ?

सुन बहन की बिलखती आवाज़, भाई चुप बैठा है क्यों ?
रक्षाबंधन पर किया वादा, वो कैसे भूल गये ?

अब ना जागे सब तो , रुसवा होंगी इंसानियत
दिल की दबी बात, आज कलम कह गये !


Thursday 13 December 2012

मै आम आदमी हूँ

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एक आग लगी सीने में,
सबके सीने में लगाना चाहता हूँ
जागा हूँ मै जो अब तो ,
कुछ कर गुजरने को चाहता हूँ,
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सौपा जिनको भी राज यहाँ,
उसने ही जमकर लुट मचाया
अब हमारा जीना हो गया है मुश्किल ,
भ्रष्टाचार महंगाई को इतना बढ़ाया
कागज के टुकडों में बिकने वालों को,
जेल के अंदर पहुँचाना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

नहीं होने दी कभी अन्न की कमी मैंने,
सीमाओं पर दुश्मनों से लड़ा
नहीं होता काम बिन हमारे दफ्तरों में,
कारखाने हमारे दमपर है खड़ा
हम पहुंचाते खबर और सन्देश
शिक्षक बन ज्ञान बांटता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

सरफरोशी जागी है अब तो ,
ये हालात बदलना चाहता हूँ
बहुत सह लिए अन्याय अब,
बेईमानों का राज बदलना चाहता हूँ
मै आम आदमी हूँ, मै आम आदमी हूँ

Friday 23 November 2012

शिकायत

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उनकी बेखबरी का आलम तो देखो
लगी है भीषण आग उनके शहर में
और वो अपने महलों में बैठ
मधुर तरानों का लुत्फ़ उठा रहे है

रहनुमा बनके फिरते थे हमारी गलियों में
कहते हुए कि हर मुश्किल में साथ निभाऊंगा
आज जब हमारी ज़िंदगी जहन्नुम हो गई
वो कुर्सी पर बैठ मंद मंद मुस्कुरा रहे है

लंबी फेहरिस्त थी उनकी वायदों की
हमारी तंगहाल ज़िंदगी बदलने की बात करते थे
मौका दिया उनको वायदा निभाने की तो
हमको भूल झोलियाँ अपनी भरे जा रहे है

ईद हो या दिवाली संग होते थे हमारे
चेहरे पर मुस्कुराहट और होठों में दुआ रखते थे
अब दर पर जाते है उनके हाल ए ज़िंदगी कहने तो
मिलना तो दूर, हमसे आँखें चुरा रहे है 

Wednesday 21 November 2012

इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद

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बीच मझधार बह रहा हूँ, बिना पतवार के नाव में
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये

कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं

एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है

इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद 

Monday 19 November 2012

लकीरें

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उस खुदा ने तो नहीं खींची थी लकीरें इस जमीं पर
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?

देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान

मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान

तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान

Saturday 17 November 2012

सवाल सरकार से

1 comment:
एक शख्स बैठ सड़क पर
पूछता है सवाल सरकार से
जिनके दम पर है ये मुल्क सारा
क्यों त्रस्त है वो महंगाई की मार से

क्यों देती है तुम्हारी नीतियाँ
संरक्षण भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों को
क्यों करती है तुम्हारा प्रशासन
नज़रंदाज़ इनकी कारगुजारियों को

किसानों की मौत, मजदूरों के शोषण का
क्या है तुम्हारे पास जवाब
जनता के पैसों की चोरी का
कब दोगे तुम हिसाब

गलत लगते है तुम्हारे
हर दावे और दलीलें ऐ सरकार
समझ चुके है अब हम
तुम्हारी नियत भंली प्रकार